Karni Mata Mandir Interesting Facts: 14 वीं शताब्दी में बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में देशनोक शहर में करणी माता का निवास था। बिकानेर जिले की सरकारी वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार करणी माता ने अपना सारा जीवन गरीबों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था। बाद में यहीं इनके अनुयायियों ने मंदिर बनवाया, जिसे करणी माता मंदिर के नाम से जाना जाता है।
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कार्य 1530 के आसपास शुरू हुआ और 20वीं शती में बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने इसे राजपूत शैली में पूरा कराया। करणी मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर की नक्काशी बेहद आकर्षक है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
22 मई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi Visit) के दर्शन के लिए आने से मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है। मंदिर का आर्किटेक्चर भी दर्शनीय है। इसके चांदी के किवाड़ (जिस पर माता से जुड़ी किंवदंतियां उकेरी गई हैं), सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
करणी माता मंदिर को चूहों के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि यहां करणी माता, उनके परिवार के लोग और अनुयायी चूहों (काबा) के रूप में निवास करते हैं। इसलिए इस मंदिर में करीब 20 हजार चूहों का निवास है और यहां करणी माता के साथ चूहों की पूजा की जाती है। इसमें सबसे खास हैं सफेद चूहे, जिन्हें देखना अत्यंत पुण्यफलदायक माना जाता है।
मान्यता है कि ये सफेद चूहे करणी माता और उनके 4 भतीजे हैं, जिन्होंने चूहों के रूप में पुनर्जन्म लिया है। इस मंदिर में इतने चूहे हैं और उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे इसके लिए पैर घसीटकर मां की मूर्ति के सामने तक चलना पड़ता है। बिल्ली, चील, गिद्ध आदि शिकारियों से चूहों को नुकसान न पहुंचे इसके लिए मंदिर परिसर में जाली लगाई गई है।
सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस देखने लायक होता है। करणी माता के संबंध में समाज में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं आइये जानते हैं ..
स्थानीय लोगों का मानना है कि करणी देवी मां जगदंबा की अवतार थीं, और आज जहां मंदिर हैं सैकड़ों साल पहले वहीं रहकर एक गुफा में अपने इष्ट की पूजा करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में है। मान्यता है कि माता के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार मूर्ति की गुफा में स्थापना की गई। यह भी मान्यता है कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।
एक अन्य दंतकथा के अनुसार करणी मां साधारण ग्रामीण कन्या थीं, लेकिन कई चमत्कार उनके जीवन से जुड़े हुए हैं। इनका अवतरण चारण कुल में वि. सं. 1444 यानी (20 सितंबर 1387) को अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार को जोधपुर में मेहाजी किनिया के घर हुआ था। करणीजी ने जनहित के लिए तत्कालीन जांगल प्रदेश को अपनी कार्यस्थली बनाया और राव बीका को राज्य स्थापित करने का आशीर्वाद दिया। बाद में करणी माता ने पूगल के राव शेखा को मुल्तान (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) के कारागृह से मुक्त कराकर उसकी पुत्री रंगकंवर का विवाह राव बीका से कराया।
मान्यता है कि करणी माता ने मानवों और पशु-पक्षियों के लिए देशनोक में दस हजार बीघा ओरण (पशुओं की चराई का स्थान) की स्थापना भी की थी। करणीजी की गायों का चरवाहा दशरथ मेघवाल था। एक बार डाकू पेंथड़ और पूजा महला से गायों की रक्षा करते समय मेघवाल की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्होंने डाकू पेंथड़ और पूजा महला का अंत कर दिया।
एक अन्य दंत कथा के अनुसार करणी माता शक्ति का अवतार थीं और ब्रह्मचारी रहीं। उन्होंने अपने पति देपाजी के वंश को आगे बढ़ाने के लिए छोटी बहन का विवाह उनसे करा दिया। करणी जी इनके बच्चों की देखभाल करती थीं। एक बार देपाजी के चार बेटों में से सबसे छोटा लक्ष्मण नहाते समय कोलायत के पास कपिल सरोवर में डूब गया। उनकी छोटी बहन ने करणी माता से लक्ष्मण को वापस जीवित करने की प्रार्थना की।
इस पर करणी माता ने लड़के के शरीर को अपने हाथों से उठाया और उसे उस स्थान पर ले आईं जहां अब मूर्ति (आंतरिक गर्भगृह) है, और दरवाजे बंद कर दिए। साथ ही लोगों को आदेश दिया कि कोई दरवाजा न खोले। किंवदंती है कि वह यमराज के पास गईं और लक्ष्मण का जीवनदान मांगा तो उन्होंने सवाल किया कि ऐसा करने से पुनर्जन्म का चक्र कैसे चलेगा? इस पर करणी माता ने घोषणा की कि अब से उनका परिवार यमराज के पास नहीं आएगा। मैं जहां भी रहूंगी, वे वहीं रहेंगे। जब वे मरेंगे तो मेरे साथ रहेंगे।
फिर करणी माता ने काबा (चूहा) का सजीव रूप चुना, ताकि जब उसके वंश के मानव मरें तो वे काबा के रूप में पुनर्जन्म लें और मंदिर के भीतर उनके पास रहें, और जब काबा मरें तो वे फिर से मानव चरण के रूप में पुनर्जन्म लें।
यहां एक अजब परंपरा ये भी है कि मंदिर की रसोई की कर्मचारी और चूहे एक थाली में भोजन करते हैं। इसके अलावा ये चूहे मंदिर में बैठे भक्तों की गोद में या उनके कंधों पर बैठकर भी भोजन करते देखे जाते हैं। कई भक्तों का मानना है कि यहां के चूहों की लार में औषधीय गुण होते हैं। इसीलिए वे चूहों का जूठे भोजन और दूध का सेवन करते हैं।
1.करणी माता की मूर्ति के सबसे नजदीक रहने वाले लोग देवी को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद लड्डू, मेवे, नारियल और चीनी के क्रिस्टल के साथ-साथ दूध, रोटी, अनाज, फल, सब्जियां और शराब का सेवन करते हैं।
2. छत पर और लोहे के बर्तनों के पास रहने वाले काबा के लिए अनाज, फल, सब्जियां, रोटी और पानी आहार की व्यवस्था की जाती है।
3. काबा का कुतरा भोजन करना विशेष रूप से शुभ और सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
4. गलती से किसी चूहे पर पैर रख गया या उसकी मौत हो गई तो उसकी जगह चांदी या सोने का चूहा रखना पड़ता है।
5. मंदिर के मुख्य पुजारी को बारीदारी कहा जाता है, इसे करणी माता के वंश के लोगों से क्रम से एक महीने के लिए कर्तव्य सेवा के लिए चुना जाता है। साथ ही यही एकमात्र व्यक्ति है मंदिर के गर्भगृह में माता की मूर्ति के समीप तक जा सकता है। बारीदरी एक माह तक मंदिर से बाहर नहीं जा सकता, उसके काबा के साथ ही दिन रात रहना पड़ता है।
6. साल में दो बार करणी माता का मेला लगता है, पहला मार्च अप्रैल में चैत्र नवरात्रि में प्रतिपदा से दशमी तक और दूसरा शारदीय नवरात्रि में सितंबर-अक्टूबर में।
7. देशनोक का ओरण परिक्रमा एक विशेष अनुष्ठान है, जिसे नवरात्रि में हजारों श्रद्धालु करते हैं। 42 किमी का यह क्षेत्र पवित्र माना जाता है। यहां ईंधन के लिए पेड़ की लकड़ी काटने और किसी प्राणी को नुकसान पहुंचाने को अच्छा नहीं मानते ।
8. अमेरिकी रियलिटी शो द अमेजिंग रेस, डॉक्यूमेंट्री फिल्म रैट्स समेत कई शो में इस मंदिर को दिखाया गया है।
Published on:
22 May 2025 01:43 pm