सर्दियों में एक्यूआई स्तर रहेगा चिंताजनक, सख्त उपायों की सिफारिश
देशभर में मौसम का मिजाज बदलने के साथ ही अब हवा में प्रदूषण का जहर घुलने की चिन्ता गहरा गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सर्दी के मौसम में कई शहरों की एयर क्वालिटी कमजोर होने की चेतावनी दी है। सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर से फरवरी तक औसत एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) 300 से ऊपर रहने की संभावना है, जो 'बहुत खराब' से 'गंभीर' श्रेणी में आता है। 'नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम' (एनसीएपी) के तहत तैयार इस रिपोर्ट में 131 शहरों की मॉनिटरिंग डेटा शामिल है। इस रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली-एनसीआर में 15 नवंबर से 30 जनवरी तक ग्रैप (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान) चरण-4 लागू करने की सिफारिश की जा चुकी है। इसके अलावा मुंबई, लखनऊ, जयपुर, जोधपुर, भोपाल, रायपुर सहित कई प्रमुख शहरों के एक्यूआई को लेकर भी अलर्ट किया गया है।
पत्रिका एक्सप्लेन :
कैसे बढ़ता है वायु प्रदूषण-
सर्दियों में उलटी हवाओं के कारण धुंध बढ़ जाती है। हवा की गति भी कम हो जाती है। जिससे पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर 100 माइक्रोमीटर प्रति प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक हो जाता है। जैसे दिल्ली-एनसीआर में 40% प्रदूषण पराली जलाने, 30% वाहनों और 20% उद्योगों से आता है।
ग्रैप कैसे लागू होता है-
ग्रैप यानी 'ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान' वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने और वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए लागू किया जाता है। योजना में एक्यूआई के स्तर के आधार पर चार चरण होते हैं। प्रदूषण की गंभीरता के अनुसार चरण पर काम होता है।
चरण-1 (एक्यूआई 201-300 : खराब) : धूल नियंत्रण, वाहन उत्सर्जन जांच और निर्माण गतिविधियों पर निगरानी।
चरण-2 (एक्यूआई 301-400: बहुत खराब): सड़क धुलाई, डीजल वाहनों पर पाबंदी और उद्योगों के लिए उत्सर्जन मानकों का सख्ती से पालन।
चरण-3 (एक्यूआई 401-450 : गंभीर ): स्कूल बंद, गैर-जरूरी निर्माण रुकवाना और पुराने वाहनों पर प्रतिबंध।
चरण-4 (एक्यूआई 451 : आपातकालीन) : सभी गैर-आवश्यक गतिविधियां बंद, ओड-ईवन नियम और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा।
पीएम 2.5 (µg/m³) व पीएम10 (µg/m³) क्या है-
ये दोनों वायु प्रदूषण के प्रमुख सूचक हैं। जो हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों के आकार और स्वास्थ्य प्रभाव को दर्शाते हैं।
पीएम 2.5 (µg/m³) : इसका अर्थ 'पार्टिकुलेट मैटर 2.5 माइक्रोमीटर' है। ये कण मानव बाल से 30 गुना पतले होते हैं। इनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये कण वाहनों से निकले धुएं, औद्योगिक व रासायनिक उत्सर्जन व पराली जलाने से बनते हैं।
प्रभाव: ये कण फेफड़ों तक गहराई तक पहुंचते हैं और अस्थमा, फेफड़े के कैंसर और हृदय रोगों का कारण बनते हैं। सुरक्षित सीमा 60 µg/m³ (माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से कम है।
पीएम 10 (µg/m³) : इसका मतलब 'पार्टिकुलेट मैटर 10 माइक्रोमीटर' हैं। इनके कणों का व्यास 10 माइक्रोमीटर से कम होता है। ये कण सड़क धूल, निर्माण कार्य और धूल भरी हवा व तूफान (जैसे राजस्थान में) से बनते हैं।
प्रभाव: ये कण ऊपरी श्वास तंत्र को प्रभावित करते हैं, जिससे खांसी और एलर्जी हो सकती है। सुरक्षित सीमा 100 µg/m³ से कम है।
Published on:
16 Oct 2025 05:00 am
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