तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने हाल ही में बिहार के कुछ हिंदी अखबारों में एक विज्ञापन जारी किया। इस विज्ञापन में बताया गया है कि राज्य सरकार ने पिछड़े वर्गों यानी बैकवर्ड क्लासेस के लिए जातीय जनगणना कराई है और उनके आरक्षण को 23% से बढ़ाकर 42% करने का फैसला किया है। ये विज्ञापन ऐसे समय में जारी किए गए हैं जब बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। खास बात ये है कि विज्ञापन में सिर्फ तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्का की तस्वीरें हैं। इसमें न तो सोनिया गांधी फोटो दिखाई गई है और न ही राहुल गांधी की।
इसी बात को लेकर बीजेपी के प्रवक्ता अजय आलोक ने सोशल मीडिया पर तंज कसा। उन्होंने पूछा कि क्या यह कांग्रेस के नए युग की शुरुआत है? उन्होंने इसे “गांधी मुक्त कांग्रेस” कहा और दावा किया कि ऐसा बदलाव कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उत्साहित करेगा। बीजेपी प्रवक्ता की इस टिप्पणी पर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं तेज हो गईं। कांग्रेस समर्थकों ने पलटवार करते हुए मणिपुर सरकार का एक विज्ञापन शेयर किया, जिसमें मुख्यमंत्री नजर नहीं आए थे, और कहा कि यहां ‘सुपरहीरो’ ही नहीं दिखा। कुछ यूजर्स ने अजय आलोक की भाषा पर आपत्ति जताई और आरोप लगाया कि उनकी विचारधारा समाज में ज़हर घोलती है। बाद में खुद अजय आलोक ने लिखा कि वो कुछ ज़्यादा ही उत्साहित हो गए थे और अब उन्हें सोशल मीडिया पर गालियों का सामना करना पड़ रहा है।
बात करें तेलंगाना सरकार के फैसले की तो राज्य विधानसभा ने मार्च 2025 में दो बिल पास किए, जिनमें शिक्षा, नौकरियों और स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाने की बात थी। ये बिल राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजे गए हैं। लेकिन मंजूरी अभी तक नहीं मिली है। इसलिए तेलंगाना सरकार ने फैसला किया है कि जब तक केंद्र से मंजूरी नहीं आती, तब तक स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाने के लिए एक अध्यादेश यानी ऑर्डिनेंस लाया जाएगा।
बता दें कि तेलंगाना सरकार इस विज्ञापन के ज़रिए एक तरह से ये संदेश देना चाहती है कि उसने सामाजिक न्याय के लिए ठोस कदम उठाए हैं। और चूंकि बिहार में चुनाव नज़दीक हैं, इसलिए यह विज्ञापन वहां के लोगों को खास तौर पर ध्यान में रखकर जारी किए गए हैं।