
Cheap on Android but expensive on iPhone: आज का समय डिजिटल युग में तब्दील हो चुका है। हर तरफ लोगों के हाथ में स्मार्टफोन हैं। इसी बात का फायदा ई-कॉर्मस कंपनियां भी उठा रही हैं। ई-कॉमर्स से लेकर क्विक डिलीवरी प्लेटफॉर्म्स एल्गोरिदम के दम पर एक ही प्रोडक्ट का अलग-अलग दाम एंड्रॉयड और आईफोन दिखाकर मोटी कमाई कर रहे हैं। जिसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ रहा है।
हालांकि, यह अंतर एक जगह नहीं लगभग सारे प्लेटफॉर्म्स पर ही देखने को मिला। कैब बुकिंग, फूड डिलीवरी, ग्रोसरी स्टोर जैसे प्लेटफॉर्म्स पर यूजर्स को स्मार्टफोन के आधार पर अलग कीमतें प्रदर्शित हुईं। यह संभव है कि अगर आप आईफोन यूजर हैं तो आपको एंड्रायड की तुलना में कई प्लेटफॉर्म्स पर ज्यादा पैसे चुकाने पड़ रहे होंगे। जानिए पूरा सच patrika.com की पड़ताल में...
इस प्राइस डिफरेंस को समझने के लिए पत्रिका ने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक समय पर, एक लोकेशन और एक प्रोडक्ट को एंड्रॉयड और आईफोन डिवाइस से एक साथ ऑर्डर किया।
पत्रिका ने पहले मिनटों में ग्रॉसरी डिलीवर करने वाले प्लेटफॉर्म का सहारा लिया। जिसमें चॉकलेट का एक बॉक्स ऑर्डर किया। इसमें डिलीवरी का अनुमानित समय दोनों में अलग-अलग दिखाया गया। आईफोन में चॉकलेट के बॉक्स का बिल 860 रुपए बना। जिसे 8 मिनट में डिलीवर करने का दावा किया गया। वहीं, एंड्रॉयड में 853 रुपए बिल बना। उसमें 11 मिनट में ऑर्डर की डिलीवरी प्रदर्शित हुई।
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पत्रिका ने चिनार इन्क्यूब बिजनेस सेंटर से एयरपोर्ट के लिए कैब बुक की। जिसमें बाइक और ऑटो का किराया तो एंड्रॉयड और आईफोन में एक जैसा दिखा। मगर, कार सेगमेंट में एंड्रायड में 408 रुपए तो आईफोन में 475 रुपए किराया प्रदर्शित हुआ। इसमें सीधे-सीधे 67 रुपए का अंतर देखने को मिला।
सोशल मीडिया एक्सपर्ट जसकरन सिंह मनोचा ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स में प्राइस चेंज का खेल कोई नया नहीं है। आए दिन एलगोरिदम और एडवांस्ड होते जा रहे हैं। जिससे ये सारी कंपनियां एक-एक यूजर का डेटा खंगाल कर डेटा स्टोर करती हैं। इसके मैकेन्जिम- कुकीज के जरिए जैसी चीजों से जरिए आपका डेटा फिल्टर होता है। एंड्रायड और आईफोन यूजर्स के प्राइस डिफरेंस की बात की जाए तो ऐसे कई मामले कोर्ट में पेंडिंग चल रहे हैं। जिसमें अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स के साथ-साथ अलग डिवाइस पर रेट अलग-अलग हैं।
उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि आप गूगल के जरिए जब किसी भी चीज को सर्च करते हो तो गूगल का एल्गोरिदम आपकी एक्टिविटी ट्रैक कर लेता है। जैसे ईमेल रजिस्ट्रेशन, वीडियो स्क्रीनिंग, वेबसाइट पर रुकने का समय। उसी एक्टिविटी के आधार पर डेटा को ट्रैक किया जाता है। इसके बाद कंपनियां तय करती हैं कि किस ग्राहक को किस प्रोडक्ट के लिए कितनी कीमत चुकानी है।
एक्सपर्ट जसकरन सिंह मनोचा ने बताया कि देखिए, आईफोन के ग्राहक प्रीमियम हैं। अगर आपको आईफोन में किसी भी चीज का सब्सक्रिप्शन चाहिए तो वह महंगा ही होगा। यहां तक अपने एप को एप्पल स्टोर लाने के लिए डेवलपर्स को 15-30% कमीशन देना होता है। कई बार ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स इसकी भरपाई के लिए कीमतों में बढ़ोत्तरी करते हैं।
इन्फ्लुएंसर पूजा छाबड़ा ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर करते हुए यह खुलासा किया कि आईफोन उपयोगकर्ताओं को एक क्विक डिलीवरी एप पर वही प्रोडक्ट एंड्रायड यूजर की तुलना में काफी महंगे दामों पर दिखाए जा रहे हैं। एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आईफोन दाम चेक किया तो आईफोन और एंड्रायड के बड़ा फर्क दिखा। आईफोन में उसी मोबाइल का दाम ज्यादा था, जबकि एंड्रायड पर सस्ता था।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सौरभ शर्मा नामक यूजर ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर iPhone और Android पर Mokobara का केबिन सूटकेस चेक किया। जिसका दाम Android पर 4119 में और iOS पर 4799 में दिखाई पड़ा। जिसका स्क्रीनशॉट यूजर ने एक्स पर साझा किया। Android 65% डिस्काउंट मिला तो आईफोन पर 60 प्रतिशत डिस्काउंट मिला। जबकि नो-कास्ट EMI में भी बड़ा असर देखने को मिला। Android यूजर को 1,373 मासिक किस्त तो iOS वाले को 1,600 मासिक किस्त दिखाई दी।
भारतीय उपभोक्ता उत्पाद वितरकों ने Zomato, Swiggy और Zepto की तेज़ डिलीवरी सेवाओं के खिलाफ एक एंटीट्रस्ट मामला दर्ज किया है। जिसमें भारी डिस्काउंट देने पर जांच करने की मांग की गई है।
दरअसल, ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (AICPDF) ने 20 फरवरी, 2025 को कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI) के साथ यह शिकायत दर्ज की थी कि क्विक-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के द्वारा हैवी डिस्काउंट देने unfair pricing model बना दिया। AICPDF ने दावा किया कि इसके चलते स्थानीय किरान स्टोर इन प्लेटफॉर्म्स हैवी डिस्काउंट वाले प्लेटफॉर्म्स को मुकाबला नहीं सकते।
फेडरेशन ने 25 प्रोडक्ट्स की ऑनलाइन और ऑफलाइन कीमतों की तुलना की। जैसे कि Nescafe कॉफी जार का एक वेरिएंट। जिसमें छोटे रिटेलर्स 622 रुपये में खरीदते हैं। वह एक क्विक डिलीवरी ऐप पर 514 रुपये, एक क्विक कॉर्मस और फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म पर 577 रुपए और एक क्विक कॉर्मस और फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म 625 रुपये में बेचा रहा था। इसका निष्कर्ष यह निकला कि इन प्लेटफॉर्म्स के द्वारा प्रतिस्पर्धा कानूनों का उल्लंघन किया है। हालांकि, मामला अभी चल रहा है।
Published on:
05 Nov 2025 06:00 am
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