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Bajrang Pashu Mela : पुष्कर मेले के बाद अब बजरंग पशु मेला की होगी धूम, 9 से 15 नवंबर तक आएंगे कई राज्यों से व्यापारी

Bajrang Pashu Mela : पुष्कर मेले के बाद अब बाडमेर के सिणधरी में बजरंग पशु मेला की धूम होगी। 9 नवंबर से 15 नवंबर तक चलने वाले इस मेल मे कई राज्यों से व्यापारी आएंगे। बजरंग पशु मेले की ऐतिहासिक शुरुआत कैसे हुई, जानिए।

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Barmer Sindhari Bajrang Pashu Mela After Pushkar Fair 9-15 November arrive several states Traders

सिणधरी. बजंरग पशु मेला। फ़ाइल फोटो पत्रिका

Bajrang Pashu Mela : बाडमेर के सिणधरी उपखंड मुख्यालय पर स्थित पंचायत समिति कार्यालय व पुलिस थाने के पीछे प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला प्रसिद्ध बजरंग पशु मेला इस वर्ष 9 नवंबर से प्रारंभ होगा। यह प्रदेश के प्रमुख पशु मेलों में से एक है, जिसमें राजस्थान सहित अन्य राज्यों से पशु व्यापारी भाग लेंगे। मेले में ऊंट, बैल, घोड़े सहित विभिन्न पशुओं की खरीद-फरोख्त की जाएगी। मेले का औपचारिक समापन 15 नवंबर को किया जाएगा, जबकि बाजार लगभग दो माह तक चलता रहेगा।

100 से अधिक पशुओं का हुआ क्रय-विक्रय

पिछले वर्ष मेले में 356ऊंट तथा 15 ऊंटनियां पहुंची थी, जिनमें से 100 से अधिक पशुओं का क्रय-विक्रय हुआ था। इस वर्ष अधिक संख्या में व्यापारियों व पशुपालकों के आने की संभावना है। मेले के दौरान श्रेष्ठ पशु प्रस्तुत करने वाले पशुपालकों को पुरस्कार व प्रमाण-पत्र प्रदान किए जाएंगे। प्रशासन ने तैयारियों को लेकर निविदाएं जारी कर दी हैं, साथ ही अन्य राज्यों से सर्कस एवं मनोरंजन दलों का आगमन भी प्रारंभ हो चुका है।

मेले की ऐतिहासिक शुरुआत

पांच दशक पहले वर्ष 1971 में तत्कालीन विकास अधिकारी लक्ष्मीधर पुरोहित ने कृषि एवं पशुपालन प्रधान इस क्षेत्र के किसानों और पशुपालकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मेले की शुरुआत की गई थी। उन्होंने हनुमान अखाड़े में बजरंगबली को चोला चढ़ाकर शुभारंभ किया तथा मेले को ‘बजरंग पशु मेला’ नाम दिया। तब से यह आयोजन निरंतर होता आ रहा है।

अकाल एवं कोविड-19 अवधि में दो वर्षों तक मेला आयोजित नहीं हो सका। स्थानीय लोगों के अनुसार बजरंगबली की कृपा से अब तक मेले में किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं हुई, जिसके कारण यह मेला निरंतर सफल रहता है।

ऊनी वस्त्र व घरेलू सामान का बाजार

जानकारी के अनुसार, सर्दी के मौसम को देखते हुए मेले में ऊनी वस्त्रों की दुकानें प्रमुख आकर्षण रहेंगी। इसके अतिरिक्त बर्तन, कृषि उपकरण, पशु-संबंधी सामग्री, तिरपाल, खिलौने एवं मनोरंजन साधनों का भी व्यापक बाजार लगेगा। झूले, सर्कस और बच्चों के मनोरंजन हेतु विभिन्न खेल-खिलौने भी आकर्षण का केंद्र होंगे।

पूर्व में मेले की संपूर्ण व्यवस्थाएं पंचायत समिति प्रशासन की ओर से संचालित की जाती थी, किंतु समय के साथ परिवर्तन के चलते अब मेले का संचालन टेंडर प्रक्रिया से होता है। चयनित ठेकेदार की ओर से सफाई व्यवस्था, दुकानों का आवंटन तथा अन्य प्रबंधन कार्य किए जाते हैं। टेंडर स्वीकृत होने के पश्चात ठेकेदार को हिस्सेदारी के आधार पर आय प्राप्त होती है। प्रतिवर्ष पंचायत समिति को इस मेले से लगभग 5 से 6 लाख रुपए का राजस्व प्राप्त होता है।

पुष्कर मेले के बाद बजरंग पशु मेला

पुष्कर मेला समाप्त होने के पश्चात सिणधरी में बजरंग पशु मेले का आयोजन किया जाता है, इसके बाद धोरीमन्ना सहित अन्य स्थानों पर भी मेले लगते हैं। सिणधरी मेला विशेष रूप से ऊंटों की बिक्री-खरीद के लिए प्रसिद्ध है। राज्य से ऊंट बाहर ले जाने पर प्रतिबंध के चलते पूर्व वर्षों में व्यापारी कम संख्या में पहुंचे थे, किंतु इस वर्ष अधिक व्यापारियों के आने की उम्मीद है। पशुपालकों का कहना है कि यदि स्थानीय प्रशासन मेले के प्रति और पहल करे, तो यह मेला और अधिक आकर्षक एवं समृद्ध रूप में आयोजित हो सकता है।