बरेली। नगर निगम बरेली में एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसने स्थानीय प्रशासन की पारदर्शिता और जवाबदेही पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। डीडीपुरम जैसे पॉश इलाके की करोड़ों रुपये की सरकारी ज़मीन को महज ₹4.5 लाख सालाना किराये पर एक निजी एजेंसी को सौंप दिया गया है। हैरानी की बात ये है कि 11 महीने बीत जाने के बाद भी फूड कोर्ट शुरू नहीं हुआ, और पूरी परियोजना अब भ्रष्टाचार और ठेकेदारों ब कुछ अधिकारियों के दलदल में फंसी नजर आ रही है।
बरेली स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत तैयार किए गए इस फूड कोर्ट पर करीब 3 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। निर्माण कार्य पूरा होने के लगभग एक साल बाद भी दुकानों पर ताले लगे हैं, और संचालन शुरू नहीं हुआ। नगर निगम ने इस परियोजना के संचालन के लिए टेंडर जारी किया था, जिसे विवादास्पद तरीके से पूर्व में विवादित रही एजेंसी को सौंप दिया गया।
जिस भूमि पर यह फूड कोर्ट बनाया गया है, उसकी बाजार कीमत कई करोड़ रुपये आंकी गई है। इसके बावजूद, नगर निगम ने इसे मात्र ₹37500 प्रतिमाह (₹4.5 लाख सालाना) की दर से ठेके पर दे दिया। सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी कम राशि पर ठेका क्यों दिया गया, और क्या इस पूरे प्रकरण में अधिकारियों की मिलीभगत है?
सूत्रों की मानें तो टेंडर की शर्तें जानबूझकर ऐसी बनाई गईं कि वही एजेंसी पात्र ठहरे, जो पहले भी नगर निगम से विज्ञापन ठेके में विवादित रह चुकी है। इस एजेंसी को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों की अनदेखी की गई।
इससे पहले तत्कालीन नगर आयुक्त निधि गुप्ता के निर्देश पर फूड कोर्ट के लिए दुकानों और टाइल्स आदि का निर्माण कराया गया था, लेकिन उन दुकानों को कभी आवंटित नहीं किया गया। बाद में उसी भूमि पर दोबारा एक अन्य एजेंसी को ठेका देकर वहां फिर से निर्माण शुरू करा दिया गया, जिससे पहले हुए करोड़ों रुपये के सरकारी खर्च बेकार हो गए। अब क्षेत्र में दोबारा बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हो रहा है, जिससे स्थानीय नागरिकों को भारी असुविधा हो रही है।
बरेली स्मार्ट सिटी कंपनी (BSCL) ने संबंधित एजेंसी को 7 दिन का नोटिस जारी कर ₹7.98 लाख की बकाया राशि जमा करने और संचालन शुरू करने का निर्देश दिया है। सीईओ संजीव कुमार मौर्य ने कहा है कि अगर समयसीमा के भीतर कार्य शुरू नहीं हुआ तो एजेंसी का अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा और ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया शुरू होगी।
घोटाले की बू आने के बाद स्थानीय सामाजिक संगठनों और व्यापार मंडलों ने विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि यदि फूड कोर्ट समय पर चालू हो जाता, तो नगर निगम को आय होती और जनता को बेहतर सुविधाएं मिलतीं। अब मामला गर्माता देख प्रशासनिक अफसरों ने फाइलें तलब कर जांच शुरू कर दी है।
अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या नगर निगम और स्मार्ट सिटी प्रबंधन वास्तव में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा या फिर यह मामला भी पुरानी फाइलों की धूल में दबकर रह जाएगा। ईमानदार माने जाने वाले नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य के कार्यकाल में भी क्या इस तरह कि बेईमानी और भ्रष्टाचार चलता रहेगा।
टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी
एजेंसी को लाभ पहुंचाने की कोशिश
करोड़ों की संपत्ति को बेहद कम दर पर ठेका
संचालन में 11 माह की देरी और सरकारी धन की बर्बादी
Published on:
22 Oct 2025 09:12 am
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