शैलेंद्र तिवारी
राजकोट हादसे के बाद पूरे प्रदेश में बिना फायर सेफ्टी और बिल्डिंग परमीशन के चल रहीं इमारतों को सील किया जा रहा है। अकेले सूरत शहर में छह दिन के भीतर 2400 और अहमदाबाद शहर में दो दिन में 123 इमारतें सील की गई हैं। इनमें स्कूल, सिनेमा, बाजार, मॉल, अस्पताल से लेकर दूसरे कारोबारी प्रतिष्ठान हैं। इन इमारतों में छोटे-बड़े हजारों कारोबारियों का घर चल रहा था। अब सवाल यही है कि इतनी बड़ी संख्या में यह प्रतिष्ठान कैसे बन गए? क्या यह सब बिल्डिंग एक रात में तैयार हुई हैं? क्यों जिम्मेदार आंख मूंदकर देखते रहे, क्यों नहीं उन्होंने समय रहते कार्रवाई की? क्या यह सब कुछ भ्रष्टाचार की वजह से हुआ है?
भ्रष्टाचार की बात तो खुद भाजपा के सांसद ने कही है। राज्यसभा सांसद राम मोकरिया ने कहा है कि उन्हें अपनी बिल्डिंग की फायर एनओसी के लिए 70 हजार रुपए की रिश्वत दी थी। सवाल यही है कि रसूखदार लोगों को भी अगर रिश्वत देकर काम कराना पड़ रहा है तो फिर आम आदमी के साथ क्या हाल हो रहा है? हर हादसा दुखद होता है और भविष्य के लिए सबक होता है। हम अपनी गलतियों से सीखना ही नहीं चाहते हैं। हर बार घटना होती है और कार्रवाई भी होती है, लेकिन कुछ दिन बाद वही हाल हो जाता है। आग की हर बड़ी घटना के बाद नियम बदले, लेकिन आठ हादसों के बाद भी जमीन पर हालात नहीं बदल पाए। आज फिर अवैध इमारतों को सील करने की कार्रवाई हो रही है। उसकी भी एक वजह हाईकोर्ट की स्टेटस रिपोर्ट है, जो चार जून से पहले देना है।
जिन इमारतों को सील किया जा रहा है, उन्हें बनाने वाले, उनकी मंजूरी देने वाले या फिर उस अवैध निर्माण को अनदेखा करने वाले बिल्डर, निगम अधिकारियों के ऊपर भी कोई कार्रवाई होगी या नहीं? बिल्डर तो बिल्डिंग बेचकर चला गया, कारोबारी फंस गया। अवैध निर्माण के नाम पर बाजार सील हो गए और कारोबार भी बंद हो गया। अब बेचारा कारोबारी कहां जाए, वो किसके भरोसे खड़े हो, उसे तो दोनों ओर से नुकसान हुआ है। लेकिन उन लोगों का क्या, जो इस खेल के असली गुनहगार हैं? उन पर कार्रवाई कब होगी? बेहतर हो कि सरकार और प्रशासन इस बार भविष्य के लिए नजीर कायम करे और ऐसे परिणाम दे कि भविष्य में कोई अवैध निर्माण न करे और कराए।
Published on:
01 Jun 2024 04:05 pm
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