
Patrika Keynote 2025 Bhopal
Patrika Keynote: पत्रिका समूह के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पत्रिका समूह की ओर से राजधानी भोपाल में पत्रिका की-नोट कार्यक्रम का आगाज हो चुका है। विचारों के महामंच पर संवाद की इस श्रृंखला में 'लोकतंत्र और मीडिया' विषय पर मंथन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने कहा कि लोकतंत्र और मीडिया दोनों विषय अपने आप में ही बड़े और व्यापक हैं। आज ये अपने शाश्वत रूप से भटक गए हैं। उन्होंने पत्रकार को भारतीय समाज का चौथा स्तंभ नहीं बल्कि, भारतीय समाज के तीन स्तंभों के बीच सेतू बताया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कानून एवं न्याय मंत्री, भारत सरकार अर्जुन राम मेघवाल शामिल हुए हैं। वहीं मुख्य वक्तव्य पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी देंगे। राजधानी भोपाल के डॉ. खुशीलाल शर्मा आयुर्वेद कॉलेज और संस्थान में विचारों के महामंच (Patrika Keynote) की नई सोच से नई दिशा की उम्मीद को लेकर पत्रिका कीनोट का आगाज हुआ।
12.40: मुख्य वक्तव्य- गुलाब कोठारी, पत्रिका समूह प्रधान संपादक ...
लोकतंत्र भी बहुत बड़ा विषय है और मीडिया भी बड़ा सब्जेक्ट है। मीडिया भी संवाद का माध्यम है। सच पूछें तो संवाद आज का नहीं बल्कि हजारों -हजारों साल से संवाद समाज में कायम रहा है। हर समाज का आधार ही संवाद है। रामायण, महाभारत, गीता या आप जो कोई भी नाम लो, बाईबल, कुरान ये सब मीडिया है। लेकिन ये वो मीडिया है जिसकी कोई उम्र नहीं है, ये शाश्वत मीडिया है। आज जो मीडिया है वो नश्वर है, कल क्या पढ़ा था मुझे आज याद नहीं है यही अंतर है। यदि आज का मीडिया भी उस धरातल को छूने लग जाएगा, अपने शाश्वत स्वरूप की तरफ गंभीर हो जाएगा, तब नए समाज का निर्माण कर पाएगा, जो आज नहीं कर पा रहा है, क्यों...
क्योंकि मीडिया कोई अकेली इकाई नहीं है, हमारे शरीर की तरह इसके भी कई अंग है। संस्था, एक पत्रकार, कोई स्वरूप होगा। मीडिया चौथा पाया नहीं है पत्रकार, ये आज आप लिख लेना, पत्रकार सेतू है भारतीय समाज के तीनों पायों और जनता के बीच में, अगर पत्रकार ये कहता है कि मैं भारतीय समाज का चौथा पाया हूं, तो इसका एक ही अर्थ है कि, वो सरकार के साथ मिल गया और उसने जनता का साथ छोड़ दिया। इसके अलावा और कोई अर्थ नहीं है... बात करने का मेरा मुख्य ध्येय नई पीढ़ी के साथ युवाओं के साथ बहुत नजदीक से जोड़ना है... क्योंकि देश का भविष्य, देश का भार आपके कंधों पर है, इस राष्ट्र के कल का निर्माण, देश का स्वरूप आप बनाएंगे, इसलिए इस देश को लोकतंत्र को और मीडिया को सशक्त रूप से देखने का अभ्यास करना चाहिए।
कोठारी ने कहा कि आज सारी शिक्षा का एक ही लक्ष्य हो गया है कि हर बच्चा आज करियर के लिए अपनी पढ़ाई में लगा हुआ है। इसीलिए आज के युवा को दूसरों की चिंता नहीं रह पाती है। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि उन्हें एक चिंता जरूर रहे कि मुझे इस 'मां' का कर्ज चुकाना है। लेकिन ऐसा जब तक नहीं होगा, तब तक हम खुद अपने स्वतंत्र चिंतक नहीं बनेंगे। अपने स्वरूप को समझना बेहद जरूरी है। इस शिक्षा ने हमें इससे बहुत दूर कर दिया है।
कोठारी ने बताया कि भारतीय ज्ञान ये कहता है कि हम शरीर नहीं आत्मा हैं.. शिक्षा कहती हैं हम शरीर हैं, हमें सुविधा चाहिए, आराम चाहिए। भोग चाहिए। और ये सब चीजें आत्मा से जुड़ती ही नहीं हैं। जब हम इन्हें मिलाकर देखें, तब हमें लगेगा, हम कहां जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि, 'एक कागज पर लिखना कि, मुझे क्यों जीना है? कहां पहुंचना है? क्या बनना है? इसके बिना आपको कभी इन सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे। जो आज हालात हम देखें, वही आपके हालात होने वाले हैं, जो विश्व के हालात हैं, हम उनसे बाहर नहीं हैं। बहुत मुश्किलें हैं। ये सब कहां से आया, इसी शिक्षा से क्योंकि आज की शिक्षा का आत्मा से कनेक्शन ही नहीं है। हम शिक्षा यानी निर्जीव शरीर को चेतना यानी आत्मा से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। शरीर निर्जीव है, चेतना नहीं।
पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने पत्रकार के काम पर चर्चा करते हुए कहा कि, पत्रकार का काम केवल एक ही संवाद। उन्होंने कहा कि एक बात जरूर मन से समझ लेना कि 'संवाद मैं कर रहा हूं, आपसे कर रहा हूं, दो ही तो लोग हैं एक संवाद देने वाला, एक लेने वाला। शरीर चेतन नहीं है, शरीर को बोलना-सुनना नहीं आता। तो संवाद कौन कर रहा है, बुद्धि भी जड़ है, मन भी और शरीर भी जड़़ है। ये मेरे साधन हैं जीवन के, जबकि मैं कौन हूं मैं आत्मा हूं। मैं आपसे बात कर रहा हूं यानी मेरी आत्मा आपकी आत्मा से बात कर रही है। यहां पत्रकार, मीडिया की जो हम बात कर रहे हैं आपको यहां मीडिया का स्वरूप, उसका प्रभाव, उसकी भूमिका समझ आएगी।
कोठारी ने आज की शिक्षा और उसका व्यक्तित्व पर असर भी आसान शब्दों में समझाया। उन्होंने कहा कि आत्मा से आत्मा बात करती है, यानी हम मन से बात करेंगे, तो हर वाक्य मीठा, दर्द भरा, संवेदनाओं से भरा होगा, अगर आप किसी के साथ बुद्धि से बात करेंगे, तो आप सामने वाले को छोटा महसूस कराने की बात करेंगे, उससे तर्क-वितर्क करेंगे। संबंध तोड़ने की बात करेंगे, जोड़ने की नहीं। मन में संवेदना है, दर्द है, वात्सल्य है, ममता है, करुणा है, ये सब बुद्धि में नहीं हैं। जितने भी बुद्धिमान लोग हैं वो सब अकेले जिएंगे, उनके साथ दुख-सुख में साथ देने वाला कोई नहीं मिलेगा। क्योंकि वो भी किसी के सुख-दुख में साथ नहीं देते। यही आज की शिक्षा है। यही आज की मीडिया का स्वरूप है, यही आज के लोकतंत्र का स्वरूप, जो पिछले 70 साल में बना है। इसीलिए मैं आपसे बात करना चाहता हूं।
कोठारी ने युवाओं को मन से बात करने यानी संवेदनाओं को जिंदा बनाए रखने की बात कही। उन्होंने बताया कि न्यायपालिका को देखो, कार्यपालिका को देखो या विधायिका को, सब पढ़े-लिखे लोग विधायिका का चयन कर रहे हैं, लेकिन हम अभी तक उन बेड़ियों से नहीं निकले हैं, जो अंग्रेज हमारे लिए छोड़ गए थे। सारे प्रशासनिक अफसरों को देखो, दिमाग से सभी अंग्रेज हैं। हिंदुस्तानियों को आज भी नंबर 2 का नागरिक समझकर बात करते हैं।
न्यापालिका को देखो, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट फैसले दे रहा है, लेकिन उसे ये चिंता नहीं है कि वह लागू हुआ या नहीं। 20-20 साल 10-10 साल पुराने फैसले धूल चाट रहे हैं। एक आदमी को सुप्रीम कोर्ट जाकर फैसला लेने में तीन पीढ़ी निकल जाती हैं। दादाजी मुकदमा करते हैं, पिताजी लड़ते हैं और पोते को न्याय मिल रहा है। न्याय लाने के लिए उसके घर बिक गए, गहने सब बिक गए। न्या मिलने के बाद भी न्याय लागू ही नहीं होता, तो न्याय किसके काम आया? उसके लिए न्याय है ही नहीं, कोर्ट में वकील ने क्या चर्चा की, क्या आर्गुमेंट हुए सब अंग्रेजी में थे, उसे कुछ पता ही नहीं चला। कार्यपालिका की भी यही स्थिति हो गई है।
विधायिका की बात करे तो... कितने भी जनप्रतिनिधि सदन में आते हैं, किसी भी सदन में वो सत्ता का हिस्सा हैं। दूसरा दिखाई नहीं दे रहा...लोकसभा-राज्यसभा को देखें तो, कितने टुकड़ों में वो सदन बंट गया। क्या सारे प्रतिनिधि एक लक्ष्य को लेकर काम करते दिख रहे हैं या पूरे देश के लिए काम करते दिख रहे हैं, कोई नहीं करता। इसका नुकसान क्या हुआ? मंत्रिमंडल को ही देख लो आधे लोगों को तो शायद अपने क्षेत्र को ही नहीं समझते होंगे। तो हमने सत्ता किसे सौंपी... मैं इस उदाहरण से इस युवा पीढ़ी को समझना होगा कि आपके हाथ से कैसा जनप्रतिनिधि जाना चाहिए, देश को कंट्रीब्यूट करें। आंखें खुलने लगीं कि नहीं... उसको देखें कि 20-20 साल मां बाप का पैसा लगाया, लेकिन अब नौकरी नहीं मिल रही है। और नौकरी मिल भी गई तो जो पैसा लगाया उसका ब्याज भी नहीं मिल पाता उससे। आपको सोचना होगा। आप हमसे 10 गुना ज्यादा समझदार हैं आप। इसीलिए बधाई भी देता हूं कि आपका भविष्य सुंदर है...आप इस संवेदना को जिंदा रखेंगे। 100 में से 100 नंबर आने पर भी आपकी ये संवेदना जिंदा रहेगी।
गुलाब कोठारी ने युवाओं को सीख दी कि वे पढ़ाई और करियर के साथ अपने व्यक्तित्व निर्माण का ध्यान रखें। उन्होंने उदाहरण देकर युवाओं के मन की उलझन को शांत करते हुए कहा कि सोचें, 'मैं 8 घंटे की नौकरी क्यों चाहता हूं... ये एक बड़ा प्रश्न है ताकि मैं 16 घंटे परिवार का पालन कर सकूं, उन्हें सुंदर जीवन दे सकूं, लेकिन आज क्या हुआ 24 घंटे नौकरी में ही खप गए। इसको समझें, एक पत्रकार बन गए बड़ी जगह, सब बोलते हैं कि इतना बड़ा पत्रकार बन गया। बहुत अच्छा लिखता है। 24 घंटे का पत्रकार हो गया मैं। 8 घंटे का पत्रकार रहना चाहिए मुझे, 16 घंटे गुलाब कोठारी की तरह जीना चाहिए मुझे। लेकिन वो 16 घंटे गायब हो गए।
कोठारी ने कहा कि इस बात को कहने से आपको मीडिया की मूल बात पकड़ आएगी कि 'जब आप घर जाएंगे तो घर में जाकर गुलाब कोठारी यानी आप नहीं , बल्कि एक पत्रकार एक संपादक घर वालों से मिल रहा है, बच्चों से मिल रहा है, पत्नी से मिल रहा है। मां-बाप से मिल रहा है। इसीलिए अपने व्यक्तित्व का ध्यान रखें, उसका निर्माण करना है। सोचें कि उसी के निर्माण के लिए तो मैं अच्छा करियर ढूंढ़ रहा हूं। ताकि घर-परिवार का जीवन सुंदर बना सकूं।
11.50: विनोद अग्रवाल का संबोधन-
दिशा, योजना और लक्ष्य न होने के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं आते हैं। ऐसे आंदोलन जो बिना स्पष्ट लक्ष्य, योजना और जिम्मेदार नेतृत्व के होते हैं, तो वे व्यवस्था और प्रशासन को बाधित करते हैं। अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डालते हैं। आम जनता का जीवन कठिन बना देते हैं। इनके चलते सरकार की कार्यक्षमता प्रभावित होती हैं और जनता का संस्थाओं से भरोसा घटता है। जिससे लोकतंत्र की स्थिरता कमजोर पड़ती है। इसी अस्थिरता का फायदा उठाकर बाहरी शक्तियां, भ्रामक सूचनाएं आर्थिक दबाव या राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते स्थिति का दुरुपयोग कर सकती हैं। युवाओं और देश का भविष्य सीधे-सीधे हमारे लोकतंत्र और मीडिया की जिम्मेदारी से जुड़ा हुआ है। भारत आज की तारीख में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की बनने की ओर अग्रसर है। इस लक्ष्य को हासिल करने सबसे बड़ी ताकत हमारी जनसंख्या है। इस जनसंख्या में भी जो 65% युवा हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं।
इस अवसर पर विनोद अग्रवाल ने इस महामंच से पत्रिका का आभार भी व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मैं आभारी हूं कि पत्रिका ने मुझे इस मंच पर अपने विचार रखने का अवसर दिया।
ऐसे में हमारा प्रथम कर्तव्य है कि मीडिया इन युवाओं को सटीक जानकारी, अवसर और मंच दे, तो वही युवा हमारे राष्ट्र के सच्चे परिवर्तनकर्ता बनेंगे। मीडिया, सरकार, शैक्षणिक संस्थान और परिवारके कर्तव्य है कि वे युवाओं को केवल शोर नहीं बल्कि स्पष्ट दिशा दें। आज का युग चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन अवसरों से भरा भी है, लोकतंत्र की रक्षा उनके संवर्धन में मीडिया की भूमिका अनिवार्य है। वह संचारी शक्ति है जो जनता और संस्थाओं के मध्य भरोसा बनाए रखती है। आइए हम सब मिलकर एक ऐसे मीडिया परिवेश का निर्माण करें, जहां सत्य, पारदर्शिता और जिम्मेदारी सर्वोपरि हो। हमारी आने वाली पीढ़ियां ज्ञान संपन्न और संस्कारी होकर इस लोकतंत्र को मजबूत बनाएं। भारत जो कभी सोने की चिड़िया थी, आज भी उसी मार्ग पर अग्रसर है, और हम सब मिलकर इसे पुन: सोने की चिड़िया बनाना चाहते हैं। जहां नागरिक सजग हो और लोकतंत्र सशक्त हो, तो ऐसा राष्ट्र समृद्धि की ओर बढ़ता है।
-विनोद अग्रवाल, वरिष्ठ समाजसेवी और उद्योगपति
11.00: डॉ. सुरेश कुमार जैन का संबोधन
विषय पत्रकारिता को लेकर हैं मैं पत्रकार तो नहीं हूं, लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि मैं गुलाब कोठारी की लेखनी का फेन हूं। इनकी लेखनी ऐसी है कि जिससे आप न केवल आनंदित होंगे बल्कि, बहुत कुछ सीख सकते हैं। आज की पत्रकारिता की जहां तक बात है तो पत्रकारिता भारतीय समाज का चौथा स्तंभ है। लेकिन इतना जरूर कहना चाहूंगा कि एक जमाना था इस कलम में बड़ी तेज धार हुआ करती थी, कुछ ऐसा लगता है कि कलम की धार थोड़ी कमजोर हुई है। हालांकि आज भी कुछ लोग उस परंपरा को निभा रहे हैं। उनका स्वागत अभिनंदन है।
-डॉ. सुरेश कुमार जैन, कुलगुरु, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल।
एमपी में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी और उद्योगपति विनोद अग्रवाल ने की। इस अवसर पर प्रोफेसर डॉ. सुरेश कुमार जैन, कुलगुरु बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, पर्वतारोही एवं मोटिवेशनल स्पीकर भी शामिल हुए। उपस्थित जनों ने सवालों की झड़ी लगा दी और जवाबों से अपनी जिज्ञासा को शांत किया।
पत्रिका समूह के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष के तहत संवाद की इस शृंखला (Patrika Keynote) में राजधानी भोपाल में ही कल बुधवार 29 अक्टूबर को ‘स्त्री: देह से आगे’ विषय पर विशेष संवाद कार्यक्रम होगा। यह कार्यक्रम एलएनसीटी यूनिवर्सिटी, कोलार रोड, भोपाल के सह संयोजन में यूनिवर्सिटी के सभागार में सुबह साढ़े दस बजे से होगा।
Updated on:
28 Oct 2025 05:44 pm
Published on:
28 Oct 2025 11:21 am
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