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बदलते दौर में चिट्ठियों की दुनिया सिमटी, पत्रों की जगह स्पीड पोस्ट की रफ्तार

हिण्डौनसिटी. एक दौर था जब चिट्ठियों में भावनाएं बसती थीं, पोस्टकार्ड पर रिश्तों की गर्माहट उतरती थी और डाकिए घर-घर खुशखबरी पहुंचाते थे। समय के बदलाव के साथ अब डाकघरों में चिट्ठी-पत्रों की दुनिया सिमटती नजर आ रही है। डिजिटल युग की दौड़ में सोशल मीडिया और ई-मेल ने कागज पर लिखी चिट्ठियों की जगह ले ली है, लेकिन डाक विभाग भी समय के साथ कदमताल कर रहा है।

हिण्डौनसिटी. एक दौर था जब चिट्ठियों में भावनाएं बसती थीं, पोस्टकार्ड पर रिश्तों की गर्माहट उतरती थी और डाकिए घर-घर खुशखबरी पहुंचाते थे। समय के बदलाव के साथ अब डाकघरों में चिट्ठी-पत्रों की दुनिया सिमटती नजर आ रही है। डिजिटल युग की दौड़ में सोशल मीडिया और ई-मेल ने कागज पर लिखी चिट्ठियों की जगह ले ली है, लेकिन डाक विभाग भी समय के साथ कदमताल कर रहा है। डाक विभाग ने पत्रों को रफ्तार देने के लिए परपरागत रजिस्टर्ड डाक को बंद कर स्पीड पोस्ट में मर्ज कर दिया है। वहीं मनीऑर्डर को ई-मनीऑर्डर में तब्दील कर त्वरित भुगतान देने वाला बना दिया। नई तकनीकों हाइटेक होने के बावजूद डाकघरों में डाकिया (डाक कार्मिकों) का टोटा बना हुआ है।

ब्रिटिश काल में शुरू हुई डाक सेवा के 171 वर्ष के सफर में डाकघरों के विकसित होने के साथ कार्यक्षेत्र भी बढ़ गया है। हिण्डौन शहर में एक प्रधान डाकघर के अलावा दो शाखा डाक घर संचालित हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में डाक व्यवस्था के लिए 18 ब्रांच डाक घर संचालित है। पोस्ट ऑफिस सूत्रों के अनुसार अब डाक घर भी डिजीटल हो गया। डाक विभाग ने एक अक्टूबर से स्पीड पोस्ट में तब्दील कर रजिस्टर्ड डाक को नई रतार देदी है।

अब स्पीड पोस्ट के डिजीटल ट्रेक पर डाक के वितरण की स्थिति को देखा जा सकता है। वहीं जिले मेें डाक की आवाजाही रेलवे की बजाय सड़क मार्ग से स्पेशल बैन से होती है। करौली जिले में आने वाले पत्र अब जयपुर के माध्यम से आते हैं, जबकि पूर्व में पत्रों की आवाजाही ट्रेन के जरिए सवाई माधोपुर से होती थी। हालाकि पत्र लिखने का चलन कम होने से पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्रों की मांग घट गई है, लेकिन स्पीड पोस्ट, पार्सल सेवा में डाकविभाग अभी भी वजूद कायम बनाए हुए है।

180 रुपए मिलता साइकिल भत्ता : शहर का विस्तार होने के साथ डाककर्मी का कार्य क्षेत्र भी बढ़ गया है। ऐसे में डाककर्मी को बाइक से डाक वितरण करनी पड़ती हैं। वहीं विभाग से उन्हें प्रतिमाह महज 180 रुपए साइकिल भत्ता दिया जाता है। डाककर्मी सियाराम व अन्य ने बताया कि शहर के दूरस्त इलाकों में गली- गली साइकिल से सफर करना परेशानी भरा हो रहा है।

बढ़ रहा शहर, कम हो रहे कार्मिक

शहर की आबादी बढ़ने के साथ डाकघरों में डाककर्मी की संया में इजाफा नहीं हुआ है। ऐसे में बड़े क्षेत्र में पत्र और चिटिठ्यों के वितरण में डाकियों को परेशानी होती है। ऐसे में पत्रों का वितरण समय पर नहीं हो पाता है। पहले शहर में करीब 12-15 डाकिया (डाककर्मी) हुआ करते थे। वर्तमान में महज 3 ही है। पत्र वितरण में सहयोग के लिए 2 ग्रामीण डाक सेवकों की मदद ली जा रही है। 7 बीटों में बंटे शहर में कुल 5 पांच डाककर्मी है, यानी दो जनों पर दोहरी बीट का जिमा है।

लोगों का कहना है कि समय के साथ डाकघर बढ़ने की बजाय घट गए हैं। तीन दशक पहले शहर में प्रधानडाक घर के अलावा तीन सब-ऑफिस संचालित थे। इनमें से एक दशक पहले स्टेशन रोड के पोस्टऑफिस को बंद कर दिया गया है। वर्तमान में शाहगंज व महावर धर्मशाला में सब पोस्टऑफिस संचालित हैं। वहीं शहर में हर चौराहे पर दिखने वाल लाल लैटरबॉक्स घट कर 4 ही रह गए हैं।

इनका कहना है

प्रधान डाक घर में पत्र वितरण के लिए कम से कम 10 डाकियों (डाककर्मियों) की जरुरत है। इसके लिए उच्चाधिकारियों से मांग की हुई है। लेकिन पत्रों की संया में कमी आने से पदों में कटौती कर दी गई है। ऐसे में ग्रामीण डाक सेवकों से मदद ली जा रही है।

मनोज कुमार जांगिड़, कार्यवाहक पोस्टमास्टर, प्रधान डाक घर हिण्डौनसिटी