पाकिस्तानी सेना। (प्रतीकात्मक फोटो: एएनआई)
Balochistan Missing Youth: पाकिस्तान के बलूचिस्तान में दमन की एक और दुखद कहानी सामने आई है। पाकिस्तानी सेना ने अशफाक मुश्ताक (Ashfaq Mushtaq Abduction) नाम के एक युवक को कथित तौर पर अगवा कर लिया, जिससे क्षेत्र में चल रही जबरन गायब होने की(Balochistan Missing Youth:) घटनाओं का सिलसिला और गहरा गया है। यह घटना (Balochistan Missing Persons) बलूच समुदाय के लिए नया जख्म है, जो पहले से ही हिंसा और उत्पीड़न से जूझ रहा है। स्थानीय कार्यकर्ता नसीम बलूच ने एक्स पर बताया कि अक्टूबर 2025 की शुरुआत में सुरक्षाकर्मियों ने अशफाक के घर पर छापा मारा और बिना किसी कारण या कानूनी प्रक्रिया के उसे ले गए। परिवार को उसके ठिकाने की कोई खबर नहीं दी गई, जिससे डर बढ़ गया है।
अशफाक का परिवार पहले ही भारी त्रासदी झेल चुका है। मई 2025 में पाक सेना ने उनके चाचा लाला लतीफ को घर में घुसकर गोली मार दी थी। उससे पहले मार्च 2025 में, अशफाक के चचेरे भाई सैफ लतीफ और आठ अन्य रिश्तेदारों को मश्काई से अगवा किया गया। बाद में उनके शव जंगल में मिले, जिनमें गोली और यातना के निशान थे। मानवाधिकार संगठनों ने इसे पाकिस्तान के क्रूर दमन का सबूत बताया। अशफाक का अपहरण इस परिवार की पीड़ा को और बढ़ाता है, जो अब अपने बेटे की सलामती की दुआ मांग रहा है।
बलूचिस्तान में पाक सेना की कार्रवाइयां कोई नई बात नहीं। पिछले कई सालों में हजारों बलूच युवक, कार्यकर्ता और आम लोग गायब हो चुके हैं। इनमें से कई के शव बाद में सुनसान इलाकों में मिले, जबकि कुछ का आज तक पता नहीं चला। पाकिस्तान बलूच अलगाववाद को कुचलने के लिए सख्ती बरतता है, लेकिन इसके लिए वह निर्दोष लोगों को निशाना बनाता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि बलूच संस्कृति, भाषा या आजादी की मांग को भी अपराध माना जाता है। नसीम बलूच जैसे कार्यकर्ता कहते हैं कि यह "नरसंहार का पैटर्न" है।
दुख की बात है कि दुनिया का ध्यान इस संकट पर कम ही जाता है। बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन की खबरें अक्सर दब जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र और अन्य संगठनों ने कुछ मौकों पर चिंता जताई, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अशफाक जैसे मामलों से बलूच समुदाय में गुस्सा बढ़ रहा है, जो बड़े प्रदर्शनों में बदल सकता है। पाकिस्तान की छवि पहले से ही अफगान तनाव और आतंकवाद के आरोपों से खराब है।
बहरहाल अशफाक मुश्ताक का अपहरण बलूचिस्तान के दर्द को और उजागर करता है। परिवारों का दुख, खामोश गलियां और डर का माहौल—यह सब बलूचिस्तान की हकीकत है। क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब इस अन्याय पर आवाज उठाएगा? या फिर बलूचों की पुकार अनसुनी रहेगी? यह सवाल हर अगवे हुए इंसान के साथ और गहराता है।
Updated on:
12 Oct 2025 05:13 pm
Published on:
12 Oct 2025 05:11 pm
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