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मवेशियों का दर्द समझने रखते हैं उपवास : गाय के नीचे से निकल रखते हैं मौन व्रत, जंगल में बिताते हैं पूरा दिन

आदिवासी समाज ने परंपरागत तरीके से मनाई गोवर्धन मौनी व्रत पूजा, पारंपरिक वेशभूषा, लोकनृत्य में नजर आए ग्रामीण

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शहडोल. दीपावली के तीसरे दिन बुधवार को आदिवासी समाज ने आस्था और परंपरा के साथ गोवर्धन मौनी पूजा मनाई। मझौली व कठौतिया गांव में पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर लोकनृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा। ग्रामीणों का कहना है कि यह परंपरा कई दशकों से उनके पूर्वज निभाते आ रहे हैं और अब युवा वर्ग बुजुर्गों से मार्गदर्शन लेकर इसे आगे बढ़ा रहा है। इसे आदिवासी समाज की सबसे बड़ी पूजा भी माना जाता है। गांव के प्रमुख लोगों ने घर-घर जाकर आमंत्रण दिया था। बुधवार सुबह समाज के लोग पारंपरिक वेशभूषा में ठाकुर देव स्थल पर एकत्र हुए और ढोल मांदर की थाप पर नृत्य करते हुए देवस्थल पहुंचे, जहां विधि-विधान से पूजा हुई।

बछिया के नीचे से निकलकर किया मौनी व्रत

देव स्थल पर आदिवासी समाज के लोग उस बछिया की पूजा करते हैं, जो दीपवली से कुछ दिन पहले जन्मी हो। बछिया को पहले नहला धुलाकर उसकी पूजा कर खिलाते हैं, इसके बाद मौनी धारण करने वाले लोग सामूहिक नृत्य के साथ एक-एक कर बछिया के नीचे से निकलते हैं। ऐसी मान्यता है कि बछिया के नीचे से निकलने से मनुष्य रोगमुक्त होता, कष्ट से मुक्ति मिलती है व घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। 6 बार बछिया के नीचे से निकलने के बाद मौनी धारण कर लेते हैं, जो शाम को सातवीं बार फिर बछिया की पूजा कर व्रत तोड़ते हैं।

दशकों से निभाते आ रहे परंपरा

ग्रामीणों का कहना है कि यह परंपरा कई दशकों से उनके पूर्वज निभाते आ रहे हैं और अब युवा वर्ग बुजुर्गों से मार्गदर्शन लेकर इसे आगे बढ़ा रहा है। इसे आदिवासी समाज की सबसे बड़ी पूजा भी मानी जाती है। गांव के प्रमुख लोगों ने घर-घर जाकर आमंत्रण दिया था। बुधवार सुबह समाज के लोग पारंपरिक वेशभूषा में ठाकुर देव स्थल पर एकत्र हुए और ढोल मांदर की थाप पर नृत्य करते हुए देवस्थल पहुंचे।