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निमोनिया का नया खतरा! 15 दिनों में 50 युवाओं की मौत, कोरोना और स्वाइन फ्लू रिपोर्ट नेगेटिव लेकिन… डॉक्टरों ने जताई चिंता

Raipur News: राजधानी रायपुर में निमोनिया खतरनाक बनता जा रहा है। पिछले 15 दिनों में आंबेडकर अस्पताल समेत विभिन्न निजी अस्पतालों में 50 से ज्यादा मरीजों की मौत हुई है।

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मौत (Photo source- Patrika)

मौत (Photo source- Patrika)

CG News: राजधानी रायपुर में निमोनिया खतरनाक बनता जा रहा है। पिछले 15 दिनों में आंबेडकर अस्पताल समेत विभिन्न निजी अस्पतालों में 50 से ज्यादा मरीजों की मौत हुई है। इसमें गौर करने वाली बात ये है कि ये बच्चे नहीं, बल्कि 18 से 22 साल के युवा हैं।

डॉक्टरों के अनुसार मरीज रात में आते हैं और सुबह होने तक उनकी जान चली जाती है। वे कुछ समझे, इससे पहले मरीजों की मौत हो जाती है। ये जरूर है कि लक्षण के अनुसार मरीजों का कोरोना व स्वाइन फ्लू की जांच कराई जाती है, लेकिन रिपोर्ट नेगेटिव निकलती है।

सीटी स्कैन जांच में जरूर फेफड़े में काफी इंफेक्शन मिलता है, जो कि वायरल निमोनिया से मिलता जुलता है। राजधानी समेत अभी प्रदेश में ठंड ठीक से शुरू नहीं हुई है और वायरल निमोनिया से युवा मरीजों की जान जाने लगी है। उनका कहना है कि सीवियर निमोनिया से बच्चों की ज्यादा मौत होती है, लेकिन किशोरों की मौत चौंकाने वाली है।

आंबेडकर अस्पताल में पिछले 15 दिनों में 150 से ज्यादा मरीजों का इलाज किया गया। ये मरीज पीडियाट्रिक के अलावा चेस्ट व मेडिसिन विभाग में भर्ती हुए हैं। इनमें से 10 से ज्यादा मरीजों की मौत हुई है। वहीं निजी अस्पतालों में भी काफी मरीज आए हैं और 40 से ज्यादा मरीजों की जान चली गई।

देश में 14 फीसदी बच्चों की मौत निमोनिया से

देश में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की 14 फीसदी मौत निमोनिया से होती है। हर साल करीब 1.27 लाख बच्चों की मौत निमोनिया से होती है। हालांकि 2013 से मृत्यु दर में कमी आई है। निमोनिया से बच्चों को बचाना संभव है। इसके लिए नियमित टीकाकरण, पोषण और पर्यावरण को सुधारने की जरूरत है।

बैक्टीरियाजनित निमोनिया का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जा सकता है। देश में निमोनिया से आधी मौत तो उत्तर भारत में हो जाती है, क्योंकि वहां कड़ाके की ठंड पड़ती है। केंद्र सरकार ने 2025 तक प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर निमोनिया से होने वाली मृत्यु दर को तीन से कम करने का लक्ष्य रखा है।

केस- 1. 18 वर्षीया युवती रात को निजी अस्पताल में भर्ती किया गया। कोरोना व स्वाइन फ्लू की जांच और सीटी स्कैन हुआ। सुबह डॉक्टर के पहुंचने के पहले उसकी मौत हो गई। डॉक्टर ने मौत की वजह निमोनिया बताई। दोनों रिपोर्ट नेगेटिव थी।

केस- 2. 22 वर्षीय युवक को सांस की गंभीर बीमारी के बाद भर्ती किया गया। दोपहर युवक की जांच की गई। देर रात उसने दम तोड़ दिया। यह केस भी 18 वर्षीय युवती की तरह थी। डॉक्टर समझ ही नहीं पाए। बताया गया कि उन्हें सीवियर निमोनिया था।

निमोनिया के लक्षण

  • बुखार के साथ पसीना-कंपकंपी।
  • बलगम के साथ खांसी आना।
  • सांस लेने परेशानी या तेज होना।
  • थकान-कमजोरी होना।
  • सीने में दर्द, बेचैनी, भूख कम।

मरीज की हालत गंभीर हो जाए तो उसे बचाना मुश्किल

डॉक्टरों का कहना है कि बरसात या इसके बाद सीजनल फ्लू के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। इनका बुखार नहीं उतरता और जांच होती है, तब वायरल, बैक्टीरियल या फंगल निमोनिया निकलता है। समय पर इलाज नहीं मिले और मरीज की हालत गंभीर हो जाए तो उसे बचाना मुश्किल हो जाता है।

कार्बाइड गन से 10 की आंखें खराब, 4 की सर्जरी, 150 से ज्यादा की आंखों में चोट

छत्तीसगढ़ में कार्बाइड गन से 10 लोगों की आंखें खराब हुई हैं। इनमें 4 लोगों की सर्जरी की गई है। नेत्र सर्जन के अनुसार इनमें एक की रोशनी पूरी तरह चली गई है, लौटने की बिल्कुल संभावना नहीं है। बाकी तीन लोगों की रोशनी लौटने की उम्मीद है। यही नहीं पटाखों से 150 से ज्यादा लोगों की आंखों में चोटे आई हैं। इनमें 4 बच्चों की आंख बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई है।

डॉक्टरों के अनुसार, ऑपरेशन के बाद आंख ठीक हो सकती है। कार्बाइड गन प्रदेश के लिए नई है। पं. जवाहरलाल नेहरू सरकारी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध आंबेडकर अस्पताल में 3 लोगों की आंख कार्बाइड गन से खराब हुई है। इनमें दो लोगों की सर्जरी कर दी गई है। एक की आंख की रोशनी वापस लौट सकती है।

दूसरी मरीज के बारे में डॉक्टर कुछ भी बताने से इनकार कर रहे हैं। वहीं तीन दिनों की ओपीडी में 75 से ज्यादा मरीजों का इलाज किया गया है। कुछ मरीजों को ओपीडी से इलाज कर वापस भेजा जा रहा है तो कुछ को भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है।

वहीं बड़े निजी अस्पतालों में कार्बाइड गन से 7 लोगों की आंखों को क्षति पहुंची है। इनमें 3 की सर्जरी की जरूरत पड़ी। जबकि बाकी मरीजों का इलाज भर्ती कर किया जा रहा है।

अस्थमा के मरीजों के लिए पटाखे वाले 3 दिन घुटन वाले

अस्थमा के मरीजों के लिए पटाखे वाले तीन दिन घुटनभरे होते हैं। आंबेडकर, एम्स, जिला व निजी अस्पतालों में ओपीडी में अस्थमा के मरीजों की संख्या 4 से 5 गुनी बढ़ गई है। पटाखे फूटने के बाद जो गैस निकलती है, वह न केवल अस्थमा, बल्कि सामान्य लोगों के लिए भी नुकसानदायक होता है। चूंकि अस्थमा के मरीजों को पहले से सांस लेने की तकलीफ होती है, इसलिए उनकी समस्या बढ़ जाती है।

आंबेडकर के चेस्ट, मेडिसिन विभाग में 500 से ज्यादा मरीजों का इलाज किया जा रहा है। इसमें 20 फीसदी यानी 100 मरीज अस्थमा वाले हैं। दिवाली के पहले उनकी संख्या 20 से 25 ही थी। चेस्ट विभाग के एचओडी डॉ. आरके पंडा व मेडिसिन विभाग के प्रभारी एचओडी डॉ. योगेंद्र मल्होत्रा के अनुसार पटाखे फूटने के बाद अस्थमा के मरीजों को सांस लेने में तकलीफ होती है। ठंड के सीजन में भी उन्हें बार-बार अस्पताल आने की जरूरत पड़ती है।

कार्बाइड गन से आंखों को चोट पहुंचने की घटना चौंकाने वाली है। दो मरीजों की सर्जरी की गई है। -डॉ. निधि पांडेय,एचओडी नेत्र रोग विभाग, आंबेडकर अस्पताल