
पहले चरण के लिए 6 नवंबर को वोटिंग होगी (Photo-IANS)
Bihar Assembly Election 2025: बिहार की सियासत में आंकड़ों से ज्यादा भरोसे की राजनीति चल रही है। भरोसा इस बार भी महिलाओं पर टिका है- नीतीश सरकार की फिर वापसी का भरोसा। राजनीतिक गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ‘साइलेंट वोटर फार्मूला’ एक बार फिर एनडीए की नैया पार लगाएगा। परिणाम चाहे जो कुछ भी हो, लेकिन इतना तय है कि आधी आबादी ही बिहार के सियासी फैसले की पूरी इबारत लिखेगी।
चुनाव से ठीक पहले बिहार सरकार ने एक करोड़ से अधिक महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपये ट्रांसफर किए हैं। लाखों महिलाओं को अभी यह लाभ मिलना बाकी है। एनडीए संकल्प पत्र में महिलाओं से तीन मुख्य वादे किए गए हैं । महिला रोजगार योजना से 2 लाख रुपये तक की सहायता राशि दी जाएगी और 1 करोड़ महिलाएं लखपति दीदी बनेंगी। 'मिशन करोड़पति’ के माध्यम से महिला उद्यमी भी करोड़पति बनेंगी। कई जगहों पर महिलाएं कह रही हैं, सरकार ने याद किया तो हम भी याद रखेंगे। एनडीए को भरोसा है कि यह ‘कृतज्ञता वोट’ उन्हें फिर सत्ता की दहलीज तक पहुंचा देगा।
तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन भी इस तबके को साधने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है। उन्होंने ऐलान किया है कि अगर गठबंधन सत्ता में आया तो हर महिला को हर महीने 2,500 रुपये और सालाना 30,000 रुपये एडवांस दिए जाएंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह ‘वादा’ नीतीश के पहले से किए गए ‘काम’ के मुकाबले कम असरदार पड़ सकता है।
नीतीश कुमार ने 2009 में साइकिल योजना के जरिए स्कूल जाने वाली लड़कियों तक सरकारी पहुंच बनाई। 2015 में शराबबंदी ने महिला वोटरों के बीच उनकी छवि मजबूत की। सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण और पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने वाले फैसलों ने उन्हें महिलाओं के बीच लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित किया। 2015 में जहां 60% से अधिक महिलाओं ने एनडीए के पक्ष में मतदान किया, वहीं 2020 में ‘जीविका दीदी’ योजना ने इस भरोसे को और गहराया।
पटना से सटे भोजपुर और नालंदा के गांवों में यही सुनने को मिलता है, `नीतीश जी ने हमारी सुध ली।` महिलाएं खुले तौर पर भले अपनी पसंद न बताएं, लेकिन उनका आत्मविश्वास बताता है कि वे अपने फैसले को मतदान केंद्र तक जरूर लेकर जाएंगी। एक जीविका समूह की सदस्य किरण देवी कहती हैं, `हमारे पैसे सीधे खाते में आए। अब कोई बिचौलिया नहीं। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ।` हालांकि, विपक्ष इसे चुनावी रिश्वत कह रहा है। टीम तेजस्वी का दावा है कि ग्रामीण महिलाएं अब बदलाव चाहती हैं और वे रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों पर भी बात करने लगी हैं।
14 नवंबर को जब नतीजे आएंगे, तब यह तय होगा कि बिहार की साइलेंट वोटर महिलाएं इस बार किसके साथ खड़ी रहीं। विकास के भरोसे या बदलाव के वादे के साथ। नीतीश कुमार की महिला नीतियों का जादू फिर चला या तेजस्वी यादव का नया ‘आर्थिक सशक्तिकरण’ फार्मूला चुनावी गणित बदलने में सफल रहा।
Updated on:
04 Nov 2025 09:55 pm
Published on:
04 Nov 2025 06:50 pm
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