छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Photo Patrika)
Bilaspur High Court: हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पीड़िता के बयान में मामूली विसंगतियों का एक अभियुक्त लाभ नहीं ले सकता। चिकित्सा और फोरेंसिक साक्ष्य अभियोजन पक्ष के मामले की पुष्टि करते हैं और पीड़िता का बयान पूरी तरह से सुसंगत और विश्वसनीय है तो इस आधार पर सजा दी जा सकती है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा जस्टिस बीडी गुरु की डीबी ने पॉक्सो एक्ट के आरोपी युवक को मिली सजा बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी।
11 वर्षीय पीडिता के पिता ने सरायपाली थाने में अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई थी, जो दोपहर में अपने घर के सामने खेलती हुई गुम हो गई थी। बाद में पुलिस ने पतासाजी करते हुए ग्राम सापंधी, थाना सरायपाली, जिला महासमुंद निवासी शनि कुमार चौहान के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
विशेष न्यायाधीश पॉक्सो सरायपाली, जिला महासमुंद ने 13 मई 2022 को दोषसिद्धि पर 10 साल की सजा सुनाई। अपराध को साबित करने के लिए, अभियोजन पक्ष ने 16 गवाहों से पूछताछ की और अपने समर्थन में 28 दस्तावेज प्रस्तुत किए थे। इस निर्णय के विरुद्ध अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में अपील की।
कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में, विशेष रूप से पीड़िता की गवाही से, यह स्पष्ट है कि वह शुरू से अंत तक अपने रुख पर अडिग रही है। पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अपीलकर्ता उसे जबरन ले गया, उसे बंधक बनाया और बार-बार यौन उत्पीड़न किया। सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत उसका बयान इन तथ्यों की पुष्टि करता है, जिसमें उसके अपहरण, बंधक बनाने और बार-बार यौन उत्पीड़न का विवरण शामिल है।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि न्यायालय पीड़िता पर बिना किसी और पुष्टि के ’उत्कृष्ट गवाह’ के रूप में भरोसा कर सकता है, बशर्ते कि उसकी गुणवत्ता और विश्वसनीयता मापदंडों के अनुरूप हो। अभियोजन पक्ष का बयान छोटी-मोटी विसंगतियों को छोड़कर, प्रारंभिक बयान से लेकर मौखिक गवाही तक बिना किसी संदेह का होना चाहिए।
Published on:
19 Oct 2025 10:26 am
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