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हिण्डौनसिटी.
जन्माष्टमी के एक पखवाड़े बाद बुधवार को जलझूलनी एकादशी पर भगवान कृष्ण के विग्रहों की डोल यात्रा निकाली गई। झालर-घंटों की टंकार और जयकारों के बीच मंदिरों में विराजित ठाकुरजी के चल विग्रहों को डोला में विराजित कर नगर भ्रमण कराया गया। शाम को जलसेन के छत्तूघाट पर डोलों में विराजित ठाकुरजी की पंडित गणेशदत्त शास्त्री के मंत्रोच्चार पर सामूहिक आरती की गई। डोलों को तालाब की सीढिय़ों पर ले जा कर ठाकुरजी का चरण प्रच्छाल करवाया गया। बाद में संध्या आरती से पूर्व ठाकुरजी को मंदिरों के गर्भग्रहों में विराजित किया गया।
शाम करीब पांच बजे पुरानी कचहरी के पास स्थित केशवरायजी, जाट की सराय के कल्याणरायजी मंदिर से कल्याण रायजी, केशवपुरा से मुरलीधरजी व तुलसीपुरा शाहगंज से रघुनाथजी मंदिर से डोला रवाना हुए। अलग-अलग मंदिरों से झालर घंटों की टंकार व शंखनाद के साथ डोला निकली। ठाकुरजी की डोला यात्राओं का नीमका बाजार में हरदेवजी मंदिर के पास संगम हुआ। चारों डोला झालर घंटों की टंकार और जयकारों के बीच जलसेन तालाब स्थित छत्तूघाट पहुंची। रास्ते में श्रद्धालुओं ने दर्शन कर डोलों में विराजित ठाकुरजी के विग्रहों के समक्ष फल व चढावा भेंट किए। खुशहाली की कामना से लोगों ने छोटे बच्चों को डोलों के नीचे से निकला।
छत्तूघाट पर पहुंचने एकादशी की व्रत रही महिलाओं की डोलों में सजी ठाकुरजी की झांकी दर्शनों के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। बाद में कल्याण रायजी के महंत गणेश दत्त शास्त्री के निर्देशन में मंदिरों के महंत व पुजारियों ने डोलों में विराजित ठाकुरजी की आरती की। बाद में महंत पुजारियों ने छत्तू घाट पर कुए के पानी से ठाकुर के अंग वस्त्रों को पखार कर यशोदा मैया के जलवा पूजा की प्रतीकात्मक परम्परा पूरी की। इस दौरान केशवरायजी के डोला की मंदिर के रमेश चंद्र, रविप्रकाश, गणेश महंत, मुकेश व गर्वित महंत ने आरती की। वही रघुनाथजी में धमेंद्र महंत, मुरलीधरजी की विनोद पंडा ्रने आरती अतारी। सूर्यास्त से पूर्व डोलों में विराजित ठाकुरजी के विग्रह पर परस्पर सन्मुख होने के बाद मंदिरों में लौट गर्भग्रहों में विराजित हुए। इधर मोहन नगर में शिवालय मंदिर में विराजित ठाकुरजी के विग्रह को रथ में विराजित कर नगर भ्रमण कराया गया। इस दौरान महिलाओं ने डीजे पर बज रहे भजनोंं पर नृत्य किया। रिमझिम बारिश होने से रथ में ठाकुरजी को आस्था से भीगने बचाने के लिए छतरी भी लगाई गई। उल्लेखनीय है कि मंदिरों के गर्भग्रह में विराजित ठाकुरजी के चल विग्रह वर्ष में एक बार जलझूलनी एकादशी पर मंदिर से बाहर निकल नगर भ्रमण करते हैं।