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कई मोर्चे पर घिरी पाकिस्तानी सेना, खैबर पख्तूनख्वा में ढीली पड़ रही पाक की पकड़

खैबर पख्तूनख्वा (के-पी) में पाकिस्तानी सेना की पकड़ ढीली पड़ती नजर आ रही है। हाल के दिनों में पाकिस्तानी सेना को कई मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ रहा है।

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Pakistani Army

पाकिस्तानी सेना (फाइल फोटो)

खैबर पख्तूनख्वा (के-पी) में पाकिस्तानी सेना की पकड़ ढीली पड़ रही है। अफगानिस्तान के साथ डूरंड लाइन पर हालिया झड़पों के बाद युद्धविराम की सहमति के बावजूद, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने ग्रामीण और कबायली इलाकों पर पूर्ण नियंत्रण कायम कर लिया है। खुफिया सूत्रों के अनुसार, टीटीपी की बढ़ती ताकत से स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि कई सैनिक, खासकर पंजाबी मूल के, इस क्षेत्र में तैनाती से इनकार कर रहे हैं।

ग्रामीण इलाकों में टीटीपी का प्रभुत्व

टीटीपी ने 2021 में अफगान तालिबान की रणनीति को दोहराते हुए सबसे पहले ग्रामीण इलाकों में घुसपैठ की और अब शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा है। उत्तरी और दक्षिणी वजीरिस्तान, बाजौर, खैबर और कुर्रम से सटे इलाकों में टीटीपी का पूर्ण कब्जा है। इन क्षेत्रों को 'नो-गो जोन' में तब्दील कर दिया गया है, जहां पाक सेना के सैनिक ग्रामीण ड्यूटी से कतरा रहे हैं। एक अधिकारी ने बताया कि स्थानीय समर्थन के कारण टीटीपी यहां मजबूत है, जिससे सेना के लिए चुनौती बढ़ गई है। समझौते के तहत, सैनिक अब आक्रामक अभियान के बजाय रक्षात्मक मुद्रा में रहते हैं-यानी 'गोली चले तो गोली चलाओ' की रणनीति। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाबी सैनिक भारी हताहतों और स्थानीय सहानुभूति के कारण तैनाती ठुकरा रहे हैं।

शहरी घुसपैठ: चिंता का सबब

ग्रामीण प्रभुत्व के बाद टीटीपी की शहरी घुसपैठ ने पाकिस्तान को चिंतित कर दिया है। बारा रोड कॉरिडोर, बड़ाबेर और मट्टानी जैसे इलाकों में टीटीपी ने कदम जमा लिया है, जो पहले फ्रंटियर कोर और पुलिस के नियंत्रण में थे। इन क्षेत्रों का इस्तेमाल अब धन संग्रह, हथियार तस्करी और अभियान संचालन के लिए हो रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में टीटीपी कार्यकर्ता सड़कों पर नाचते, चंदा इकट्ठा करते और वाहनों की जांच करते दिखाई दे रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि ये इलाके अब टीटीपी के लॉजिस्टिक बेस बन चुके हैं। खैबर जिले के मलवार्ड में एक फुटबॉल टूर्नामेंट में टीटीपी कमांडर सद्दाम को मुख्य अतिथि बनाया गया, जो स्थानीय समर्थन को दर्शाता है।

बहु-मोर्चा संघर्ष, सेना पर दबाव

आतंकवाद को पालने वाले पाकिस्तान को अब अपने घर में ही जूझना पड़ रहा है। के-पी के अलावा बलूचिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) से भिड़ंत और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में विरोध बढ़ रहा है। अफगान तालिबान से तनावपूर्ण रिश्ते और भारतीय सीमा पर सतर्कता से सेना के संसाधन बंट चुके हैं। 2025 में के-पी में 298 लोग आतंकवाद से मारे गए, जबकि 2,366 खुफिया अभियानों में 368 आतंकी ढेर हुए।