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देवबंदी उलेमा ने कहा, गैर धर्म की रस्मों में शामिल होना ईमान की कमजोरी!

Deobandi Ulema : कारी इशहाक गोरा ने कहा है कि दूसरे धर्म के लोगों और उनके धर्म की इज्जत करना भाईचारा है जबकि उनके धार्मिक कार्यों में शामिल दिखावा।

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Deobandi

कारी इशहाक गोरा ( फोटो स्रोत सोशल मीडिया )

Deobandi Ulema ''गैर धर्म के पूजा कार्यों या फिर उनकी धार्मिक रस्मों में शामिल होना कोई भाईचारा नहीं यह ईमान की कमजोरी है, एक दिखावा है'' दिवाली से ठीक पहले यह बात देवबंदी उलेमा ने कही है। कारी इशहाक गोरा ( Ihaq Gaura ) ने मुस्लिमों से कहा है कि अपने धर्म की सीमाओं का ध्यान करें। इस्लाम हमें सिखाता है इबादत सिर्फ ''अल्लाह'' की हो सकती है इसलिए दूसरे धर्म के पूजा कार्यों में शामिल होना इसके खिलाफ है।

वीडियो जारी करके दिया बयान ( Deobandi Ulema )

जमीयत दावतुल मुस्लिमीन के सरंक्षक ''मौलाना कारी इशहाक गोरा'' ने एक वीडियो जारी करके यह बात कही है। अब उनकी यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। अपनी इस वीडियो में उन्होंने कहा है कि, इस्लाम हमे गैर धर्म की इज्जत करना सिखाता है। हमें दूसरे धर्म को लोगों और उनके धर्म की इज्जत भी करनी चाहिए लेकिन उनके पूजा कार्यों में शामिल होना हमारे इस्लाम की सीमाओं के बाहर है। उन्होंने अपनी बात को समझाते हुए कहा कि यह भाईचारा नहीं है। भाईचारे के तहत हमें दूसरे धर्म के लोगों और उनके धर्म का सम्मान करना चाहिए लेकिन उनके धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होकर उनके देवी-देवताओं की इबादत करना या उनके धार्मिक कार्यक्रमों में भागीदार बनाना इस्लाम की मान्यताओं के विरुद्ध है।

मुहावरे के रूप में भी दिया संदेश ( Deobandi Ulema )

कारी इशहाक गोरा ने यह भी कहा कि अगर आप किसी दिखावे या किसी अन्य को खुश करने के लिए अपने धर्म की मान्यताओं की सीमाएं तोड़ रहे हैं, उन्हे लांघ रहे हैं तो यह कमजोरी है, भाईचारा नहीं है। उन्होंने एक मुहावरे के रूप में यह भी कहा कि ''दिल में कुछ और है, और आप कुछ और दिखावा करते हैं'' तो यह गलत है, पाखंड है। मुस्लिमों को अपने धर्म के प्रति सजग रहना चाहिए। दूसरे लोगों के धर्म और उनकी भावनाओं के साथ-साथ उनकी मान्यताओं का सम्मान करें लेकिन दूसरे धर्म के लोगों के धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होना अलग बात है, दोनों में फर्क है।

ऐसे समझाई भाईचारे की परिभाषा

कारी इशहाक गोरा ने इस दौरान भाईचारे की परिभाषा भी दी। उन्होंने कहा कि भाईचारा तब होता है जब समाज में इंसाफ हो और रहम हो। लोग एक दूसरे को समझते हों, एक दूसरे के दर्द, सुख और दुख में शामिल होते हैं उन्हे बांटते हों। बोले कि, धर्म की सीमाएं तोड़ने से ही भाईचारा नहीं होता। बोले कि, इस्लाम प्रत्येक मुस्लिम को नर्मी, इंसाफ और आदर का सबक सिखाता है। इसके बाद उन्होंने तर्क दिया और कुरान की आयत '' लकुम-दीनुकुम वालिया दीन'' को समझाते हुए कहा कि इस आयत का मतलब है कि, '' तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म और मेरे लिए मेरा धर्म'' यह बताते हुए उन्होंने कहा कि इस आयत से साफ कहा गया है कि दूसरे धर्म का सम्मान करो लेकिन इसके इसके साथ ही अपने धर्म पर मजबूती के साथ बने रहो।

नोट: इस खबर में उलेमा के वीडियो वाले संदेश को पत्रिका की शैली में लिखा गया है। अलग-अलग व्यक्ति की समझने की क्षमता अलग होती है। इसलिए इस खबर में इस्तेमाल किए गए शब्दों का चयन और समझाने का तरीका भी बदला हुआ हो सकता है। खबर के साथ उलेमा के बयान वाली वीडियो लगाई है। किसी भी कन्फ्यूजन को क्लियर करने के लिए वीडियो देखें।