घास की कला से विश्व रिकॉर्ड तक का सफर
पंजाब के राजपुरा गांव के अभिषेक चौहान, जिन्हें 'घास का कलाकार' के नाम से जाना जाता है, ने अपनी अनूठी कला के जरिए न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी नया आयाम दिया। राजस्थान पत्रिका की संवाददाता राखी हजेला से उन्होंने अपने संघर्ष, प्रेरणा, समर्पण और कठिन परिश्रम की कहानी कुछ इस तरह से बयां की.... अभिषेक की कहानी उनकी जुबानी
दादाजी की सीख और थप्पड़ की प्रेरणा
मेरी कहानी तब शुरू हुई जब मैं कॉलेज में था। मेरे दादाजी ने मुझे घास से कला बनाने की विद्या सिखाई। वे मेरे पहले गुरु थे और उनकी सीख सख्त थी। जब भी मैं गलती करता, दादाजी का थप्पड़ पड़ता, लेकिन वही थप्पड़ मेरे लिए प्रेरणा बने। उनकी सख्ती की वजह से मैंने इस कला में महारत हासिल की और आज मेरा नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रेकॉड्र्स और इंडिया बुक ऑफ रेकॉड्र्स में दर्ज है। मैंने 20 साल की उम्र में इस कला को गंभीरता से अपनाया और इसे अपनी विरासत के रूप में संजोया।
मोर से शुरू हुआ सफर
घास की कलाकृतियां बनाने के लिए मैं दूब, पराली, सरकंडे और बांस का उपयोग करता हूं। सबसे पहले एक फ्रेम तैयार किया जाता है, फिर घास को बारीकी से उसमें सजाया जाता है। मेरी पहली कलाकृति एक मोर की थी, जिसे बनाने में मुझे बेहद आनंद आया। यह कृति मेरे कॉलेज में प्रदर्शनी के दौरान प्रदर्शित हुई, जहां मुझे पहला पुरस्कार मिला। उसी कॉलेज में मेरे दादाजी को विश्वकर्मा अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, जो मेरे लिए गर्व का क्षण था।
जिले से राष्ट्रीय स्तर तक की मान्यता
साल 2019 मेरे लिए खास रहा। पहले मुझे जिला स्तर पर सम्मानित किया गया, फिर उसी साल राज्य स्तर पर पुरस्कार मिला। पंजाब सरकार ने मुझे स्टेट अवॉर्ड से नवाजा। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन मुख्यमंत्री ने भी मुझे सम्मानित किया। ये पुरस्कार मेरे लिए नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत के लिए हैं। ये सम्मान मुझे और मेरे जैसे कलाकारों को प्रोत्साहित करते हैं। मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि थी आंखों पर पट्टी बांधकर दुनिया का सबसे छोटा चम्मच बनाना, जिसने मुझे वैश्विक पहचान दिलाई।
पृथ्वीराज चौहान से प्रेरणा
हमारे पूर्वज राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे, जो शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर थे। उसी तरह, मैं आंखों पर पट्टी बांधकर घास की मूर्तियां बनाता हूं। अभ्यास की वजह से मुझे हर कदम का अंदाजा होता है। मैं जानता हूं कि मूर्ति किस दिशा में आकार ले रही है। यह कला मेरे लिए ध्यान का रूप है, जिसमें समय का पता ही नहीं चलता।
काम में आनंद, परिवार का साथ
हर कला समय और समर्पण मांगती है। जब मैं घास की कला में डूब जाता हूं, तो मुझे तनाव से मुक्ति मिलती है। मैं सारा काम घर से करता हूं, जिससे परिवार का साथ भी मिलता है। प्रदर्शनियों के लिए बाहर जाना पड़ता है, लेकिन इससे पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने में कोई दिक्कत नहीं होती। मेरी मां नेशनल लेवल की शूटर हैं, जिन्होंने हाल ही में गोल्ड मेडल जीता। पिताजी पावर लिफ्टर हैं और भाई ताइक्वांडो में पारंगत है। पूरा परिवार किसी न किसी क्षेत्र में उत्कृष्ट है।
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अहिल्या बाई से महाराणा प्रताप तक
मैंने अहिल्या बाई, नरेंद्र मोदी, शिवाजी, महाराणा प्रताप और कामाख्या माता सहित जैसी सैकड़ों कलाकृतियां बनाई हैं। ये कृतियां न केवल मेरी कला को दर्शाती हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को भी जीवित रखती हैं। प्रत्येक कृति मेरे लिए एक कहानी है, जो इतिहास और संस्कृति से जुड़ी है।
पराली का उपयोग और पर्यावरण
लोग घास को कमजोर समझते हैं, लेकिन यह बेहद मजबूत होती है। इसे मसलने या पत्थर से दबाने पर भी यह फिर उग आती है। मेरे लिए घास अमरता का प्रतीक है। मैं पराली के उपयोग को भी बढ़ावा देता हूं। पंजाब में पराली जलाने की समस्या आम है, लेकिन इसका उपयोग डिस्पोजेबल सामान बनाने में किया जा सकता है। एक छोटा सा प्लांट लगाकर किसान न केवल पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि अतिरिक्त आय भी कमा सकते हैं।
आदिवासी समाज को मुख्यधारा में लाना
मेरा सपना था कि घास की कला को विरासत का दर्जा दिलाऊं, जो अब पूरा हो चुका है। अब मेरा लक्ष्य आदिवासी समाज को मुख्यधारा से जोडऩा और उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करना है। मैंने देश भर में अपनी कृतियों की प्रदर्शनियां लगाई हैं और इस कला को वैश्विक मंच पर ले जाने का प्रयास कर रहा हूं। मेरा युवाओं को संदेश है जिस काम में दिल लगता है, वही करो। जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन उनसे सीखकर आगे बढऩा ही असली जीत है।
Published on:
18 Jul 2025 01:46 pm