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एमपी में इन अस्थाई शिक्षकों को हटाना भूले अफसर, 14 साल में ले चुके हैं लाखों रुपए सैलरी

Fraud Case : जिले में चौंकाने वाला मामला सामने आया। यहां अधिकारी 4 अस्थायी शिक्षकों को हटाना भूल गए। यही नहीं, शिक्षक भी बीते 14 साल से फर्जी तरीके से सैलरी लेते आ रहे हैं। 2012 में बंद हुई थी योजना, फिर भी हर महीने 5 हजार सैलरी ले रहे चारों फर्जी शिक्षक।

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Fraud Case

शिवपुरी में सामने आया चौंकाने वाला मामला (Photo Source- Patrika)

Fraud Case :मध्य प्रदेश में सरकारी अधिकारियों की बेहोशी का आलम एक बार फिर सामने आया है। शिवपुरी के करैरा में चार संविदा अस्थायी शिक्षक 14 साल से अवैधानिक रूप से स्कूलों में सेवाएं देते रहे और शिक्षा विभाग से वेतन लेते रहे। इन्हें 2009 में जिस योजना के तहत भर्ती किया गया था वो योजना वर्ष 2012 में बंद भी हो चुकी है। सितम्बर 2025 में चूक पकड़ी गई और अब आनन-फानन में नियुक्ति समाप्त कर उन्हें भारमुक्त किया गया।

दरअसल, साल 2009 अभिकरण स्तरीय चयन समिति के अनुमोदन और पंचायत से प्रस्तावों के परीक्षण के बाद सहरिया जनजाति के अतिरिक्त संविदा शिक्षक वर्ग-3 की नियुक्ति 2500 रुपए महीना की दर से की गई थी। नियुक्ति अस्थाई रूप से 12 महीने के लिए ही थी। हर 12 माह पश्चात सेवा वृद्धि के लिए प्रधानाध्यापक द्वारा जनपद पंचायत को शिक्षकों के कार्य एवं व्यवहार के संबंध में संतोषजनक मतांकन भेजे जाने थे।

2012 में बंद हो चुकी योजना

वर्ष 2012 में योजना समाप्त कर दी गई और जिलेभर से इस तरह के सभी शिक्षकों को हटा दिया गया, परंतु करैरा के शाप्रावि उड़वाहा में पदस्थ काशीराम आदिवासी, मोहर सिंह आदिवासी, एकीकृत कन्या शाला अमोला क्रमांक-1 में पदस्थ अनिल आदिवासी, शाप्रावि राजगढ़ में पदस्थ शिवचरण आदिवासी को अधिकारी हटाना भूल गए।

बिना नवीनीकरण आदेश करते रहे नौकरी

ये शिक्षक हर साल बिना नवीनीकरण आदेश के अपनी-अपनी शालाओं में नौकरी करते रहे। उन्हें 2012 से 5000 रुपए वेतन भी मिल रहा था। यानी वे करीब 8 लाख से ज्यादा सैलरी ले चुके थे। अब अचानक आदेश जारी कर चारों शिक्षकों को ये कहते हुए हटा दिया गया है कि जुलाई 2025 में संकुल पर जानकारी प्राप्त हुई कि आप 2012 से बिना सेवा वृद्धि के ही शाला पर शैक्षणिक कार्य करते रहे।

ऐसे पकड़ाई धोखाधड़ी

जब चारों शिक्षकों की संविलियन संबंधी फाइल जिला पंचायत सीईओ के पास पहुंची तो उन्होंने आदेश पढ़ा। आदेश में शिक्षकों की नियुक्ति अस्थायी पाई गई। उन्होंने संकुल प्राचार्य से पत्राचार किया। पाया गया कि 2012 में कलेक्टर के यहां से योजना समाप्त होने के संबंध में पत्र भेजा गया था, परंतु जनपद से यह जानकारी शिक्षा विभाग को दी गई या नहीं, यह स्पष्ट नहीं हो पाया।

उचित कार्रवाई की जा चुकी है

मामले को लेकर संकुल प्राचार्य अरविंद यादव का कहना है कि, शिक्षकों ने साल 2011 के बाद सेवा वृद्धि के संबंध में कोई दस्तावेज नहीं दिए। ये मामला संज्ञान में आया तो इस संबंध में वरिष्ठ कार्यालय से मार्गदर्शन मांगते हुए जो उचित कार्रवाई हो सकती है और वो कर दी गई है।

शिक्षक क्यों नहीं हटाए गए, जानकारी नहीं

वहीं, आदिम जाति कल्याण विभाग जिला समन्वयक राजकुमार सिंह का कहना है कि, हमारे यहां से नियुक्ति 2009 में हुई थी, 2012 में योजना समाप्त हो गई थी। इसके बाद जिले भर में शिक्षकों को हटा दिया था। ये चारों शिक्षक क्यों नहीं हटाए गए, इसकी जानकारी नहीं है। आदिम जाति कल्याण विभाग का लेना-देना सिर्फ नियुक्ति तक था।