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विश्वविद्यालय के छात्र अधिक टिकाऊ (सस्टेनेबल) आदतें अपनाने की संभावना रखते हैं

एक नए अध्ययन में 16 से 24 साल के युवाओं के दो समूहों को ट्रैक किया गया और पाया गया कि जीवन में बड़े बदलावों के साथ उनकी रीसाइक्लिंग, यात्रा और खाने की आदतों में भी बदलाव आया।

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जयपुर। विश्वविद्यालय के छात्र अधिक टिकाऊ (सस्टेनेबल) आदतें अपनाने की संभावना रखते हैं। यह शोध उन छात्रों पर किया गया जो विश्वविद्यालय में दाख़िला ले रहे थे और उन युवाओं पर भी जो कोविड-19 की पहली वर्ष की पाबंदियों से गुज़र रहे थे। अध्ययन का मुख्य निष्कर्ष यह था कि जब दिनचर्या बदलती है, तो आदतें भी बदल जाती हैं। कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद ज़्यादातर छात्र पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक और “ग्रीन” जीवनशैली अपनाने लगते हैं। एक नए अध्ययन में 16 से 24 साल के युवाओं के दो समूहों को ट्रैक किया गया और पाया गया कि जीवन में बड़े बदलावों के साथ उनकी रीसाइक्लिंग, यात्रा और खाने की आदतों में भी बदलाव आया।


क्यों बदलती हैं छात्रों की आदतें

शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसे समय को “मोमेंट्स ऑफ चेंज” (परिवर्तन के पल) कहा जाता है — यानी जब जीवन का संदर्भ बदलता है और पुरानी दिनचर्याएँ ढीली पड़ती हैं। जैसे नया शहर, नया कॉलेज या लॉकडाउन जैसी परिस्थितियाँ लोगों को नई दिनचर्याएँ अपनाने पर मजबूर करती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ के डॉ. कालोयान मितेव, जो इस परियोजना के प्रमुख और पर्यावरण मनोवैज्ञानिक हैं, ने कहा —टीम ने घर की आदतें, आहार, यात्रा, खरीदारी और सामाजिक सक्रियता जैसे क्षेत्रों में बदलावों को मापा।


छात्रों में क्या बदलाव दिखे

विश्वविद्यालय में प्रवेश के बाद छात्रों में रीसाइक्लिंग और पैदल या साइकिल से यात्रा करने की प्रवृत्ति बढ़ी। कई छात्रों ने मांस और डेयरी उत्पादों का सेवन कम किया क्योंकि उन्हें नई रसोई और जीवनशैली के साथ तालमेल बैठाना पड़ा। हालांकि, पहले सत्र में नैतिक खरीदारी और पर्यावरणीय आंदोलनों में भागीदारी कुछ घट गई — क्योंकि समय की कमी और प्रत्यक्ष गतिविधियों की कमी के कारण छात्र ऐसे कार्यों में कम शामिल हो पाए। राष्ट्रीय स्तर पर भी 2020 में घरेलू भोजन की बर्बादी में 43% की गिरावट देखी गई, जो साल के अंत तक कम ही बनी रही। उसी साल साइकिल चलाने और पैदल यात्रा करने के आंकड़े भी बढ़े। लेकिन लॉकडाउन के दौरान सक्रिय यात्रा (एक्टिव ट्रैवल) में कमी आई, जो दिखाता है कि स्थानीय परिस्थितियाँ और दूरी जैसे कारक अभी भी सीमाएँ तय करते हैं।


छात्रों की आदतें क्या दर्शाती हैं

दोनों समूहों में एक समानता थी — मूल्य और सोच।
जिन छात्रों में “दूसरों और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता” अधिक थी, वे कम भोजन बर्बाद करते थे और कम पशु उत्पाद खाते थे। विश्वविद्यालय समूह में यह भी देखा गया कि मजबूत पर्यावरणीय सोच वाले छात्रों ने मांस व डेयरी सेवन में अधिक कमी की — यानी जब किचन उनके नियंत्रण में आया, तो उन्होंने अपनी मान्यताओं के अनुसार व्यवहार बदला। हालांकि, यात्रा या सामाजिक सक्रियता के मामलों में यह संबंध उतना स्पष्ट नहीं था, क्योंकि वहां बाहरी सीमाएं (समय, दूरी, अवसर) ज़्यादा प्रभाव डालती हैं।


क्यों कुछ आदतें आसानी से बदलती हैं और कुछ नहीं

कुछ आदतें व्यक्ति के नियंत्रण में होती हैं — जैसे आज क्या खाना है, क्या पकाना है।
जबकि कुछ आदतें बुनियादी ढाँचे या नेटवर्क पर निर्भर होती हैं — जैसे साइकिल लेन, किसी संगठन की मीटिंग, या आसपास की दुकानों में पर्यावरण-अनुकूल चीज़ें उपलब्ध होना।

अध्ययन बताता है कि बदलाव तभी टिकता है जब वह आसान, बार-बार होने वाला और दिखाई देने वाला हो।
छात्रों के मामले में आहार और घरेलू दिनचर्या पहले बदली, जबकि यात्रा और सामाजिक सक्रियता में बदलाव धीमे रहे।


विश्वविद्यालय कैसे मदद कर सकते हैं

पहला वर्ष छात्रों के लिए सबसे व्यस्त होता है, लेकिन इसी समय वे अपनी नई जीवनशैली की नींव रखते हैं।
विश्वविद्यालय यदि कुछ सरल सुविधाएँ दें — जैसे सुरक्षित साइकिल पार्किंग, सस्ते भोजन विकल्प, मरम्मत केंद्र, और पर्यावरण-अनुकूल भोजन को प्राथमिकता देना, तो यह नई आदतों को मजबूत कर सकता है।

आर्थिक स्थिति भी मायने रखती है। 2020 में 80% छात्रों ने वित्तीय चिंता जताई। पैसों की कमी एक ओर तो मांस की खपत घटा सकती है, पर दूसरी ओर महंगे “इको-फ्रेंडली” उत्पादों से दूर भी कर सकती है।

आवास और परिवहन की योजना भी महत्वपूर्ण है — यदि हॉस्टल, बस स्टॉप और ज़रूरी सेवाएँ पास हों, तो पैदल या साइकिल से जाना आसान होता है।

ओरिएंटेशन (प्रवेश सप्ताह) के दौरान यदि विश्वविद्यालय खाना पकाने की वर्कशॉप, फूड वेस्ट चैलेंज या छोटे-छोटे सुझाव दें, तो नई आदतें आसानी से जम सकती हैं।


आगे का संदेश

नीतिनिर्माताओं को ऐसे जीवन परिवर्तन काल — जैसे कॉलेज में दाख़िला, नौकरी बदलना या नया परिवार बनना — को जलवायु कार्रवाई के अवसरों के रूप में देखना चाहिए।

शहर और कॉलेज इन बदलावों के समय सरल और सुलभ विकल्प उपलब्ध करा सकते हैं — जैसे कैंपस के पास साइकिल लेन, भोजन बचाने के किट, और स्थानीय पर्यावरण समूहों में डिजिटल पंजीकरण।

हालाँकि, शोधकर्ताओं ने चेताया कि बिना निरंतर प्रोत्साहन के कुछ आदतें स्थायी नहीं रहतीं।
अगर 1, 3 और 6 महीने बाद हल्की याद दिलाई जाए तो शुरुआती सुधार लंबे समय तक बने रह सकते हैं।

समग्र संदेश आशावादी है —

यह अध्ययन PLOS Climate में प्रकाशित हुआ है।