Smart class (Photo- Patrika)
अशोक विश्वकर्मा
अंबिकापुर. शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक बनाने और छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर सरगुजा जिले के 147 शासकीय स्कूलों में स्मार्ट क्लास रूम (Digital education) की व्यवस्था की थी। उद्देश्य था कि बच्चे पारंपरिक पढ़ाई से आगे बढक़र तकनीक के माध्यम से बेहतर समझ विकसित कर सकें। लेकिन आज ये स्मार्ट क्लास रूम शो-पीस बनकर रह गए हैं। सरगुजा में यह महत्वाकांक्षी योजना अपने मूल उद्देश्य से भटक गई है।
सरगुजा जिले के जिन स्कूलों में स्मार्ट क्लास रूम (Digital education) बनाए गए हैं, वहां आज भी पढ़ाई पारंपरिक तरीकों से ही हो रही है। स्मार्ट बोर्ड, प्रोजेक्टर और कंप्यूटर जैसे आधुनिक उपकरण या तो धूल खा रहे हैं या फिर पूरी तरह कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं। कई स्कूलों में तो उपकरण आए जरूर, लेकिन उन्हें कभी इंस्टॉल ही नहीं किया गया।
जिले के शिक्षकों में तकनीकी ज्ञान की कमी और नए शैक्षणिक तरीकों को अपनाने में रुचि न होने के कारण स्मार्ट क्लास का लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। कई शिक्षक (Digital education) अब भी पुरानी पद्धति पर ही निर्भर हैं और डिजिटल तकनीक को अपनाने में असहज महसूस करते हैं।
स्मार्ट क्लास की व्यवस्था अंबिकापुर मल्टीपरपज व कन्या हाई स्कूल जैसे स्कूलों में भी की गई है। लेकिन यहां भी स्मार्ट क्लास रूम (Digital education) का उपयोग नहीं हो रहा है। मल्टीपरपज स्कूल में तो केवल प्रोजेक्टर लगाए गए हैं, लेकिन इसे संचालित करने के लिए कंप्यूटर व अन्य उपकरण इंस्टॉल नहीं किए गए हैं। उपकरण केवल ऑफिस की शोभा बढ़ा रहेे हैं। यहीं स्थिति कन्या हाई स्कूल की भी है।
स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब यह देखा जाए कि जिले में लगभग 2000 शासकीय स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें प्राथमिक, मिडिल और हाई स्कूल शामिल हैं। जिनमें 147 स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम (Digital education) की शुरूआत की गई है। ताकि निजी स्कूलों की तरह शासकीय स्कूलों को भी डिजिटल शिक्षा बच्चों को मिल सके। लेकिन तकनीकी संसाधन मिलने के बावजूद सुविधा नहीं मिल पा रहा है।
शिक्षा विभाग के अधिकारी भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। स्मार्ट क्लास के निरीक्षण और मॉनिटरिंग के अभाव में स्कूलों (Digital education) में इसका उपयोग सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है। कई बार स्कूलों द्वारा शिकायत करने के बावजूद तकनीकी सहायता नहीं दी जाती, जिससे शिक्षक इन संसाधनों से दूर होते जा रहे हैं।
बच्चों के लिए यह एक बड़ा नुकसान है, क्योंकि डिजिटल (Digital education) माध्यम से पढ़ाई रोचक और प्रभावी बन सकती है। ऑडियो-विजुअल कंटेंट, एनिमेशन, लाइव डेमो और ऑनलाइन शैक्षणिक सामग्री छात्रों की समझ को बेहतर कर सकता है। लेकिन जब ये सुविधाएं सिर्फ कागजों पर है। जमीनी स्तर पर कुछ और ही स्थिति है।
सरगुजा डीईओ दिनेश झा का कहना है कि मेंटनेंस की समस्या होती रहती है। जिन स्कूलों में मेंटनेन्स की आवश्यकता है, वहां प्राचार्यों को बोलकर बनवा जाएगा। स्मार्ट क्लास (Digital education) बच्चों की शिक्षा के लिए काफी बेहतर है। इसे दुरूस्त किया जाएगा।
Updated on:
14 Oct 2025 05:35 pm
Published on:
14 Oct 2025 04:52 pm
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