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दिल्ली में 63 साल से चली आ रही अनोखी परंपरा पर ब्रेक! रेखा सरकार पर भड़की AAP

Phool Walon Ki Sair: दिल्ली में साल 1962 से चली आ रही अनोखे त्योहार 'फूलवालों की सैर' पर इस बार रोक लग गई है। आयोजकों का कहना है कि दिल्ली सरकार से समय पर अनुमति नहीं मिलने के कारण इसे इस बार रद किया गया है।

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phool walon ki sair festival cancelled in Delhi AAP angry on CM Rekha Gupta Government

दिल्ली में 63 साल से चली आ रही अनोखी परंपरा पर ब्रेक।

Phool Walon Ki Sair: राष्ट्रीय राजधानी में करीब 200 साल पहले मुगल शासक अकबर शाह द्वितीय के शासनकाल में शुरू की गई अनोखे त्योहार 'फूलवालों की सैर' पर इस साल फिलहाल ब्रेक लग गया है। यह अनोखा त्योहार दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता था। आयोजकों का कहना है कि दिल्ली सरकार से समय पर वार्षिक सांस्कृतिक परंपरा 'फूलवालों की सैर' (Sair-e-Gul Faroshan) के लिए अनुमति नहीं मिलने पर फिलहाल इस साल इसे टाल दिया गया है। इसकी घोषणा कर दी गई है। इससे पहले भी साल 1942 में अंग्रेजों ने इस परंपरा पर रोक लगा दी थी। हालांकि आजादी के बाद साल 1962 में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से यह परंपरा फिर शुरू हुई और तबसे निर्बाध रूप से जारी थी।

आम आदमी पार्टी ने भाजपा सरकार पर बोला हमला

दूसरी ओर, करीब 200 साल पहले मुगल शासनकाल में शुरू की गई इस परंपरा के रद होने से आम आदमी पार्टी (AAP) ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर तीखा हमला बोला है। AAP के दिल्ली संयोजक और पूर्व मंत्री सौरभ भारद्वाज ने अपने सोशल मीडिया ‘X’ अकाउंट पर अपना आक्रोश जाहिर करते हुए कहा "भाजपा की सरकार में एक-एक करके सभी अच्छे काम बंद किए जा रहे हैं।" सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाते हुए कहा “एक बार अंग्रेजों ने भी साल 1942 में दिल्ली के हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक मानी जाने वाली सालाना सांस्कृतिक परंपरा 'फूलवालों की सैर' को बंद कर दिया था, अब भाजपा सरकार ने इसे फिर बंद कर दिया है।"

आयोजकों ने क्या कहा?

दिल्ली में मुगलकाल से चले आ रहे इस प्रतिष्ठित सांस्कृतिक आयोजन पर आयोजकों ने भी अपनी राय दी है। आयोजकों में से एक अंजुमन सैर-ए-गुल फरोशान ने HT से कहा कि इस साल दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की ओर से आयोजन को लेकर अनुमति नहीं मिली है। यह आयोजन हमेशा महरौली के आम बाग में किया जाता रहा है। उन्होंने दावा किया कि यह प्रक्रिया DDA और वन विभाग के बीच जमीन को लेकर दुविधा की वजह से अटक गई। आयोजकों के प्रतिनिधियों के अनुसार, इस बार दोनों विभाग एक दूसरे के पास जाने को कहते रहे, जिससे वे तंग आ गए और उन्होंने इस साल त्योहार को रद करने का कड़ा फैसला लिया।

अब जानिए क्या है 'फूलवालों की सैर' का इतिहास?

दरअसल, दिल्ली में हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के तौर पर इस सांस्कृतिक उत्सव की शुरुआत साल 1812 में मुगल शासक अकबर शाह द्वितीय के शासनकाल में हुई थी। इसके बाद यह परंपरा साल 1942 तक निर्बाध रूप से चलती रही। हालांकि साल 1942 में अंग्रेजों ने 'फूट डालो और राज करो' की नीति के तहत इस आयोजन पर रोक लगा दी थी। इसके बाद साल 1962 में केंद्र सरकार के सहयोग से इसे फिर से शुरू किया गया और तब से यह हर साल जहाज महल के पास पार्क में आयोजित होता रहा है।

'फूलवालों की सैर' परंपरा का महत्व क्या है?

आयोजकों के अनुसार, यह त्योहार हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग मिलकर मनाते हैं। उत्सव के दौरान एक जुलूस निकाला जाता है। इसके बाद मुस्लिम पक्ष के लोग हिन्दुओं की देवी योगमाया के मंदिर में फूलों के पंखे चढ़ाते हैं, जबकि हिन्दू पक्ष के लोग ख्वाजा बख्तियार काकी की दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं। तीन दिवसीय इस उत्सव में शहनाई, नर्तकों के नेतृत्व में जुलूस, सांस्कृतिक कार्यक्रम, कव्वाली और पारंपरिक मेले का आयोजन भी होता है, जिसमें हिन्दू-मुस्लिम दोनों पक्ष के लोग शामिल होते हैं।

AAP का भाजपा पर तीखा प्रहार

आप नेता सौरभ भारद्वाज ने भाजपा सरकार की आलोचना करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा "दिल्ली में शताब्दियों से चल रहे, धार्मिक सौहार्द के त्योहार 'फूलवालों की सैर' को इस साल से बंद किया जा रहा है। भाजपा की सरकार में एक एक करके सभी अच्छे काम बंद किए जा रहे हैं। अंग्रेज अपनी “Divide and Rule” की नीति के तहत नहीं चाहते थे कि हिंदू मुस्लिम में प्यार और भाईचारा रहे। अंग्रेज हमें धर्म के नाम पर लड़ाते थे। ताकि भारत कमजोर रहे। इसीलिए अंग्रेजों ने साल 1942 में “फूलवालों की सैर” को बंद किया था। अब भाजपा सरकार ने इसे बंद किया है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग योगमाया मंदिर में फूलों के पंखे चढ़ाते है और हिंदू समुदाय के लोग दरगाह में फूलों की चादर चढ़ाते हैं।”