नक्सल गढ़ की लता मंगेशकर (Photo source- Patrika)
CG News: जहां कभी बंदूक की आवाज़ें गूंजती थीं, आज वहीं अब भक्ति और संगीत की मधुर धुनें सुनाई देने लगी हैं। यह बदलाव संभव हुआ है सुकमा की बेटी सोढ़ी वीरे के सुरों से एक ऐसी नेत्रहीन बालिका जिसने अपनी आवाज़ के ज़रिए न सिर्फ पूरे बस्तर को मोहित किया, बल्कि सुकमा की पहचान को भी नई दिशा दी है। लोग आज उसे स्नेहपूर्वक ‘‘नक्सल गढ़ की लता मंगेशकर’’ कहकर पुकारते हैं।
जिले के सुदूर गांव पोलमपल्ली से आने वाली वीरे ने बचपन में ही अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी। जब वह घुटनों के बल चलना सीख रही थी, तभी बीमारी ने उसकी दृष्टि छीन ली। मगर इस अंधकार में भी उसने कभी उम्मीद का दीप बुझने नहीं दिया। उसने आंखों से नहीं, बल्कि आत्मा से दुनिया को महसूस किया और वही भाव उसके सुरों में उतर आया।
जब वीरे मंदिरों में या गांव के किसी कार्यक्रम में गाना शुरू करती है, तो पूरा वातावरण श्रद्धा और भावनाओं से भर जाता है। उसकी आवाज़ की गहराई सुनने वालों के दिलों में उतर जाती है। गांव के लोग कहते हैं,‘‘जब वीरे गाती है, तो लगता है जैसे भगवान खुद उसकी आवाज़ में बोल रहे हों।’’
गरीबी और संघर्षों से भरे जीवन में भी वीरे ने कभी हार नहीं मानी। पिता दोरनापाल में मजदूरी करते हैं और मां गृहिणी हैं, पर दोनों को अपनी बेटी की प्रतिभा पर पूरा विश्वास है। संघर्षों को अपनी ताकत बनाकर वीरे आज सुकमा की उम्मीद की आवाज़ बन गई है।
वह वर्तमान में पीएम श्री स्कूल, सुकमा में कक्षा 11वीं की छात्रा है। कक्षा तीसरी के बाद उसने आकार संस्था में दाखिला लिया, जहां उसने संगीत सीखा और अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। वीरे कहती है मेरा सपना है ‘‘मैं बड़ी होकर संगीत की टीचर बनूंगी, ताकि और बच्चों को सुरों का उपहार दे सकूं।’’
CG News: स्थानीय निवासी मड़कम भीमा कहते हैं ‘‘जब वीरे गाती है, तो हमें लता मंगेशकर जी की याद आती है। पोलमपल्ली जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में ऐसी प्रतिभा दुर्लभ है। शासन-प्रशासन को चाहिए कि ऐसे हुनर को प्रोत्साहन दिया जाए।’’ सचमुच, यह नेत्रहीन बालिका सिर्फ एक गायिका नहीं बल्कि सुकमा की नई ध्वनि, एक उम्मीद और उस विश्वास की प्रतीक है, जिसने दिखा दिया कि सुरों की ताकत, गोलियों की आवाज़ से कहीं ज़्यादा प्रभावशाली होती है।
Published on:
07 Oct 2025 11:19 am
बड़ी खबरें
View Allसुकमा
छत्तीसगढ़
ट्रेंडिंग