रायपुर में दुनिया का सबसे दुर्लभ डिलीवरी केस (फोटो सोर्स- पत्रिका)
Raipur Rare Delivery Case: आंबेडकर अस्पताल के ऑब्स एंड गायनी विभाग की डॉक्टरों ने प्रदेश की पहली एब्डोमिनल प्रेग्नेंसी डिलीवरी कराई है। इस केस में नौ माह का भ्रूण गर्भाशय में पलने के बजाय पेट में पल रहा था। दुनिया में भी ऐसे गिने-चुने केस आए हैं। डॉक्टरों के अनुसार, विश्व के मेडिकल लिटरेचर में ऐसा कोई उदाहरण नहीं, जहां 9 माह की गर्भवती की इमरजेंसी में एंजियोप्लास्टी की गई हो और जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बचाया हो। यह दुनिया के रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस में एक है। इस केस की विस्तृत स्टडी कर इसे अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित करने की तैयारी की जा रही है।
डॉक्टरों ने बताया कि 40 वर्षीय महिला पहली बार मई में चौथे माह के गर्भधारण के साथ अस्पताल आई थी। उसकी हालत गंभीर थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए कार्डियोलॉजिस्ट से संपर्क किया गया और तत्काल एंजियोप्लास्टी की गई। इस दौरान एसीआई में विशेष सावधानी बरती गई, जिससे गर्भ में पल रहे भ्रूण को कोई नुकसान न हो। खून पतला करने की दवा भी दी गई।
अस्पताल में गर्भावस्था के दौरान किसी महिला की एंजियोप्लास्टी का यह पहला मामला रहा। गर्भावस्था के 37वें हफ्ते में महिला फिर से अस्पताल आई। केस की गंभीरता को देखते हुए गायनी, सर्जरी, एनेस्थीसिया व कार्डियोलॉजी विभाग की संयुक्त टीम बनाई गई। शिशु गर्भाशय में नहीं, बल्कि पेट में विकसित हो रहा था और आंवल कई अंगों से रक्त ले रही थी। टीम ने सुरक्षित रूप से शिशु को बाहर निकाला। साथ ही भारी रक्तस्राव की संभावना को रोकने के लिए चिपकी प्लेसेंटा के साथ गर्भाशय को भी निकालना पड़ा।
40 वर्षीय महिला का पहला बच्चा डाउन सिंड्रोम व हार्ट रोग से ग्रसित था। कुछ सालों पहले उसकी मौत हो चुकी है। इसलिए 40 वर्ष की उम्र में दोबारा मां बनने से महिला भाव विह्ल हो उठी। डॉक्टरों के अनुसार, डिलीवरी के बाद जच्चा-बच्चा को डिस्चार्ज कर दिया गया था। फॉलोअप में बुलाने पर मां व शिशु को स्वस्थ पाया गया। डॉक्टरों के अनुसार, ऐसी महिला को मातृत्व सुख का एहसास कराना हमारे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है।
ऑब्स एंड गायनी के डॉक्टरों के अनुसार, सेकंडरी एब्डोमिनल प्रेग्नेंसी एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का वह रूप है, जिसमें भ्रूण पहले गर्भाशय/ट्यूब में ठहरता है और बाद में पेट के अंगों में जाकर विकसित होने लगता है। यह मां के लिए अत्यंत खतरनाक स्थिति होती है और अधिकांशत: भ्रूण जीवित नहीं रहते। ऑपरेशन ही इसका एकमात्र समाधान है। ’सेकेंडरी’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि संभवत: भ्रूण पहले गर्भाशय/फैलोपियन ट्यूब में ठहरता है और प्रारम्भिक समय में ही वहां से हट कर पेट के अंगों (जैसे- आंत, लिवर, स्प्लीन या ओमेंटम या गर्भाशय की बाहरी सतह ) पर जाकर चिपक जाता है।
डॉ. ज्योति जायसवाल, डॉ. रुचि किशोर गुप्ता, डॉ. सुमा एक्का , डॉ. नीलम सिंह, डॉ. रुमी, एनेस्थीसिया विभाग से डॉ. शशांक, डॉ. अमृता और जनरल सर्जरी विभाग से डॉ. अमित अग्रवाल।
Published on:
17 Oct 2025 10:15 am
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