-जीवनदायिनी नदियों में घुल रहा है जहर, सुधार के प्रयास बढ़ाने की दरकार
-भारत की नदियों में प्रदूषण : सीपीसीबी की 2025 की रिपोर्ट में सामने आए तथ्य, राजस्थान व मध्यप्रदेश की नदियों में भी बढ़ रहा प्रदूषण
भारत देश की नदियां, जो कभी हमारे जीवन व संस्कृति की धारा थी। आज गहरे संकट के दौर से जूझ रही है। केन्द्र व राज्य सरकारों के लाख प्रयासों के बावजूद जीवनदायिनी धाराओं का स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा है। मानवीय हस्तक्षेप, औद्योगिक कचरे का बेलगाम प्रवाह, सीवेज की अनियंत्रित निकासी ने देश की धड़कन रूपी नदियों को न केवल जहरीला बना दिया है बल्कि इन्हें नहाने लायक भी नहीं छोड़ा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 2025 में हाल ही जारी रिपोर्ट ने इस संकट को बेरहम सच्चाई के साथ उजागर किया है। हालांकि 2018 के 351 प्रदूषित नदी खंडों से घटकर 2025 में 296 रह गए, लेकिन 807 स्थानों पर बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी ) स्तर 3 एमजी/एल (मिलीग्राम प्रति लीटर ) से ज्यादा की पुष्टि ने सरकारी दावों पर सवाल खड़े कर दिए। यह रिपोर्ट राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम के तहत 2155 स्थानों पर 2022-2024 के डेटा पर आधारित है। जिसके आधार पर केन्द्र व राज्यों को नदियों को स्वच्छ बनाने की दिशा में एक्शन प्लान बनाना है। रिपोर्ट के अनुसार 32 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की 623 नदियों में 62% स्थानों पर बीओडी स्तर 3 एमजी/एल से ज्यादा है, लेकिन शेष 271-311 नदियां ज्यादा प्रदूषित हैं।
महाराष्ट्र की नदियों में सबसे ज्यादा प्रदूषण-
देश के 14 राज्यों में जहां बीओडी 30 एमजी/एल से 210 एमजी/एल तक पहुंच गया। प्रदूषण के लेवल प्रथम स्तर महाराष्ट्र में प्रदूषित रिवर खंड 54 (सबसे अधिक), केरल (31), उत्तर प्रदेश (17-40), कर्नाटक (14), मध्य प्रदेश (18), मणिपुर (18), बिहार (12), उत्तराखंड (12), पश्चिम बंगाल (11-20), झारखंड (10), हिमाचल प्रदेश (10), गुजरात (9-20), तमिलनाडु (9), राजस्थान (9) सबसे प्रभावित है।
मिथी वयमुना में सबसे ज्यादा प्रदूषण-
प्रदूषण के संकट से जूझ रही प्रमुख नदियों में यमुना ( दिल्ली: 83-116 एमजी/एल), साबरमती (गुजरात: 105 एमजी/एल), गंगा (बिहार : 6.9 एमजी/एल व कानपुर: 14.8 एमजी/एल), गोदावरी (महाराष्ट्र: 16-20 एमजी/एल), कृष्णा (कर्नाटक: 10-17 एमजी/एल), कावेरी (तमिलनाडु: 10-24 एमजी/एल), भीमुसी (तेलंगाना: 18 एमजी/एल), मिथी (महाराष्ट्र: 210 एमजी/एल), घग्गर (हरियाणा/पंजाब: 115 एमजी/एल) स्तर पर है।
नदियों की स्वच्छता के लिए चल रहे बड़े मिशन :
-नमामी गंगे प्रोग्राम-नेशनल रिवर कंर्जेवेशन प्लान(एनआरसीपी)
-यमुना एक्शन प्लान-अमृत मिशन
-स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट-गोदावरी रिवर मैनेजमेंट बोर्ड
-नर्मदा सेवा मिशन
नदियों मेंं प्रदूषण के प्रमुख कारण-
अपर्याप्त सीवेज ट्रीटमेंट : देश में प्रतिदिन 62 हजार एमएलडी सीवेज उत्पन्न होता है। जिसमें से 37 प्रतिशत ही ट्रीट होता है, बाकि नदियों में बह जाता है। जैसे यमुना में प्रदूषण नई दिल्ली में हो रहा है।
औद्योगिक अपशिष्ट: देश में 746 से ज्यादा उद्योगों का कचरा सीधे गंगा में मिल रहा है। देश की 81 नदियों में भारी धातुओं जैसे आर्सेनिक व लेड का प्रदूषण है।
निगरानी की कमी: योजनाओं पर हजार करोड़ों का खर्च हो रहा। लेकिन ब्यूरोक्रेसी, ठेकादार भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कई प्रोजेक्ट अधूरे हैं।
शहरीकरण व जनसंख्या का दबाव : तेजी से बढ़ते शहर (जैसे दिल्ली) से प्लास्टिक, कृषि रन ऑफ और डेम निर्माण से प्रवाह कम। 70 प्रतिशत सतह जल पीने योग्य नहीं।
समन्वय का अभाव: केन्द्र व राज्य सरकारों की एजेंसियों के बीच समन्वय के अभाव है। जलवायु परिर्वतन के कारण सूखा व बाढ़ व प्रदूषण का खतरा बढ़ता है।
रिपोर्ट में यह सिफारिशें-
स्रोत नियंत्रण, एसटीपी व इटीपी की स्थापना, न्यूनतम पर्यावरण प्रवाह, बाढ़ मैदान संरक्षण, जैव विविधता पार्क, वर्षा जल संचयन और जनभागीदारी बढ़ाने तथा नमामि गंगे जैसी योजनाओं को और अधिक मजबूती देने की सिफारिशें की गई है।
राजस्थान : 9 खंड प्रभावित
प्रमुख प्रदूषित नदियां - बनास, चंबल, बेड़च व गंभीरी।
कारण : बिना उपचार के औद्योगिक अपशिष्ट और सीवेज।
स्थिति / टिप्पणी : बीओडी 3-36 एमजी/एल तक, कई खंड 'गंभीर प्रदूषित' श्रेणी में
मध्य प्रदेश : 18 खंड में प्रदूषण
प्रमुख प्रदूषित नदियां : चंबल, खान, बेतवा, तापी, क्षिप्रा व सोन
कारण - शहरी अपशिष्ट जल और रासायनिक निकास।
स्थिति / टिप्पणी : बीओडी 3-40 एमजी/एल तक , कुछ सुधार हुआ लेकिन कई शहरों में सीवेज उपचार की कमी।
छत्तीसगढ़ : 6 खंड प्रदूषित
प्रमुख प्रदूषित नदियां - सियोनाथ, हसदेव, खरून, अरपा व महानदी
कारण : औद्योगिक अपशिष्ट, खनन गतिविधियां।
स्थिति / टिप्पणी : बीओडी 6-18 एमजी/एल, कोरबा में ज्यादा प्रदूषण।
Published on:
15 Oct 2025 10:22 pm
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