
श्री प्रेम शुक्ल 
(राष्ट्रीय प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी)
राहुल गांधी खुद को 'जनेऊधारी हिंदू' बताते हैं। चुनावों के समय मंदिरों की चौखट पर माथा टेकते हैं, पर मौका मिलते ही उनके अंदर का सनातन-विरोधी विष बाहर आ ही जाता है। अनेकों बार हिंदू आस्था पर आघात करने वाले राहुल गांधी ने इस बार बिहार सहित पूरे भारत की लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा को भी नहीं बख्शा। बिहार के चुनावी रण में उतरते ही उन्होंने इस पवित्र पर्व को 'ड्रामा' बताकर करोड़ों भारतीयों की भावनाओं पर, उनकी संस्कृति और आस्था की आत्मा पर, सीधा हमला किया है।
राहुल गांधी को छठ पूजा 'ड्रामा' लगता है। विदेशी संस्कृति में पले-बढ़े, सनातन विरोधी जहर उगलने वाले राहुल गांधी को क्या पता कि छठ पूजा केवल पर्व नहीं, यह छठी मैया की ममता और भगवान सूर्य की शक्ति की आराधना का संगम है। यह पर्व चार दिनों की यह तपस्या प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का सबसे बड़ा माध्यम है। यह प्रकृति को समर्पित पर्व है, जिसमें सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। यह पर्व अब बिहार, झारखंड, पूर्वी यूपी की सीमाओं को लांघकर मॉरीशस, न्यूयॉर्क और फिजी तक पहुंच चुका है।
मोदी सरकार इसे यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल कराने के लिए भी प्रयासरत है, ताकि छठ पूजा को योग और दुर्गा पूजा की तरह विश्व स्तर पर पहचान मिल सके। पूरी दुनिया इस पर्व की भव्यता और वैज्ञानिकता का साक्षात्कार करने वाली है और राहुल गांधी करोड़ों भारतीयों की तपस्या को 'ड्रामा' कहकर उनका उपहास उड़ा रहे हैं। हिंदू धर्म का मजाक बना रहे हैं।
इस बार छठ पूजा की शुरुआत में ही राहुल गांधी ने अपना रंग दिखा दिया था। राहुल गांधी के लिए छठ पूजा का महत्व कितना है, यह उनकी 'शुभकामनाओं' की शैली से ही स्पष्ट हो जाता है। जिस पर्व को वह 'ड्रामा' बताते हैं, उसी पर्व के लिए वह दिखावे के लिए बधाई देते हैं। और तो और, वह इसमें भी ईमानदारी नहीं दिखाते! सोशल मीडिया पर छठ पूजा की बधाई के लिए जिस तस्वीर का इस्तेमाल उन्होंने इस बार किया है, वही पुरानी तस्वीर उन्होंने 2024 में भी पोस्ट की थी।
यह कोई 'टेक्निकल एरर' नहीं है, यह उनकी सांस्कृतिक उदासीनता का खुला प्रमाण है। यह बताता है कि उन्हें बिहार और वहां के त्योहारों से रत्ती भर भी लगाव नहीं है। एक पवित्र पर्व, जो आस्था, परंपरा और विविधता से भरा है, उसके लिए दिल से एक नई शुभकामना या एक नया भाव व्यक्त करना भी राहुल गांधी को ज़रूरी नहीं लगा। वह पुराने 'कंटेंट' को सिर्फ दिखावा करने के लिए पोस्ट करते हैं, मानो छठ पूजा कोई साधारण पर्व हो, जिसे बस 'कॉपी-पेस्ट' करके निपटा देना है। जब राहुल गांधी की शुभकामनाएं ही 'कॉपी-पेस्ट' हैं, तो आस्था भला 'ओरिजिनल' कैसे होगी?
छठ पूजा का अपमान राहुल गांधी की सनातन विरोधी 'ट्रेक रिकॉर्ड' की महज एक और कड़ी है। उनके हिंदू आस्था पर किए गए आघातों की सूची लंबी है। 2024 में उन्होंने संसद में खड़े होकर कहा कि जो लोग खुद को हिंदू कहते हैं, वे चौबीसों घंटे "हिंसा, नफरत और असत्य" करते हैं। यह बयान करोड़ों हिंदुओं को हिंसक और घृणित बताने की सोची-समझी साजिश थी। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को 'नाच-गाना' बताकर अपमान करना और राम मंदिर निर्माण कार्य को 'अन्याय' कहना कांग्रेस के युवराज की राम-विरोधी मानसिकता का चरम था।
ये वही राहुल गांधी हैं, जिन्होंने हिंदू धर्म में 'शक्ति' शब्द को लेकर टिप्पणी करते हुए ने कहा था, "हम एक शक्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं।"जबकि हिंदू धर्म में 'शक्ति' का मतलब नकारात्मक ऊर्जा नहीं, बल्कि मातृशक्ति और सृजन की ऊर्जा होती है, जिसका उपहास उड़ाना उनकी बौद्धिक अज्ञानता को दर्शाता है।
'हिंदू आतंकवाद' का फेक नैरेटिव भी राहुल गांधी और उनके सिपहसालारों ने ही गढ़ा और पूरी दुनिया में हिंदू धर्म को बेइज्जत किया। राहुल गांधी उसी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं, जिसने एक समय देश के हिंदुओं को आतंकी साबित करने के लिए 'सैफरन टेरर' और 'हिंदू आतंकवाद' जैसे शर्मनाक शब्द न सिर्फ गढ़े, बल्कि ढिठाई से प्रचारित भी किया।
दरअसल जिसके लिए भगवान राम 'पौराणिक' हों, रामसेतु 'काल्पनिक' हो, और भगवान शिव 'राजनीतिक प्रदर्शन' का हथियार हों, उसके लिए छठ पूजा का 'ड्रामा' होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
राहुल गांधी के बयानों को केवल उनके अविवेक और उनकी व्यक्तिगत भूल मानकर खारिज नहीं किया जा सकता। यह उनकी पार्टी कांग्रेस की हिंदू विरोधी नीति का प्रमाण है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया और पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के उसमें शामिल होने पर आपत्ति जताई थी। 2007 में कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर रामसेतु के अस्तित्व को नकार दिया था, ताकि इसे तोड़ने के लिए सेतुसमुद्रम परियोजना को आगे बढ़ाया जा सके। और तो और 500 वर्षों के संघर्ष और तपस्या के बाद जब राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का अवसर आया तो कांग्रेस ने राम की मर्यादा का अपमान करते हुए राम मंदिर का बहिष्कार किया। 2024 में कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी बनाकर अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता पर अंतिम मुहर लगा दी। कांग्रेस के सहयोगी और नेता सनातन धर्म को 'मलेरिया' और 'डेंगू' बताकर इसे मिटाने की बात करते हैं, जिस पर राहुल गांधी और उनकी पार्टी मौन रहती है।
कांग्रेस की यह पूरी राजनीति तुष्टीकरण के इर्द-गिर्द घूमती है। जिन राहुल गांधी को लगता है कि मंदिर जाने वाले लोग ही बसों में लड़कियों को छेड़ते हैं, जिनकी नज़र में सांसद सिर्फ 'मंदिर में रखी मूर्तियां' हैं जिनमें कोई शक्ति नहीं, वे करोड़ों लोगों के आस्था के महापर्व छठ पूजा को 'ड्रामा' ही तो समझेंगे।
क्या राहुल गांधी को यह अधिकार है कि वह भारत की आत्मा समझे जाने वाले पवित्र पर्व छठ पूजा को 'ड्रामा' कहें? क्या सिर्फ इसलिए कि उन्हें अपने वोट बैंक की पूजा के अलावा किसी और आस्था में विश्वास नहीं है, वह इस महापर्व का अपमान करेंगे? यह अपमान केवल बिहार का नहीं, करोड़ों हिंदुओं का है, छठी मइया में आस्था रखने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं का है। यह पूरे भारत की अस्मिता का अपमान है, जिसकी संस्कृति में छठ पूजा का आत्मिक महत्व है।
Updated on:
31 Oct 2025 04:17 pm
Published on:
31 Oct 2025 04:09 pm
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