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100 केस वाले की कैसी रिहाई? नवाबों का तंज, आजम बोले- रामपुर को गांव से शहर मैंने बनाया, नवाबों ने सिर्फ शाही गेट छोड़े

Azam Khan Rampur News: रामपुर की सियासत में 50 साल पुरानी जंग फिर छिड़ गई है! जेल से रिहा आज़म खान और नवाब परिवार के बीच बयानबाज़ी ने पुराने जख्म हरे कर दिए हैं। नवाब हमजा मियां ने आज़म को 100 केस वाला कैदी बताया, तो आज़म ने पलटवार करते हुए कहा कि नवाबों ने गरीबों को कुचला, मैंने रामपुर को शहर बनाया।

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azam khan vs rampur nawab feud 50 years political rivalry history

100 केस वाले की कैसी रिहाई? Image Source - 'X' @AbdullahAzamKhan

Azam khan vs rampur nawab feud 50 years political: समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आज़म खान की रिहाई के बाद सियासत एक बार फिर गरमा गई है। रामपुर के नवाब हैदर अली खान उर्फ हमजा मियां ने आज़म पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि आज़म खान उस कैदी की तरह हैं जो जेल से बाहर आया है लेकिन कभी भी फिर अंदर जा सकता है। जिस पर गरीबों की ज़मीन हड़पने, डकैती, जाली पासपोर्ट रखने और सरकारी फंड के दुरुपयोग जैसे 100 केस दर्ज हों, उसकी रिहाई किसी को प्रभावित नहीं करती।

हमजा मियां ने यह भी कहा कि सिंपैथी बटोरने वाले आज़म खान कभी नवाबों की ईंट से ईंट बजा नहीं सकते। आज भी रामपुर की पहचान नवाबों से है और आगे भी रहेगी।

राजनीति की जड़ें 1970 के दशक में

1970 के दशक की कहानी इस सियासी अदावत की असली शुरुआत बताती है। उस दौर में नवाब मिकी मियां (ज़ुल्फ़िकार अली खान) कांग्रेस के सांसद थे, जबकि युवा आज़म खान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई कर रहे थे। वहीं से उन्होंने राजनीति की राह पकड़ी।

आज़म ने जनता पार्टी से 1977 में पहला चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। फिर उन्होंने बीड़ी मजदूरों और रामपुरी चाकू कारीगरों के हक में आवाज उठाई। उन्होंने नवाबों की रज़ा टेक्सटाइल मिल के कर्मचारियों की हड़ताल का नेतृत्व किया, जिसने दोनों परिवारों के बीच दुश्मनी की पहली लकीर खींच दी।

सत्ता में आने के बाद बढ़ी दूरी

आज़म खान 1980 में पहली बार विधायक बने और इसके बाद नौ बार विधानसभा पहुंचे। सत्ता में पहुंचते ही उन्होंने नवाब खानदान को निशाने पर लिया। 2012 से 2017 के बीच कैबिनेट मंत्री रहते हुए आज़म ने रामपुर में बने 10 से ज़्यादा शाही दरवाज़ों को जर्जर बताकर तुड़वा दिया।

नवाब परिवार का आरोप है कि आज़म ने यह कदम जानबूझकर उठाया ताकि रामपुर से नवाबों की ऐतिहासिक पहचान मिटाई जा सके। नवाब हमजा मियां के मुताबिक, “शाही दरवाज़े आज नहीं हैं, लेकिन लोग अब भी उन्हें पुराने नामों से याद करते हैं। इससे साफ है कि न आज़म खान और न उनकी सात पीढ़ियाँ हमारी विरासत मिटा सकती हैं।”

नवाबों की सियासी विरासत और आज़म की चुनौती

नवाब हमजा मियां ने आरोप लगाया कि आज़म खान ने वही परिवार भुला दिया जिसने कभी उनका भला किया था। उन्होंने कहा, “AMU में एडमिशन मिकी मियां ने ही करवाया था और उनके दादा को नवाब रज़ा अली खान ने सरकारी अस्तबल में नौकरी दी थी। फिर भी आज़म उन्हीं के खिलाफ बयानबाज़ी करते हैं।”

हमजा मियां का दावा है कि नवाबों ने रामपुर के विकास में 15 से अधिक फैक्टरियां, रज़ा डिग्री कॉलेज और बिजलीघर जैसी सुविधाएं दीं, जबकि आज़म ने अपनी जौहर यूनिवर्सिटी को परिवार का व्यापार बना दिया, जहां लाखों की फीस ली जाती है।

जेल से रिहाई के बाद भी विवाद जारी

आज़म खान के जेल से निकलने के बाद दिए गए बयानों पर भी नवाब हमजा ने तंज कसा। उन्होंने कहा, “आज़म कहते हैं कि जेल में खराब खाना मिला। क्या जेल में 5 स्टार होटल जैसा खाना मिलता है?” उन्होंने आगे कहा, “कैबिनेट मंत्री रहते हुए आज़म ने सैकड़ों बेगुनाहों को जेल भेजा। गरीबों की ज़मीनें हड़प लीं, कब्रिस्तान की मिट्टी तक उखड़वाई। आज वही शख्स सिंपैथी पाने के लिए दुखड़ा गा रहा है।”

रामपुर में वजूद नहीं बचा, बिहार में प्रचार से क्या हासिल होगा

नवाब हमजा ने आज़म खान के बिहार में स्टार प्रचारक बनने पर भी चुटकी ली। उन्होंने कहा, “जो शख्स अपने ही शहर में अप्रासंगिक हो गया है, वो बिहार में किसी को क्या जिताएगा?” उन्होंने आगे कहा कि आज़म अब सियासी रूप से खत्म हो चुके हैं और 50 महीने जेल में रहना इस बात का सबूत है कि उनके कर्मों का हिसाब जनता ने भी देख लिया है।

आज़म का पलटवार- मेरे सीने पर रखे गए थे तमंचे

आज़म खान ने भी चुप्पी नहीं साधी। रिहा होने के बाद पहले इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “1980 में मिकी मियां के लोग पूरे बूथ लूट लिया करते थे। मैंने आवाज उठाई तो मेरे सीने पर 8-10 तमंचे रख दिए गए।” उन्होंने दावा किया कि उन्होंने ही रामपुर को एक असली शहर का रूप दिया। नवाबों के दौर में यहां सिर्फ खपरैल के घर थे। मैंने नाले, सड़कें और इमारतें बनवाईं। उधर, नवाब परिवार ने उनके बेटे अब्दुल्ला खान पर फर्जी प्रमाणपत्र का केस दर्ज कराया था, जिसके चलते अब्दुल्ला की विधायकी भी रद्द हो गई।

अब्दुल्ला खान ने भी बोला हमला

आज़म के बेटे अब्दुल्ला ने भी नवाबों पर ऐतिहासिक आरोप लगाते हुए कहा, “1857 की लड़ाई में नवाबों ने अंग्रेजों का साथ दिया था। उन्होंने कई क्रांतिकारियों को मरवा दिया। आज भी उनकी सोच आम जनता से दूरी बनाए रखने वाली है।” उन्होंने कहा कि नवाबों की मानसिकता अब भी औपनिवेशिक है, जबकि आज़म खान गरीबों की आवाज हैं।

नवाब गेट गिराने से बढ़ा आज़म का जनाधार

वरिष्ठ पत्रकार फज़ल शाह फ़ज़ल बताते हैं कि रामपुर के शाही गेट को गिराने में प्रशासन को 72 घंटे लगे थे, क्योंकि वह गेट बेहद मजबूत था। आज़म खान ने इसे गिराकर जनता में यह संदेश दिया कि “अब नवाबों की नहीं, गरीबों की सत्ता है।” फज़ल के मुताबिक, “नवाब अमीरी की सियासत करते रहे, आज़म ने गरीबी की। इसी टकराव ने आज़म को मुसलमानों का बड़ा नेता बना दिया।”

आज़म-अब्दुल्ला पर बैन, नवाब फैमिली को 2027 में फायदा तय

वरिष्ठ पत्रकार विवेक गुप्ता का मानना है कि आज़म और उनके बेटे अब्दुल्ला दोनों के चुनाव लड़ने पर बैन लगना नवाब परिवार के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। आज़म खान 2028 तक और अब्दुल्ला 2029 तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकते। ऐसे में रामपुर की राजनीति में नवाब फैमिली एक बार फिर मजबूत स्थिति में लौट सकती है।