
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के छात्रसंघ चुनाव में इस बार शीर्ष तीन पदों पर वाम गठबंधन आइसा और डीएसएफ (DSF) ने शीर्ष तीन पदों पर जीत हासिल की तो एक पद एबीवीपी (ABVP) को मिला। खास बात ये है कि इस बार जीतने वाले सभी प्रत्याशी बेहद सामान्य परिवार से आते हैं। अध्यक्ष चुने गए नीतीश कुमार ‘राजा’ भी साधारण किसान परिवार से आते हैं।
वामपंथी छात्र राजनीति का नया सितारा बनकर उभरे नीतीश की शुरुआती शिक्षा फारबिसगंज में आरएसएस से संबद्ध सरस्वती विद्या मंदिर में हुई है। हाल ही एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि संघ से जुड़े स्कूलों में पढकऱ वामपंथ की ओर क्यों मुड़े? तो उन्होंने कहा, स्कूल के दिनों में मुझे आरएसएस की विचारधारा का अनुभव नहीं था। बीएचयू जाने के बाद पता चला कि मोदी सरकार कम्युनल आइडियोलॉजी को बढ़ा रही है। जेएनयू में आने के बाद वापमंथी विचारधारा की ओर झुकाव हुआ।
हिंदी साहित्य से पीएचडी कर रहे नीतीश कुमार बिहार के अररिया जिले के शेखपुरा गांव के रहने वाले हैं। इनके पिता प्रदीप यादव किसान हैं, जबकि मां पूनम देवी गृहिणी हैं। वे ओबीसी वर्ग से आते हैं। नीतीश के भाई सानू यदुवंशी ने कहा, वह बचपन से ही गरीब और गरीब बच्चों के कल्याण के बारे में बातें करता था।
नीतीश ने आइसा की जेएनयू इकाई के सचिव के तौर पर भी काम किया है। वर्ष 2021 में कोरोना काल के दौरान जेएनयू को खोलने की मांग को लेकर आंदोलन किया। 2023-24 में जेएनयू छात्र संघ चुनाव में स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज से काउंसलर के रूप में चुने गए। वर्ष 2023 के अगस्त में छात्रावास सहित कई दूसरे मुद्दों को लेकर 16 दिनों की भूख हड़ताल भी की।
जेएनयू छात्र संघ चुनाव में संयुक्त सचिव के पद पर जीते वैभव मीणा भी किसान परिवार से आते हंै। उनकी जीत के बाद एबीवीपी ने नौ साल के लंबे अंतराल के बाद केंद्रीय पैनल में वापसी की है। करौली के वैभव ने स्नातक राजस्थान विश्वविद्यालय से किया है, जबकि स्नातकोत्तर काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में किया है। वह फिलहाल जेएनयू से हिंदी साहित्य में पीएचडी कर रहे हैं। वैभव कावेरी हॉस्टल के प्रेसीडेंट भी रहे और दो वर्षों तक वह राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस)में भी सक्रिय सदस्य रहे। हिंदी साहित्य में उन्हें जूनियर रिसर्च फेलोशिप मिली हुई है।
Updated on:
30 Apr 2025 07:10 pm
Published on:
30 Apr 2025 10:54 am
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