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भारतीय ज्योतिष में केतु को छाया ग्रह माना गया है। यह वास्तव में कोई ग्रह नहीं है वरन आकाशीय ग्रहों की गणना में संतुलन बनाने के लिए धनात्मक बिन्दु के रूप में केतु तथा ऋणात्मक बिन्दु के रूप में राहु को माना गया है। इनका सर्वप्रथम उल्लेख समुद्र मंथन की घटना में मिलता है। ज्योतिष में केतु को ध्वज के रूप में मान्यता दी गई है। केतु के अनुकूल होने पर व्यक्ति के विदेश यात्रा के योग बनते हैं। केतु की शांति के लिए केतु की वस्तुओं का दान, केतु के मंत्रों का जप, गणेशजी की पूजा, भगवती की पूजा आदि बताए जाते हैं।