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बिहार में वंशावाद हावी! RJD में 31 प्रतिशत तो BJP में कितने प्रतिशत है वंशवादी जनप्रतिनिधि

बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में वंशवाद का प्रभाव लगातार बरकरार है, जहां कई उम्मीदवार अपने पारिवारिक संबंधों के चलते चुनावी मैदान में हैं।

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Legacy of political parties in bihar

आरजेडी में नेताओं के रिश्तेदारों की भरमार (फोटो सोर्स - IANS)

Bihar Assembly Elections: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति में वंशवाद एक नए मुद्दे के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में वर्तमान में 5294 विधायक हैं, जिनमें से 1174 विधायक राजनीतिक परिवारों से जुड़े हुए हैं। बिहार के विधानसभा चुनाव के लिए भी कई पार्टियों ने टिकट अपने परिवार के सदस्यों को दी है। लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के साथ कई अन्य नेता अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में उतार चुके हैं। इससे साफ है कि बिहार की राजनीति में भी वंशवाद ने अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है। आइए जानते हैं, बिहार की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों की वंशवाद की कहानी…

राष्ट्रीय जनता दल (RJD)

बिहार की राजनीति में वंशवाद का सबसे बड़ा उदाहरण राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में देखा जा सकता है। इस पार्टी की शुरुआत लालू प्रसाद यादव ने की थी। उनके दोनों बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव दोनों राजनीति में हैं। तेजस्वी यादव पार्टी के पार्टी के मुखिया और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री हैं और तेज प्रताप यादव विधायक रहे हैं। लालू की पत्नी राबड़ी देवी भी तीन बार बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। इतना ही नहीं, उनकी बेटी मीसा भारती भी राज्यसभा सांसद रही हैं।

जनता दल यूनाइटेड (JDU)

जेडीयू में भी वंशवादी विधायकों के उदाहरण देखे जा सकते हैं। विजय कुमार चौधरी वर्तमान में बिहार विधानसभा के अध्यक्ष हैं। उनके पिता जगदीश प्रसाद चौधरी भी विधायक रहे थे। सुमित कुमार सिंह वर्तमान में बिहार सरकार में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हैं। उनके पिता नरेन्द्र सिंह और दादा श्री कृष्ण सिंह भी बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं। सुदर्शन कुमार वर्तमान में बारबीघा विधानसभा क्षेत्र से जेडीयू के विधायक हैं। उनके दादा राजो सिंह पांच बार के विधायक और दो बार के सांसद रहे हैं। उनके पिता संजय सिंह मुन्ना भी दो बार विधायक रहे हैं और उनकी मां श्रीमती सुनीला देवी भी शेखपुरा निर्वाचन क्षेत्र से दो बार कांग्रेस की विधायक रह चुकी हैं।

एडीआर की रिपोर्ट

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के विश्लेषण में पाया गया है कि बिहार में वंशवादी पृष्ठभूमि वाले 96 विधायक हैं, जिनमें राज्य के विधायक और विधान परिषद से लेकर सांसद तक शामिल हैं, जो बिहार के सभी विधायकों का 27% और देश भर के सभी विधायकों का 9% है।

बिहार में वंशवादी पृष्ठभूमि वाले जनप्रतिनिधियों के आंकड़े

पार्टीकुल जनप्रतिनिधिवंशवादीजनप्रतिनिधि प्रतिशत
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी)1003131%
जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू)812531%
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)1242117%
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)451329%
लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी)8450%
हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम)6350%

भारतीय जनता पार्टी (BJP)

बीजेपी में भी वंशवाद की झलक देखने को मिलती है। बिहार बीजेपी पूर्व अध्यक्ष सम्राट चौधरी जो बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं। उनके पिता पूर्व शकुनी चौधरी हैं, जो सांसद और मंत्री रहे चुके हैं। वहीं, नितिन नवीन जो पटना से भाजपा के विधायक हैं, उनके पिता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा भी भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक रहे हैं।

इसी तरह, नितीश मिश्रा बिहार के उद्योग मंत्री हैं। उनके पिता जगन्नाथ मिश्रा तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। अरिजीत चौबे भी वंशवादी हैं, क्योंकि उनके पिता अश्विनी चौबे केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पुराने नेता रहे हैं। इसी तरह बीजेपी में 21.25% विधायक ऐसे हैं, जिनके परिवार पहले से ही राजनीति मेें हैं।

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP)

एलजेपी में वंशवाद साफ तौर से देखा जा सकता है। इस पार्टी के संस्थापक राम विलास पासवान थे। वर्तमान में इस पार्टी को राम विलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान संभाल रहे हैं। चिराग पासवान के भतीजे और बहनोई के साथ पासवान परिवार के बहुत से सदस्य लंबे समय से बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं। इससे प्रमुख पदों पर परिवार का नियंत्रण बना हुआ है।

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM)

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) में भी वंशवाद साफ नजर आता है। पार्टी के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी हैं। उनके बेटे संतोष कुमार सुमन वर्तमान में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। मांझी की बहू दीपा मांझी भी पार्टी से जुड़ी हैं और विधानसभा सदस्य रह चुकी हैं। इसके अलावा, उनके परिवार की एक और सदस्य ज्योति देवी, जो मांझी की संबंधी (साली) हैं। उनको भी पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाया गया है। इस तरह, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा में भी प्रमुख पदों और टिकटों पर परिवार के सदस्यों की मौजूदगी वंशवादी राजनीति की झलक दिखाती है।