प्रतीकात्मक तस्वीर।
नोएडा : दिवाली का उल्लास नजदीक आते ही लाखों प्रवासी मजदूरों और नौकरीपेशा लोगों के चेहरों पर मुस्कान के साथ-साथ चिंता की लकीरें भी खिंच रही हैं। साल भर की कमाई से घर लौटने का सपना देखने वाले ये यात्री अब महंगे बस किरायों की मार झेल रहे हैं। प्राइवेट बसों के दामों में 10 गुना तक की बढ़ोतरी ने जेबें ढीली कर दी हैं। मजबूरी में लोग लास्ट-मिनट बुकिंग पर दोगुना-तिगुना किराया चुकाने को मजबूर हैं, ताकि अपनों के साथ दीपों का त्योहार मना सकें।
दिवाली के ठीक पहले के दिनों में प्राइवेट बसों की बुकिंग वेबसाइट्स पर हाहाकार मचा हुआ है। दिल्ली से लखनऊ जाने वाली स्लीपर बस का किराया, जो सामान्य दिनों में मात्र 600 रुपये होता है, अब 6,000 रुपये तक पहुंच गया है। इसी तरह, सिटिंग टिकट की कीमत 3,200 रुपये हो चुकी है। यह हाल सिर्फ दिल्ली-लखनऊ रूट तक सीमित नहीं है। यूपी-बिहार बॉर्डर पर जाने वाली अधिकांश प्राइवेट बसें इसी तरह के दाम वसूल रही हैं।
ट्रैवल एजेंसियों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के अनुसार, 18, 19, 21 और 22 अक्टूबर को दिल्ली से निकलने वाली ज्यादातर बसें पहले से ही बुक हो चुकी हैं। हफ्तों पहले बुकिंग करने वाले यात्रियों को राहत मिली, लेकिन अब आखिरी मौके पर टिकट लेने वालों को कहीं ज्यादा चुकाना पड़ रहा है।
दिल्ली से कानपुर जाने वाले रूट पर सामान्य दिनों में बस का किराया 700 रुपये होता है, जो दिवाली के दौरान बढ़कर 3,500 रुपये हो जाता है। इसी तरह, दिल्ली से वाराणसी का किराया त्योहार के समय 5,770 रुपये तक पहुंच जाता है, जबकि दिल्ली से गोरखपुर का 7,304 रुपये और प्रयागराज का 7,350 रुपये हो गया है। इन रूट्स पर सामान्य किराए की जानकारी उपलब्ध न होने के कारण सटीक तुलना मुश्किल है, लेकिन दिवाली की मांग ने दामों को कई गुना बढ़ा दिया है। ये आंकड़े बुकिंग साइट्स जैसे रेडबस और मेकमायट्रिप से लिए गए हैं।
दिल्ली, मुंबई और अन्य महानगरों में रहने वाले यात्री अपनी मजबूरी बयां कर रहे हैं। एक प्रवासी मजदूर ने बताया, 'घर से दूर साल भर मेहनत करते हैं, ताकि दिवाली पर अपनों के साथ पटाखे फोड़ सकें। लेकिन ये महंगे किराए देखकर लगता है, दिवाली मनाने का बजट ही उड़ गया। ट्रेनों में तो महीनों पहले वेटिंग लिस्ट लग जाती है, और जनरल कोच में पैर रखने की जगह नहीं मिलती। बस ही आखिरी सहारा बचती है।'
एक अन्य यात्री ने कहा, 'प्राइवेट बस वाले इस मौके का फायदा उठाते हैं। सरकारी बसों का तो टाइमटेबल भी फिक्स नहीं—कब चलेगी, कब रद्द हो जाएगी, पता ही नहीं। मजबूरी में इतने महंगे दाम चुकाने पड़ते हैं।' यात्रियों का कहना है कि साल में एक बार आने वाले इस त्योहार पर परिवार के साथ इकट्ठा होने का सुख ही सबकुछ है, लेकिन बढ़ते खर्चे ने इसे बोझिल बना दिया है।
सरकार और परिवहन विभाग ने पहले भी ऐसे मौकों पर विशेष ट्रेनें और सब्सिडी वाली बसें चलाने की घोषणा की है, लेकिन इस बार अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा। यात्रियों से अपील है कि बुकिंग से पहले कई प्लेटफॉर्म्स चेक करें और संभव हो तो शेयर्ड कैब या कारपूलिंग जैसे विकल्प अपनाएं। वरना, इस दिवाली पर 'दिवाला' निकलने का डर सताता रहेगा।
Published on:
13 Oct 2025 08:16 pm
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