co2 कम उत्सर्जन करने पर मिलेगा फायदा (फोटो सोर्स- iStock)
Chhattisgarh News: औद्योगिक सेक्टर के लिए हाल ही में जारी नई अधिसूचना से खासी हलचल मची हुई है। इसके तहत औद्योगिक इकाइयों को अब अपना उत्पादन कार्बन उत्सर्जन की तय सीमा के दायरे में करना होगा। मसौदे में प्रोत्साहन और जुर्माने का स्पष्ट प्रावधान किया गया है। जो यूनिट कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाएगी, उन्हें कार्बन क्रेडिट मिलेगी, यानी फायदा होगा।
तय सीमा से अधिक उत्सर्जन पर कार्बन क्रेडिट खरीदकर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क के रूप में अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा, लेकिन जो इकाई अधिसूचना नियमों का उल्लंघन करती पाई जाएगी, उस पर दोगुना जुर्माना भी लग सकता है। यह कदम औद्योगिक प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ग्रीन हाउसेस गैसों को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया है। इसके दायरे में छत्तीसगढ़ की दर्जनभर औद्योगिक इकाइयों सहित देशभर की 100 से अधिक यूनिट सूचीबद्ध की गई हैं, जिसमें स्टील, एल्युमिनियम व अन्य भारी उद्योग शामिल हैं।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मुताबिक औद्योगिक इकाइयों को वर्ष 2027 तक कार्बन उत्सर्जन में कमी का लक्ष्य रखा है। छत्तीसगढ़ सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में एक है। हर इकाई को भारतीय कार्बन बाजार (आईसीएम) पोर्टल पर पंजीयन कराना अनिवार्य होगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निगरानी का जिम्मा सौंपा गया है। वहीं, ऊर्जा विकल्पों में इस्पात उद्योगों को नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से भी जोड़ने का प्रयास किया गया। इसके लिए 455 करोड़ रुपए की लागत से पांच पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किए गए हैं। इसे सबसे पहले 2026 में बोकारो और बाकी प्रोजेक्ट 2030 तक पूरा करना है।
एक टन कार्बन के उत्सर्जन में कटौती का प्रमाणन होता है एक कार्बन क्रेडिट। कंपनियां, पर्यावरण प्रोजेक्ट आदि के जरिए जब ग्रीन हाउस गैसों में कमी की जाती है तो इसका फायदा आर्थिक मुनाफे के रूप में निर्धारित होता है। कार्बन क्रेडिट की वेल्यू का आकलन आमतौर पर डॉलर में किया जाता है, जो अलग-अलग सेक्टर के लिए अलग-अलग हो सकती है।
इसके लिए केंद्र सरकार ने कार्बन ट्रेडिंग स्कीम लॉन्च की है और केंद्रीय पर्यावरण विभाग की क्लाइमेट चेंज फाइनेंस सेल, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण और ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशियंसी को नोडल एजेंसी बनाया है।
औद्योगिक इकाइयों को ग्रीन मैकेनिज्म पर जाना समय की मांग है और इसी संदर्भ में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए नियम-कानून भी बनाए जा रहे हैं। उत्पाद पर भी कार्बन फुटप्रिंट दिखानी होगी। इसी आधार पर नए ट्रेड समझौते हो रहे हैं। ग्रीन हाइड्रोजन जैसे विकल्प अपनाने की जरूरत है।
विशेषज्ञों मानना है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों को ध्यान में रखकर वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूटीओ) सहित अन्य बड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं कार्बन उत्सर्जन कम करने पर जोर दे रही हैं। भारत सरकार ने भी नेट जीरो का लक्ष्य तय किया, इसके तहत कार्बन डायऑक्साइड सहित अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को धीरे-धीरे शून्य स्तर पर लाना है।
दूसरी ओर कार्बन फुटप्रिंट के आधार पर अब देशों के बीच ट्रेड समझौतों के लिए दबाव बढ़ने लगा है। ऐसे में समय की मांग है कि कार्बन मुक्त ऊर्जा के विकल्पों पर जाकर उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए।
Updated on:
23 Oct 2025 04:43 pm
Published on:
23 Oct 2025 04:42 pm
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