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Raipur News: गीतांजलि ने इलाज के बाद समाजसेवा की ठानी, मां-बेटी के दामन में छाई खुशियां

Raipur News: आम दिनों की शांति में सुरक्षा कर्मियों की चहल-पहल और अधिकारियों की फौज ने माहौल को गंभीर बना दिया था। लेकिन बीच-बीच में दिल के मरीजों की आवाजाही और बच्चों की मासूम हंसी ने वातावरण को उम्मीद की किरणों से भर दिया।

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Raipur News: गीतांजलि ने इलाज के बाद समाजसेवा की ठानी, मां-बेटी के दामन में छाई खुशियां

Raipur News: नवा रायपुर के श्रीसत्य साईं संजवनी हॉस्पिटल का परिसर बुधवार को कुछ अलग ही रंग में रंगा था। आम दिनों की शांति में सुरक्षा कर्मियों की चहल-पहल और अधिकारियों की फौज ने माहौल को गंभीर बना दिया था। लेकिन बीच-बीच में दिल के मरीजों की आवाजाही और बच्चों की मासूम हंसी ने वातावरण को उम्मीद की किरणों से भर दिया।

1 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन बच्चों से संवाद करने वाले हैं, वे सभी माता-पिता के साथ यहां पहुंचे हैं। उनकी आंखों में चमक थी, वो चमक जो बीमारी की काली छांव से निकलकर जीवन की रोशनी में डूबी हुई थी। इन्हीं चेहरों में एक मां-बेटी की जोड़ी थी, जिनके दिलों में अब सिर्फ प्यार और कृतज्ञता की धडक़नें बाकी थीं। आइए, सुनते हैं उनकी वो भावुक कहानियां, जो आंसुओं को मुस्कान में बदल देती हैं…।

बेटी के गम से उबरे नहीं कि मां भी बीमार पड़ गईं

कांटाभांजी से आईं आरती दास और उनकी बेटी स्नेहा दास दोनों दिल की बीमारी की जद में आ गईं। आरती की आंखें नम हो जाती हैं जब वे बताती हैं, बेटी के जन्म से ही मेरे दिल में छेद था। 2011 से उसका इलाज शुरू हुआ और 2014 में ऑपरेशन हो गया। स्नेहा अब सातवीं क्लास में है, लेकिन उसके दर्द से हम उबर ही नहीं पाए थे कि 2017 में मेरे दिल में भी छेद निकला। ऑपरेशन हुआ। बेंगलूरु में इलाज के दौरान हमें सत्य साईं हॉस्पिटल का पता चला। आज हम दोनों स्वस्थ हैं।

अस्पताल में सेवा करना चाहती हूं

बेमेतरा की गीतांजलि राजपूत की कहानी तो जैसे समाजसेवा की मिसाल है। वे बताती हैं, 2016 में मेरा दिल का ऑपरेशन हुआ। दो साल पहले से इलाज चल रहा था। नौवीं क्लास में थी तब बीमारी पता चली। अब मैं एमएसडब्ल्यू (मास्टर ऑफ सोशल वर्क) कर रही हूं। पूरी तरह ठीक हूं। आंसू भरी मुस्कान के साथ वे कहती हैं, समाजसेवा क्या होती है, मैंने यहीं के डॉक्टर्स और सिस्टरों से सीखा। कभी यहां सेवा का मौका मिले तो जरूर करूंगी।

वह भी एक दौर था, जो बीत गया

मुंगेली से आए आशीष सिंह की आंखों में पुरानी यादें झलकती हैं। वे बताते हैं, 2018 में मेरा इलाज हुआ। मैं 12वीं का छात्र हूं। पांचवीं में था तब बीमारी पता चली। राजनांदगांव में हॉस्पिटल की जानकारी मिली। डॉक्टर्स ने खूब हौसला बढ़ाया। वे गहरी सांस लेकर कहते हैं, गुजरे वक्त को याद करता हूं तो तकलीफ होती है, लेकिन फिर सोचता हूं। वह भी एक दौर था, जो बीत गया।


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