
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला
Divorce in Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के बीच विवाद का एक हैरान करने वाला मामला सामने आया। इस मामले की तह तक जाने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के बीच तलाक को मंजूरी दे दी। इससे पहले फैमिली कोर्ट ने भी दोनों का तलाक मंजूर किया था, लेकिन पत्नी ने फैमिली कोर्ट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में बेबुनियाद बताते हुए चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पति के अधिकारों को चुनौती देना और उसकी मां के खिलाफ अपमानजनक व निंदनीय आरोप लगाना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। यह अपराध विवाह विच्छेद (तलाक) का पर्याप्त आधार है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
हाईकोर्ट ने कहा "अपमानजनक भाषा का प्रयोग, शारीरिक हिंसा और सामाजिक अलगाव जैसे कृत्य अपने आप में पति के लिए असहनीय मानसिक उत्पीड़न का कारण बनते हैं। पति-पत्नी के बीच शब्द और संवाद हानिरहित नहीं थे।" दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने 17 अक्टूबर को इस मामले में फैसला सुनाया। पीठ ने कहा "इस मामले में इस्तेमाल किए गए शब्द और संवाद हानिरहित नहीं हैं। कानून यह मानता है कि मानसिक क्रूरता केवल शारीरिक हिंसा से नहीं, बल्कि लगातार और जानबूझकर किए गए मौखिक दुर्व्यवहार और अपमानजनक आचरण से भी हो सकती है, जो जीवनसाथी की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाए।"
दरअसल, दिल्ली निवासी एक महिला भारतीय रेलवे यातायात सेवा (IRTS) की ‘ग्रुप A’ अधिकारी है। पहली शादी नष्ट होने के बाद रेलवे अधिकारी महिला ने एक वकील के साथ जनवरी 2010 में विवाह किया था, लेकिन महज 14 महीने बाद मार्च 2011 में वे अलग हो गए। यह दोनों की दूसरी शादी थी। इसके बाद 12 साल तक दोनों में वाद-विवाद का दौर चलता रहा। इसी बीच साल 2023 में फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में तलाक का आदेश दे दिया। इसमें पत्नी द्वारा की गई मानसिक क्रूरता को आधार बनाया गया।
महिला ने इस आदेश को बेबुनियाद बताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अपील में महिला ने दावा किया कि पति ने उसके साथ जातिगत टिप्पणी कर उसे अपमानित किया। पेशेवर जिम्मेदारियों के बावजूद घरेलू कामों के लिए मजबूर किया और झूठे मुकदमों में फंसाया। मामले को सुनने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा "दो गलतियां मिलकर एक सही नहीं बनतीं।"
हाईकोर्ट ने महिला की दलीलें खारिज करते हुए कहा "सिर्फ यह कहना कि पति ने भी क्रूरता की, पत्नी के खुद के क्रूर कृत्यों को निरस्त नहीं कर सकता। दो गलतियां मिलकर एक सही नहीं बनतीं।" इस दौरान न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पत्नी द्वारा किए गए अपमानजनक व्यवहार, शारीरिक हिंसा और सामाजिक अलगाव जैसे कार्य इतने गंभीर हैं कि विवाह को जारी रखना न्यायोचित नहीं होगा।
दिल्ली हाईकोर्ट में पति ने रेलवे अधिकारी पत्नी के खिलाफ साक्ष्य पेश किए। अदालत ने प्रस्तुत साक्ष्यों में पाया कि महिला ने पति को कई घृणित, अपमानजनक और निंदनीय संदेश भेजे थे। इनमें पति को पत्नी ने कमीना और कुतिया का बेटा कहकर संबोधित किया था। इसके साथ ही पत्नी ने पति को भेजे व्हाट्सएप संदेशों में उसकी मां को वेश्यावृत्ति के माध्यम से कमाई करने की सलात तक दे डाली।
दिल्ली हाईकोर्ट ने मौजूदा साक्ष्यों पर गौर करते हुए कहा कि एक वन क्लास अफसर महिला के ऐसे शब्द मानसिक रूप से अत्यंत आहत करने वाले हैं और इस प्रकार का व्यवहार किसी भी व्यक्ति के आत्मसम्मान को गहराई से ठेस पहुंचाता है। यह मानसिक क्रूरता का सबसे गंभीर स्वरूप है। इसी के साथ हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए पति को तलाक की अनुमति दी। कोर्ट ने कहा कि विवाह संस्था आपसी सम्मान, सहनशीलता और विश्वास पर टिकी होती है, जब ये मूल तत्व नष्ट हो जाएं तो विवाह को केवल औपचारिक रूप से जीवित रखना उचित नहीं है।
Updated on:
25 Oct 2025 01:27 pm
Published on:
25 Oct 2025 12:10 pm
बड़ी खबरें
View Allनई दिल्ली
दिल्ली न्यूज़
ट्रेंडिंग

