
दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐसे मामले पर फैसला सुनाया है, जिसे सुनकर आप भी चौंक जाएंगे। इस फैसले ने जहां वैवाहिक झगड़ों में एक नई बहस छेड़ दी है, वहीं वकीलों के भी फर्जीवाड़े में फंसने की संभावनाएं बढ़ा दी हैं। हालांकि यहां भी वकील का कानूनी ज्ञान काम आया और वो 15 साल बाद मुकदमे से बरी होने में कामयाब रहा। इस मामले की कहानी किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं लगती है। बहरहाल, दिल्ली हाई कोर्ट ने इस हाई-प्रोफाइल वैवाहिक विवाद में वकील पति के खिलाफ दर्ज FIR रद्द कर दी है। यह मामला एक वकील और उसकी पूर्व मुवक्किल की 'फिल्मी' प्रेम कहानी पर आधारित था, जिसका अंत कानूनी पचड़ों और तलाक के आरोपों से हुआ।
दिल्ली का यह मामला साल 2007 में उस समय शुरू हुआ, जब एक वकील ने तलाक के लिए कोर्ट के चक्कर काट रही महिला की मदद करनी शुरू की। मदद करते-करते वकील को अपनी महिला मुवक्किल से प्यार हो गया और दोनों ने साल 2007 में ही शादी कर ली। तीन साल तक वकील और महिला मुवक्किल बतौर पति-पत्नी अपनी दुनिया में खुश रहे, लेकिन इसी बीच पत्नी के खिलाफ वकील को एक अहम जानकारी हाथ लग गई। कोर्ट में दर्ज बयान के अनुसार, शादी के लगभग तीन साल बाद पति को पता चला कि पत्नी का पहला तलाक तो वास्तव में 2010 में हुआ था। इसका मतलब था कि 2007 की शादी कानूनी रूप से अमान्य (Null and Void) थी, क्योंकि महिला का पहला विवाह समाप्त नहीं हुआ था।
इस मामले में पत्नी से बात करने वह भड़क उठी और उसने वकील के खिलाफ गंभीर आरोपों में मुकदमा दर्ज करवा दिया। FIR में महिला का कहना था कि उसके पति ने वित्तीय हेराफेरी कर उसके जॉइंट अकाउंट से लाखों रुपये निकाल लिए। इसके साथ ही घर के लॉकर से लाखों रुपये के गहने निकालकर उन्हें गिरवी रखा और एक नया घर खरीदा। इस मामले के बारे में पूछताछ करने पर उसे धमकाया और प्राइवेट वीडियो लीक करने की धमकी दी। पत्नी के आरोपों पर धारा 498A (क्रूरता) के तहत मुकदमा दर्ज हुआ।
वकील पति ने अपने खिलाफ FIR रद्द कराने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए तर्क दिया कि जब शादी ही फर्जी थी तो उन पर धारा 498A कैसे लग सकती है? हैरानी की बात यह थी कि दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में पति की याचिका का समर्थन किया। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि महिला ने FIR में अपने असली तलाक की तारीख छिपाई, जो स्पष्ट रूप से धोखा था। मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने 66 साल के वकील का केस पूरी तरह रद कर दिया। अदालत ने कहा कि सिर्फ पत्नी के गहने ले जाने के आरोप से पति पर क्रूरता का मुकदमा नहीं चल सकता।
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने इस जटिल मामले में महत्वपूर्ण कानूनी व्याख्या की। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अरविंद सिंह मामले को याद करते हुए कहा कि क्रूरता का अर्थ पत्नी को मानसिक या शारीरिक पीड़ा देना है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा "मान लीजिए पति ने 40 लाख रुपये के गहने उठा भी लिए। तब भी यह 498A के तहत क्रूरता नहीं कहलाएगा। यह IPC की क्रूरता की परिभाषा के दायरे में नहीं आता है।" कोर्ट ने धमकी और प्राइवेट वीडियो लीक करने के आरोपों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इनके लिए एक भी सबूत पेश नहीं किया गया। कोर्ट ने लिखा, "ये आरोप सिर्फ केस को भारी बनाने की कोशिश है।"
दरअसल, धारा 498A (Applicability of Section 498A) का उद्देश्य महिलाओं को वैवाहिक अत्याचार से बचाना है। इसके तहत 'पति' शब्द में हर वो व्यक्ति शामिल है, जो महिला के साथ कानूनी रूप से वैवाहिक संबंध में हो। भले ही बाद में कानूनी औपचारिकताओं के अभाव में विवाह तकनीकी रूप से अमान्य घोषित हो जाए। इस मामले में वकील पति को महिला के तलाक वाली बात छिपाने के तर्क पर राहत मिली। वहीं PC 498A के तहत क्रूरता कानूनी रूप से तब मानी जाती है, जब पति या उसके रिश्तेदार महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने या उसे गंभीर शारीरिक/मानसिक क्षति पहुंचाने के लिए आचरण करते हैं या गैरकानूनी मांग (जैसे दहेज) पूरी न होने पर उसे परेशान करते हैं।
Published on:
04 Nov 2025 02:14 pm
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