वर्ष 1987 से शुरू हुई मां शारदा पद रथ यात्रा आस्था व भाईचारे का बनी प्रतीककोतमा से शुरू हुई पद यात्रा के पाली पहुंचने पर हुआ स्वागत, माता के जयकारों से गूंज उठा नगर
कोतमा से शुरू हुई मां शारदा की पद रथ यात्रा रविवार को पाली नगर पहुंची। जैसे ही यात्रा ने नगर की सीमा में प्रवेश किया, पूरा शहर जय मां शारदा और जय मां बिरासिनी के जयकारों से गूंज उठा। नगरवासियों ने मां की यात्रा का गर्मजोशी से स्वागत किया। यह यात्रा 2 अक्टूबर को कोतमा बस स्टैंड परिसर से प्रारंभ हुई थी। 8 अक्टूबर को मां शारदा धाम मैहर पहुंचेगी। श्रद्धालु मां शारदा के मंदिर में दर्शन कर आल्हा उदल तलैया में मां की प्रतिमा का विसर्जन करेंगे। विसर्जन के बाद सभी श्रद्धालु आरक्षित वाहनों से कोतमा के लिए रवाना होंगे।
श्रद्धालुओं के अनुसार यह यात्रा वर्ष 1987 में शुरू हुई थी, जब लगभग 100 श्रद्धालुओं के छोटे से जत्थे ने इसे प्रारंभ किया था। आज यह यात्रा हजारों भक्तों की भागीदारी के साथ आस्था का विशाल उत्सव बन चुकी है। यह इस यात्रा का छठवां आयोजन है। हर वर्ष नवरात्र के दौरान कोतमा में मां शारदा की प्रतिमा स्थापित की जाती है और दशहरा के बाद उस प्रतिमा का विसर्जन मैहर स्थित मां शारदा धाम में पदयात्रा के माध्यम से किया जाता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि समाज में एकता और भक्ति का सुंदर उदाहरण भी प्रस्तुत करती है। पाली पहुंचने पर समाजसेवी, व्यापारी, जनप्रतिनिधि और आम नागरिकों ने यात्रा की अगवानी की। श्रद्धालुओं का तिलक लगाकर और माला पहनाकर अभिनंदन किया गया। यात्रा जब मां बिरासिनी मंदिर पहुंची, तो श्रद्धालुओं ने विधिवत पूजा-अर्चना की। मंदिर प्रांगण भक्ति गीतों की धुन और जयकारों से गूंज उठा। मां बिरासिनी सेवा समिति की ओर से साईं मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं के लिए नाश्ता और चाय की व्यवस्था की गई। श्रद्धालुओं ने मां बिरासिनी का आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की।
रसीद हाउस के बैनर तले मुस्लिम समाज के लोगों ने भी श्रद्धालुओं के स्वागत में हिस्सा लिया। उन्होंने यात्रा के दौरान पेय पदार्थों का वितरण कर भाईचारे और एकता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। श्रद्धालुओं ने इसे आस्था और सामाजिक सद्भाव की मिसाल बताया। यात्रा में करीब 4 से 5 हजार श्रद्धालु शामिल हैं, जो मां के जयकारों के साथ आगे बढ़ रहे हैं। ढोल-नगाड़ों की ताल, झंडों की लहराती कतारें और भक्तों की भीड़ ने इस यात्रा को एक धार्मिक उत्सव का रूप दे दिया। जुलूस में लगभग 8 से 10 श्रद्धालु मां काली के रूप में सजकर नृत्य करते हुए चल रहे थे, जिससे यात्रा का आकर्षण और भी बढ़ गया। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों ने भी भक्ति भाव से इसमें भाग लिया। कई श्रद्धालु ऐसे भी हैं जो हर वर्ष यह यात्रा पैदल पूरी करते हैं और इसे मां शारदा का आशीर्वाद मानते हैं।
Updated on:
06 Oct 2025 03:28 pm
Published on:
06 Oct 2025 03:25 pm
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