Muriya Darbar in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में मनाया जाने वाला बस्तर दशहरा देश के सबसे लंबे और अनूठे त्योहारों में से एक है, जो धार्मिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक परंपराओं का अद्भुत संगम है। इस उत्सव की प्रमुख और पारंपरिक रस्मों में से एक है "मुरिया दरबार", जो आज भी लोगों की भागीदारी, न्याय व्यवस्था और जनसंपर्क की जीवंत मिसाल है।
मुरिया दरबार बस्तर दशहरा की प्रमुख और पारंपरिक रस्मों में से एक है, जो छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति और जनसंवाद की ऐतिहासिक परंपरा को दर्शाता है। रियासत काल में जब बस्तर में राजशाही थी, उस समय यह दरबार बस्तर के राजा द्वारा लगाया जाता था, जिसमें वे मुरिया जनजाति सहित रियासत के विभिन्न क्षेत्रों से आए लोगों की समस्याएं सुनते थे और मौके पर ही उनका निपटारा करते थे। यह दरबार न्याय, संवाद और सहभागिता का एक जीवंत मंच था, जहाँ जनता बिना किसी औपचारिकता के सीधे राजा से संवाद कर सकती थी।
आज भी यह परंपरा बस्तर दशहरा के दौरान निभाई जाती है, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री, प्रशासनिक अधिकारी और स्थानीय जनप्रतिनिधि शामिल होते हैं। इसमें बस्तर के दूर-दराज़ क्षेत्रों से आए लोग अपनी समस्याएं और सुझाव सीधे शासन के सामने रखते हैं। मुरिया दरबार लोकतांत्रिक भावना, सांस्कृतिक परंपरा और जनसुनवाई का ऐसा अनोखा संगम है, जो आज भी बस्तर की पहचान और गौरव का प्रतीक बना हुआ है
राजशाही खत्म होने के बावजूद यह परंपरा आज भी जीवित है और बस्तर दशहरा का एक अहम हिस्सा बनी हुई है। अब इस दरबार में प्रदेश के मुख्यमंत्री, स्थानीय जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, और परंपरागत आदिवासी प्रतिनिधि उपस्थित रहते हैं। दरबार में बस्तर के विभिन्न हिस्सों से आए लोग अपनी समस्याएं, मांगें और सुझाव सीधे शासन और प्रशासन के सामने रखते हैं।
मुरिया दरबार केवल एक रस्म नहीं, बल्कि लोकतंत्र और परंपरा का अद्भुत समन्वय है। यह एक ऐसा मंच बन चुका है जहाँ सांस्कृतिक मूल्यों को सम्मान देते हुए जनसुनवाई और त्वरित न्याय की भावना को साकार किया जाता है। मुख्यमंत्री की मौजूदगी से यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इससे स्थानीय लोगों को भरोसा मिलता है कि उनकी बात सीधे शासन के शीर्ष तक पहुँच रही है।
मुरिया दरबार केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक रस्म नहीं है, बल्कि यह बस्तर की गहरी सामाजिक संरचना और शासन व्यवस्था का प्रतीक है। यह दरबार बस्तर दशहरा जैसे विशाल और अनूठे त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो प्रशासन और जनता के बीच सीधे संवाद की परंपरा को जीवित रखता है। रियासत काल में शुरू हुई यह परंपरा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, क्योंकि इसमें शासन के शीर्ष स्तर—मुख्यमंत्री और वरिष्ठ अधिकारी—सीधे आदिवासी समाज के बीच पहुंचते हैं और उनकी समस्याओं को सुनते हैं।
यह आयोजन दर्शाता है कि शासन व्यवस्था केवल सत्ता का केंद्र नहीं, बल्कि समाज के सबसे दूरस्थ और वंचित वर्गों से संवाद और न्याय का माध्यम भी हो सकता है। मुरिया दरबार यह साबित करता है कि परंपराएं केवल अतीत की धरोहर नहीं होतीं, बल्कि वर्तमान में भी सामाजिक समरसता और न्याय की स्थापना का माध्यम बन सकती हैं।
इस दरबार में शामिल होने वाले आदिवासी प्रतिनिधि केवल दर्शक नहीं होते, बल्कि वे अपनी बात खुलकर रखने वाले सक्रिय भागीदार होते हैं। यह प्रक्रिया पारंपरिक शासन व्यवस्था को लोकतांत्रिक मूल्यों से जोड़ती है। साथ ही, मुरिया दरबार जैसे आयोजनों से यह भी स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़ सरकार सांस्कृतिक विरासत को केवल उत्सव तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उसे शासन के साथ जोड़कर सशक्तिकरण का जरिया बनाती है।
इस प्रकार, मुरिया दरबार न केवल बस्तर की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक है, बल्कि यह शासन, समाज और संस्कृति के बीच सामंजस्य का जीवंत और प्रेरणादायक उदाहरण है, जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी परंपराओं पर गर्व करना और उन्हें आगे बढ़ाना सिखाता है।
Updated on:
31 Jul 2025 05:28 pm
Published on:
31 Jul 2025 05:27 pm