अमेरिकी फाइटर जेट एफ-16। (फोटो: आईएएनएस)
F-16 fighter jet crash: पोलैंड के रेडोम शहर में 29 अगस्त को एक F-16 फाइटर जेट एयर शो की रिहर्सल के दौरान क्रैश (F-16 fighter jet crash) हो गया, जिसमें पायलट मैसी क्राकोवियन की मौके पर ही मौत हो गई। यह हादसा फिर से यह सवाल उठाता है, जो अक्सर चर्चा में आता है, क्या F-16 वाकई भरोसेमंद लड़ाकू विमान है? और भारत के पास मौजूद रफाल (Rafale) जैसे आधुनिक फाइटर जेट से बेहतर तकनीक होने के बावजूद आखिर क्यों ये विमान इतनी बार क्रैश होते हैं ? जबकि F-16 हल्का, फुर्तीला और लंबी दूरी तक ऑपरेशन करने में सक्षम है। इसमें मल्टीरोल क्षमताएं हैं, यानि यह एयर-टू-एयर, एयर-टू-ग्राउंड और सर्जिकल ऑपरेशन (Surgical operation) सभी कर सकता है। लेकिन इसके बावजूद F-16 में बार-बार हादसे क्यों हो रहे हैं ?
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार भारत के पास कोई भी F-16 फाइटर जेट नहीं है। भारतीय वायुसेना में इस समय राफेल, सुखोई-30MKI, तेजस, मिग-29 और मिराज 2000 जैसे फाइटर जेट शामिल हैं। भारत ने अब तक F-16 को अपने फ्लीट में शामिल नहीं किया है। भारत ने 2007 से 2012 के बीच जब 126 नए लड़ाकू विमान खरीदने की योजना बनाई थी, तब अमेरिका ने F-16 का प्रस्ताव दिया था। लेकिन भारत ने उसकी जगह फ्रांस के राफेल फाइटर जेट को चुना। बाद में 2016–2018 के बीच अमेरिका ने फिर से F-16 का भारत में निर्माण करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने इसका नाम "F-21" रखा और कहा कि यह मॉडल भारत के लिए खास तौर पर बनाया जाएगा। इसे 'मेक इन इंडिया' अभियान से जोड़ा गया था। हालांकि, भारत ने इस प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया। इसके पीछे कई कारण थे, जैसे:
पाकिस्तान के पास पहले से F-16 विमान हैं।
भारत को दो इंजन वाले फाइटर जेट्स की जरूरत थी।
भारत राफेल और तेजस जैसे आधुनिक विकल्पों पर फोकस कर रहा था।
जब पाकिस्तान ने 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद जवाबी हमला करने की कोशिश की, तो भारत के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान ने मिग-21 बाइसन से उड़ान भरी और पाकिस्तान के एक F-16 विमान को मार गिराने का दावा किया। हालांकि पाकिस्तान ने इसे नकारा था, लेकिन भारत ने सबूत भी पेश किए थे।
F-16 फाइटर जेट दुनिया के सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले लड़ाकू विमानों में से एक है। इसे अमेरिका की कंपनी जनरल डायनेमिक्स ने 1970 के दशक में डिजाइन किया था। यह विमान पहली बार 1974 में उड़ाया गया और 1978 में अमेरिकी वायुसेना में शामिल किया गया। बाद में, यह प्रोजेक्ट लॉकहीड मार्टिन कंपनी को मिल गया, जो आज भी इसका निर्माण करती है। F-16 को एक तेज, हल्का और बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान के रूप में तैयार किया गया था, जिसे कई अलग-अलग मिशनों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
F-16 फाइटर जेट की कीमत उसके मॉडल और तकनीक पर निर्भर करती है। इसका लेटेस्ट वर्जन Block 70/72 है, जिसकी कीमत लगभग ₹600 से ₹650 करोड़ रुपये के बीच होती है। पुराने मॉडल्स, जैसे Block 50/52 की कीमत लगभग ₹250 से ₹350 करोड़ के बीच हो सकती है। एक F-16 को उड़ाने और मेनटेन करने की लागत भी काफी ज्यादा होती है। हर एक घंटे की उड़ान पर इसका रखरखाव खर्च करीब ₹20 से ₹25 लाख रुपये आता है।
F-16 एक बेहतरीन फाइटर जेट है, लेकिन भारत ने इसे कई कारणों से नहीं चुना:
पाकिस्तान इसे पहले से चला रहा है।
भारत को डुअल इंजन वाले विमान चाहिए थे।
भारत ने राफेल को तकनीक, ताकत और रणनीति के लिहाज से बेहतर समझा।
भारत स्वदेशी तेजस फाइटर को भी बढ़ावा देना चाहता है।
इसलिए भारत ने F-16 को खरीदने का कोई अंतिम समझौता अब तक नहीं किया।
पिछले दो दशकों में कई देशों—अमेरिका, पाकिस्तान, पोलैंड, दक्षिण कोरिया, जॉर्डन, बेल्जियम, नीदरलैंड आदि—ने F-16 के क्रैश रिपोर्ट किए हैं। इनमें से कई हादसे बेहद अनुभवी पायलटों के साथ भी हुए हैं। कुछ प्रमुख कारण हैं:
पुराने वेरिएंट्स में सिंगल-इंजन सिस्टम होने के कारण यदि इंजन फेल हो जाए, तो पायलट के पास रिकवरी का विकल्प बेहद सीमित होता है। यही कारण है कि डुअल-इंजन वाले रफाल जैसे विमानों में अधिक सुरक्षा रहती है।
F-16 का फ्लाइट कंट्रोल पूरी तरह डिजिटल है, लेकिन इसके हाइड्रोलिक सिस्टम में गड़बड़ी आने पर नियंत्रण खोना आसान है। कई केसों में हाइड्रोलिक फेल्योर के कारण विमान अनियंत्रित होकर नीचे गिर गया।
F-16 में अत्याधुनिक Fly-by-wire system है। इसमें सॉफ़्टवेयर या नेविगेशन डेटा के छोटे से दोष से भी दिशा भ्रम और हादसे हो सकते हैं।
कम ऊंचाई पर जोखिम भरे मोड़ लेना, रफ्तार और थ्रस्ट का सही अनुमान न लगाना भी कई हादसों का कारण बना है। एयर शो या युद्धाभ्यास के दौरान यह जोखिम और बढ़ जाता है।
F-16 की उच्च गति और ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता के बावजूद, पक्षी से टकराव या अचानक मौसम खराब होने पर यह संवेदनशील हो सकता है।
जैसे यमन युद्ध में, दुश्मन के एंटी-एयरक्राफ्ट सिस्टम ने F-16 को निशाना बनाया था। युद्ध क्षेत्र में ऑपरेशन करने वाले फाइटर जेट के लिए यह बड़ा जोखिम होता है।
F-16 की टेक्नोलॉजी बहुत एडवांस है, लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि कई देशों के पास इसकी उचित मेंटेनेंस क्षमता नहीं है। खासतौर पर विकासशील देशों में:
प्रशिक्षित टेक्नीशियनों की कमी
स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता में देरी
नियमित अपडेट न होना
ये सभी फाइटर जेट की विश्वसनीयता पर असर डालते हैं।
भारत और फ्रांस के बीच रक्षा और सामरिक संबंध हमेशा मजबूत रहे हैं। इन संबंधों का एक खास उदाहरण जोधपुर वायुसेना स्टेशन है, जहां जून 2014 में दोनों देशों की वायु सेनाओं ने मिलकर 'गरुड़ 5' संयुक्त युद्धाभ्यास किया था। यह अभ्यास भारत के लिए रणनीतिक और तकनीकी रूप से बहुत अहम साबित हुआ।
इस अभ्यास के दौरान फ्रांस के चार राफेल फाइटर जेट पेरिस से सीधे जोधपुर वायुसेना अड्डे पर उतरे थे। यह पहला मौका था जब राफेल विमान ने भारतीय आकाश में उड़ान भरी थी। इस अभ्यास में दोनों देशों के तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष भी शामिल हुए थे, जो इसकी अहमियत दर्शाता है।
इस युद्धाभ्यास में भारतीय और फ्रांसीसी पायलटों ने एक-दूसरे से युद्धकालीन रणनीतियों को साझा किया। राफेल विमानों ने उड़ान के दौरान हवा में ईंधन भरने की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया और पायलटों ने एयर डिफेंस ऑपरेशन्स के महत्वपूर्ण गुर सीखे। सुखोई और राफेल विमानों के बीच एयर वॉर गेम के जरिए रियल टाइम मुकाबले की तैयारी की गई।
जोधपुर में हुए इस अभ्यास में भारत और फ्रांस की वायुसेनाओं ने अपनी लड़ाकू क्षमता का प्रदर्शन किया था। फ्रांस से आए 100 से ज्यादा पायलटों और क्रू ने भारतीय वायुसेना के साथ मिलकर मिशन ऑपरेशन्स, एयर कॉम्बैट टेक्निक्स और बेस डिफेंस की संयुक्त ट्रेनिंग की। यह अभ्यास हवा में दुश्मन विमानों को निशाना बनाने, बेस की सुरक्षा करने और आपसी तालमेल बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण था।
फ्रांस के पायलटों ने जोधपुर में उड़ान भरते हुए कहा था कि उन्हें भारत में उड़ान की जो आजादी मिली, वह उनके देश में नहीं मिलती। फ्रांस में फ्लाइंग के लिए कई परमिशन लेनी पड़ती हैं, जबकि जोधपुर एयरबेस पर खुले आकाश और बेहतर सुविधाओं के कारण उन्हें ऑपरेशन में आसानी हुई।
फ्रांस की टीम जोधपुर आने से पहले ओमान के अल डफर एयरबेस पर रुकी थी ताकि वहां की गर्मी का अनुभव लेकर भारत की गर्म जलवायु के लिए खुद को तैयार कर सकें। उस वक्त अबू धाबी में तापमान 50 डिग्री के करीब था, और जोधपुर में भी तापमान लगभग 44.6 डिग्री था।
गर्मी को देखते हुए, राफेल बनाने वाली दसॉल्ट एविएशन कंपनी ने पायलटों के लिए खास हेलमेट और कूलिंग वेस्ट तैयार किए थे। ये उपकरण उन्हें गर्म मौसम में लंबे समय तक उड़ान भरने में मदद करते हैं।
वायुसेना विश्लेषक मानते हैं कि F-16 के क्रैश का बड़ा कारण इसका सिंगल इंजन डिज़ाइन, ओवर-यूज़ और ऑपरेशनल मिसमैनेजमेंट है। जबकि रफाल जैसे विमान डुअल इंजन, बेहतर एवियोनिक्स और स्मार्ट मेंटेनेंस सिस्टम के कारण ज्यादा टिकाऊ और सुरक्षित माने जाते हैं।
बहरहाल F-16 एक शानदार फाइटर जेट है, लेकिन यह “हर मिशन में परफेक्ट” नहीं है। इसकी ताकत लंबी दूरी, उच्च गति और कम कीमत है, लेकिन सुरक्षा, स्थायित्व और मल्टी-इंजन जैसे पहलुओं में रफाल जैसे विमान कहीं अधिक भरोसेमंद हैं। यदि कोई देश F-16 का इस्तेमाल करता है, तो उसे अत्याधुनिक मेंटेनेंस इंफ्रास्ट्रक्चर और उच्च प्रशिक्षित क्रू की आवश्यकता होगी, वरना ये हादसे बार-बार दोहराए जाते रहेंगे। अब सवाल यह पैदा होता है कि जब राफेल इतना उन्नत विमान है और F-16 फाइटर जेट तो उससे भी उन्नत है तो यह बार बार क्रेश कैसे हो जाता है।
Updated on:
29 Aug 2025 04:01 pm
Published on:
29 Aug 2025 04:00 pm
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