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द्वारिकाधीश मंदिर में बदले नियम, भक्त अब नहीं चढ़ा पाएंगे प्रसाद!

Dwarkadhish Temple: द्वारिकाधीश मंदिर में जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए जरूरी खबर है। अब श्रद्धालु मंदिर में फूल-माला और प्रसाद नहीं चढ़ा पाएंगे। आइए जानते हैं कि इसके कारण क्या है…

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Dwarkadhish Temple

Dwarkadhish Temple: मथुरा के मशहूर द्वारिकाधीश मंदिर में नया नियम लागु कर दिया है। नए नियम के मुताबिक, अब श्रद्धालु किसी भी तरह का प्रसाद और फूल-माला मंदिर में लेकर नहीं जा सकेंगे। मंदिर प्रबंधन ने बाहरी वस्तुओं पर रोक लगा दी है। आपको बता दें कि पुष्टि संप्रदाय के मंदिर में ठाकुरजी का किसी भी बाहरी वस्तु का भोग न लगाने तथा बाजार से लाए गए फूल-माला न चढ़ाने की परंपरा है।

द्वारिकाधीश मंदिर के बाहर कई तरह के फूल विक्रेता फूल-माला की बिक्री करते थे और मंदिर जाने वाले श्रद्धालु यहां से फूल माला और प्रसाद खरीद कर ले जाते थे। लेकिन, असल में बाहर के खरीदे फूलमाला और प्रसाद ठाकुर जी तक नहीं पहुंच पाते थे। श्रद्धालु दर्शन के वक्त उनको मंदिर के सामने गैलरी में चढ़ा देते थे। 

कैसे तैयार होता है ठाकुर जी का भोग?

पुष्टिमार्ग संप्रदाय में ठाकुर जी को जो भोग लगाया जाता है उसे बगैर सिले हुए वस्त्र पहन के तैयार कराया जाता है। मंदिर के अंदर यह प्रसाद तैयार होता है और उसे ठाकुर जी को धराया जाता है। मान्यता यह है कि कोई भी वस्तु जो पब्लिक की नजरों के सामने से जाती है और पब्लिक की नजर पड़ने पर अगर उन्हें यह महसूस होता है कि यह प्रसाद बहुत अच्छा है तो ठाकुर जी उसे ग्रहण नहीं करते।

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फूल घर में बनती है ठाकुर जी की फूल माला

पुष्टिमार्ग संप्रदाय की यह परंपरा काफी पुरानी है, लेकिन मंदिर में एक प्रचलन ऐसा हो गया था कि श्रद्धालु बाहर से कोई प्रसाद या फूल माला लेकर पहुंच रहे थे। परंतु, उसे ठाकुर जी पर कभी चढ़ाया नहीं जाता था। साथ ही, ठाकुरजी को धारण कराए जाने वाली फूल माला भी मंदिर के फूल घर में तैयार होती है। उस फूल घर में फूल बगीचे से आते हैं। फूलों को पूर्ण रूप से शुद्ध करने के बाद माला बनती है और वह माला व फूल ठाकुर जी को धराएं जाते हैं।

कौन है पुष्टिमार्ग समुदाय?

पुष्टिमार्ग समुदाय हिंदू धर्म का एक विशिष्ट संप्रदाय है, जिसकी स्थापना महाप्रभु वल्लभाचार्य (1479-1531) ने 16वीं शताब्दी में की थी। यह समुदाय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके कृपा-मार्ग पर आधारित है। "पुष्टि" का अर्थ है "कृपा" या "पालन-पोषण," और "मार्ग" का अर्थ है "पथ"। पुष्टिमार्ग इस बात पर जोर देता है कि भक्ति और मुक्ति केवल भगवान की कृपा से ही प्राप्त होती है। इस पथ में साधक किसी कर्मकांड या कठोर तपस्या के बजाय पूर्ण भक्ति और समर्पण से भगवान की सेवा करते हैं।