350 करोड़ की घटिया दवा की बिक्री ( File Photo - Patrika )
CG News: प्रदेश में न केवल सरकारी अस्पतालों में बल्कि सीजीएमएससी से सप्लाई दवा सब स्टैंडर्ड निकल रही है। यही नहीं पिछले पांच सालों में मेडिकल स्टोर में बिक रही 177 दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं। कुल 2472 सैंपल लिया गया है। ( CG News ) एक अनुमान के अनुसार, हर साल 350 करोड़ रुपए से ज्यादा की सब स्टैंडर्ड दवाएं बिक रही हैं। इसके बाद भी ड्रग विभाग मेडिकल स्टोर में बिक रही दवाओं का नियमित सैंपल नहीं लेता।
दो साल के बच्चों के लिए खांसी की सिरप पर बैन है। इस मौके पर ’पत्रिका’ ने दवा कारोबारियों व जानकारों से बात की तो पता चला कि दवा के बिजनेस में किस तरह खेल चल रहा है। ड्रग विभाग की सुस्त कार्यप्रणाली के कारण किसी भी मामले में दवा कंपनी या सप्लायर को सजा नहीं हुई। गौर करने वाली बात ये भी है कि ज्यादातर मामले में विभाग किसी भी दवा निर्माता कंपनी को कोर्ट के कटघरे में खड़े नहीं कर पाया। किसी मामले में सजा भी नहीं हुई। जबकि ड्रग एक्ट के अनुसार तीन साल की सजा से लेकर 20 हजार जुर्माना शामिल है। आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ड्रग विभाग की कार्यप्रणाली कैसी है।
खुले बाजार में बिक रही दवा की गुणवत्ता कितनी अच्छी है, यह जांच के बाद ही पता चलती है। प्रदेश में मेडिकल स्टोर में बिक रही दवाओं की जांच का जिम्मा ड्रग विभाग के पास है, लेकिन सुस्त कार्यप्रणाली की वजह से आम लोगों को सब स्टैंडर्ड दवा खाना पड़ रहा है। चार साल में 2076 दवाओं के सैंपल लिए गए।
सब स्टैंडर्ड दवा खाने से लोगों की बीमारी ठीक होने के बजाय बढ़ जाती है। एंटीबायोटिक से लेकर पेन किलर व दूसरी जरूरी दवाइयां है, जो लोग उपयोग करते हैं। ड्रग विभाग के इंस्पेक्टर नियमित सैंपल नहीं लेते हैं। इसलिए लोगों को क्वालिटीविहीन दवा खाने की मजबूरी है। राजधानी समेत रायपुर जिले में 1300 से ज्यादा मेडिकल स्टोर है। ये प्रदेश में सबसे ज्यादा है। कई मेडिकल स्टोर्स की कभी जांच नहीं होती। यही नहीं सैंपल तक नहीं लेते।
घटिया व नकली मेडिकल प्रोडक्ट दुनियाभर के लोगों को प्रभावित करते हैं।
निम्न व मध्यम आय वाले देशों में 10 में से कम से कम 1 दवा घटिया या नकली होती है।
देश प्रति वर्ष घटिया व नकली चिकित्सा उत्पादों पर 30.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करते हैं।
घटिया व नकली उत्पाद अक्सर ऑनलाइन या अनौपचारिक बाजारों में बेचे जाते हैं।
सीनियर फार्माकोलॉजिस्ट, डॉ. सूरज अग्रवाल ने कहा कि सब स्टैंडर्ड दवाओं में पूरा कंटेंट नहीं होता। इसलिए यह बीमारियों में पूरा असर नहीं करता। इससे गंभीर मरीजों पर जान का खतरा बढ़ जाता है। दवा अच्छी कंपनी का लें। अब अच्छी फार्मास्युटिकल कंपनियां भी जेनेरिक दवा बना रही हैं। ब्रांडेड व जेनेरिक दवाओं का असर समान होता है।
2019-20 480 32
2020-21 689 40
2021-22 502 35
2022-23 405 32
2023-24 396 38
कुल 2472 177
Published on:
17 Oct 2025 03:17 pm
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