
Rajmata Scindia - image social media
Rajmata Scindia- मध्यप्रदेश में एक बड़ी प्रशासनिक गड़बड़ी सामने आई है। प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की आधिकारिक सूची में विजयाराजे सिंधिया का नाम भी शामिल कर लिया गया है जबकि वे कभी सीएम नहीं रहीं। मध्यप्रदेश विधानसभा की ऑफिशियल वेबसाइट पर उन्हें सीएम के रूप में दर्शाया गया है। प्रदेश के पूर्व सीएम की सूची में उनका नाम भी शामिल है। विधानसभा की वेबसाइट पर प्रदेश के मुख्यमंत्री का आप्शन दिया है जिसे खोलने पर वर्तमान और भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों की सूची सामने आती है। इसमें 5 वें क्रम पर विजयाराजे सिंधिया का नाम है। वेबसाइट पर इसका स्पष्टीकरण देते हुए कहा गया है कि साधारणत: मुख्यमंत्री ही सदन का नेता होता है लेकिन चौथी विधान सभा में सीएम गोविन्द नारायण सिंह के कार्यकाल में विजयाराजे सिंधिया, सदन की नेता थीं। विजया राजे सिंधिया, कांग्रेस नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की मां और बीजेपी नेता व वर्तमान केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी थीं। वे प्रदेश में बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री थीं और राजमाता सिंधिया के रूप में विख्यात रहीं। विजयाराजे सिंधिया कई बार सांसद रहीं लेकिन मुख्यमंत्री कभी नहीं रहीं।
विधानसभा की ऑफिशियल वेबसाइट पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया का मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल 30 जुलाई 1967 से 25 मार्च 1969 तक बताया जा रहा है। इस दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में क्रमश: गोविंद नारायण सिंह और राजा नरेश सिंह का शासन था। खास बात यह है कि मध्यप्रदेश के जनसंपर्क विभाग की प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की सूची में राजमाता विजयाराजे सिंधिया का नाम शामिल नहीं है।
मप्र विधानसभा की वेबसाइट पर राजमाता विजयाराजे सिंधिया को मप्र का 5वां मुख्यमंत्री दर्शाया जा रहा है। जबकि वे प्रदेश की मुख्यमंत्री कभी रहीं ही नहीं हैं। बताया जा रहा है कि विधानसभा की वेबसाइट पर जानकारी अपलोड करने की बात वरिष्ठ अधिकारियों ने भी स्वीकार ली है। सोमवार को इस त्रुटि में सुधार कराने की बात भी कही है।
एमपी विधानसभा की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री का आप्शन दिया है। इसे खोलने पर वर्तमान और भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों की सूची आती है। भूतपूर्व मुख्यमंत्री की सूची में 5वें नंबर पर विजयाराजे सिंधिया का नाम है। इसके आगे स्टार * लगाया गया है और अंत में इसका स्पष्टीकरण भी दिया गया है। इसमें कहा गया है कि साधारणत: मुख्यमंत्री ही सदन का नेता होता है लेकिन चतुर्थ विधान सभा में गोविन्द नारायण सिंह के कार्यकाल में विजयाराजे सिंधिया, सदन की नेता रहीं।
विजयराजे सिंधिया ने अपनी राजनैतिक केरियर की शुरुआत 1957 में की। तब वे कांग्रेस के टिकट पर प्रदेश की गुना लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बनी। विजयराजे सिंधिया ग्वालियर से भी कांग्रेस की सांसद रहीं। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 1967 में स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर गुना सीट जीती। विजयाराजे सिंधिया ने बाद में लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और भारतीय जनसंघ में शामिल हो गईं। 1967 में चुनाव में जनसंघ से करेरा विधानसभा सीट जीतकर विधायक बन गई। 1989 में गुना से बीजेपी की सांसद बनीं। यहां से 1991, 1996 और 1998 में भी जीतीं।
आपातकाल के दौरान विजयाराजे सिंधिया जेल में भी रहीं। तिहाड़ जेल में वे राजमाता गायत्री देवी के साथ एक सेल में रहीं थीं। राजमाता सिंधिया की उनके बेटे माधवराव सिंधिया से कभी नहीं बन सकी। यहां तक कि दोनों में संपत्ति को लेकर सार्वजनिक रूप से भी विवाद हुआ। जनवरी 2001 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया।
Updated on:
26 Oct 2025 06:58 pm
Published on:
26 Oct 2025 04:34 pm
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