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वे चंद लफ्जों से जादू बिखेरने का हुनर बखूबी जानते थे…

नीलेश जैन, पूर्व एक्जीक्यूटिव क्रिएटिव डायरेक्टर ओगिल्वी इंडिया

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आम आदमी की बात आम आदमी के तरीके से करने में विश्वास रखने वाले एड गुरु पीयूष पांडे चंद लफ्जों से जादू बिखेरने का हुनर बखूबी जानते थे। बहुत दूर की सोचते थे, लेकिन समाधान आसपास से ही ढूंढा करते थे। सबसे बड़ी खासियत थी उनकी सादगी, सहजता और सरलता। बात करने की सरलता से ही वे लोगों के दिलों में जगह बना लेते थे। वे बिना किसी आडंबर के, सीधी-सादी भाषा में इतनी गहराई से बात करते थे कि वह सीधे दिल में उतर जाती थी। उनकी दृष्टि पारखी थी। वे हुनर को पहचानने में भी गलती नहीं करते थे। जिन लोगों को खुद अपनी रचनात्मकता का अंदाजा नहीं होता था, वे उन्हें पहचान लेते थे। मैं विज्ञापन की दुनिया से नहीं, बल्कि अध्यापन से जुड़ा हुआ था, पर उन्होंने मुझमें एक संभावना देखी और मेरा हाथ थामकर मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया।

वे कहते थे कि विज्ञापन की दुनिया में आने के लिए इसी पढ़ाई जरूरी नहीं, जरूरी है इंसानी जज्बातों की समझ। यही उनकी सोच थी- असल इंसान से जुड़ने वाली। उनका जाना विज्ञापन जगत के लिए ऐसा शून्य है, जिसे भी भरा नहीं जा सकता। वे बेहद भावुक और जीवंत व्यक्ति थे। कभी किसी जिंगल की पंक्तियां सुनकर उनकी आंखें नम हो जातीं, तो कभी किसी क्रिएटिव आइडिया पर इतना खुलकर हंसते थे कि पूरा माहौल गूंज उठता। हंसते-हंसते भी उनकी आंखों में नमी उतर आती थी। वे अपने जूनियर्स को आगे बढ़ाने में विश्वास रखते थे, हमेशा हौसला बढ़ाते थे। एक बार उन्होंने मुझसे पूछा था, 1983 का वर्ल्ड कप वेस्टइंडीज क्यों हार गया? फिर खुद ही बोले, "क्योंकि इंडिया ने ज्यादा रन बनाए थे और वेस्टइंडीज ने उसे हल्के में ले लिया।" उस दिन उन्होंने मुझे सिखाया कि जब लक्ष्य छोटा होता है, तो प्रदर्शन भी छोटा रह जाता है। वे ऐसे जादूगर थे, जो शब्दों से दिलों को छू लेते थे और अपनी सहजता से हर किसी को खास बना देते थे।