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Rajasthan: बेटे की शादी से ठीक पहले मिली 10 साल से खोई मां… गम में पिता ने छोड़ दिए प्राण, मां-बेटे का मिलन देख आंखों में आए आंसू

बेटे जयंत ने बताया कि जब मां घर से गई थीं, तब मेरी उम्र 12 साल थी। मां के गम में पिताजी भी इस दुनिया से चले गए। जीवन बेरंग हो गया था, पर आज मां के मिलने से मेरे जीवन में फिर से उजाला लौट आया है।

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Bharatpur
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10 साल बाद मिलते मां-बेटे (फोटो-पत्रिका)

भरतपुर। अपना घर आश्रम में शनिवार का दिन भावनाओं से भरा हुआ रहा, जब एक मां और उसके बेटे का 10 वर्ष बाद मिलन हुआ। इस मिलन का दृश्य देख वहां मौजूद सभी की आंखें नम हो गईं। असम के जोरहट जिले की निवासी श्रीमती रूपाबेन उर्फ जमुना (प्रभुजी) मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण वर्ष 2015 में बिना बताए घर से निकल गईं थीं। परिवार ने हर जगह तलाश की, परंतु कोई पता नहीं चला।

13 दिसंबर 2018 को उन्हें सूरत से अपना घर आश्रम, भरतपुर में सेवा एवं उपचार के लिए भर्ती कराया गया था। लगातार सेवा और उपचार से उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ, इसके बाद उन्होंने अपना घर और परिवार का पता बताया। आश्रम की पुनर्वास टीम ने तत्परता दिखाते हुए असम के जिला जोरहाट के गांव राजबाड़ी में स्थित उनके घर का पता लगाया और परिवार से संपर्क किया।

वीडियो कॉल पर पहचाना

टीम ने वीडियो कॉल के माध्यम से उनके बेटे जयंत नायक और देवर सूरज तांती को रूपाबेन से मिलवाया। जब जयंत को यह ज्ञात हुआ कि उसकी मां जीवित हैं और अपना घर आश्रम भरतपुर में हैं तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

मिलते ही फूट-फूटकर रोने लगे

शनिवार को असम से जयंत नायक और सूरज तांती भरतपुर पहुंचे। जैसे ही मां-बेटे का आमना-सामना हुआ, दोनों एक-दूसरे से लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़े। वहां मौजूद सभी लोग इस दृश्य को देखकर भावुक हो उठे। जयंत ने बताया कि जब मां घर से गई थीं, तब मेरी उम्र 12 साल थी।

गम में पिता की हुई मौत

बेटे ने बताया कि मां के गम में पिताजी भी इस दुनिया से चले गए। जीवन बेरंग हो गया था, पर आज मां के मिलने से मेरे जीवन में फिर से उजाला लौट आया है। देवर सूरज तांती ने बताया कि रूपाबेन के दो बेटे जयंत और सनी तथा एक बेटी हैं। परिवार ने कठिन परिस्थितियों में मेहनत-मजदूरी करके अपना जीवन चलाया। अब जयंत की शादी होने वाली है और नियति ने समय रहते मां को मिलवा दिया है।

राजस्थान से गईं रूपाबेन

आश्रम की पुनर्वास टीम की ओर से आवश्यक औपचारिकताएं पूर्ण करने के बाद रूपाबेन को उनके पुत्र जयंत नायक व परिवार को सुपुर्द कर दिया गया। मां-बेटे के इस भावुक मिलन ने न केवल उपस्थित सभी लोगों की आंखें नम कर दीं, बल्कि यह भी साबित किया कि अपना घर आश्रम वास्तव में उन असहाय और लावारिस आत्माओं के लिए परम ठिकाना है, जिन्हें समाज ने भुला दिया था।