देवर्षि कलानाथ शास्त्री
सामन्तकालीन अभिवादन शैली का एक वाक्यांश सदियों से सुप्रचलित है। जनतंत्र के सुप्रतिष्ठित होने के बाद ऐसी अभिवादन शैलियां विरल अवश्य हो गई थीं, किन्तु सामन्तकालीन परिवेश पर बने दूरदर्शन आदि के धारावाहिकों के कारण यह अभिवादन फिर सुना जाने लगा है। यह है अनुयायियों, अधीनस्थों तथा कनिष्ठों आदि के द्वारा राजा, राजवर्गीय वरिष्ठ व्यक्ति या सामन्त के अभिवादन करते समय बोला जाने वाला वाक्यांश - ‘घणी खम्मा’ या ‘खम्मा घणी’। यह क्यों बोला जाता है इस पर हमें सदा जिज्ञासा रही थी। सदियों से अधिकांश लोग अर्थ समझे बिना इसे राजवर्गीय सम्मानित व्यक्ति को अभिवादन करते समय बोल देते थे। हाल ही एक सीरियल में तो इसे उत्तर-प्रत्युत्तर शैली द्वारा इस प्रकार बोलते देखा गया है कि पहला ‘घणी खम्मा’ कहता है, दूसरा प्रत्युत्तर में ‘खम्मा घणी’ कहता है।
अधिकतर लोग इसका अर्थ क्षमा शब्द से लगाते हैं और समझते हैं कि अभिवादक चाहता है कि उस पर घणी (बहुत) क्षमा रखी जाए, अर्थात् वह अपराध करता भी जाए तो उसे क्षमा किया जाता रहे। हमें सदा से यह जिज्ञासा रही थी कि ‘क्षमा’ शब्द की बजाय ‘कृपा’,‘दया’ बनी रहे ऐसे शब्द उचित रहते, क्षमा तो गलती होने पर ही की जाती है। संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी और मध्यकालीन इतिहास के परिनिष्ठित प्राचीन पंडितों से जब इसका रहस्य पूछा गया तो उन्होंने इसका जो अर्थ बताया उसे सुनकर हमें विनोदमिश्रित आश्चर्य हुआ। यह भय भी लगा कि यदि इसका यह वास्तविक अर्थ किसी को बताएंगे तो वह शायद ही विश्वास करे, पर इसका वास्तविक रहस्य यही है।
वस्तुत: सामन्त लोग अपने राजा को इसी कामना के साथ अभिवादन करते थे कि ‘आपकी दीर्घ आयु हो’। सर्वत्र सामन्तीकाल में ऐसे ही अभिवादन होते थे जैसे अंग्रेजी में लॉन्ग लिव द किंग अभिव्यक्ति सुविदित है। इसके लिए बोला जाता था ‘घणी आयुष्यम्’ (घणी आयु हो आपकी) राजस्थानी में आयुष्यम् ‘आयुख्यम्म’ बोला जाता है। अत: यों बोला जाता था यह वाक्यांश ‘घणी आयुख्यम्मा’ धीरे-धीरे ‘अ’ गायब हुआ, ‘युख्यम्मा’ रह गया, फिर ‘यु’ भी गायब हुआ, ‘घणी ख्यम्मा’ रह गया और आज जो बोला जाता है वह आप जानते ही हैं। ‘ख्यम्मा घणी’ और ’घणी ख्यम्मा’ दोनों का अर्थ एक ही है, किन्तु जिस प्रकार चलन में इसका अपभ्रंश कर दिया है उसके कारण इसका वास्तविक अर्थ बतलाने वाला पागल समझा जाएगा। हमने भी इस अर्थ को झांसा ही समझा था पर जब मुनि जिनविजय जी से लेकर स्वामी नरोत्तमदास जी, पं. गोपालनारायण वहुरा आदि सभी ने इसी तथ्य की पुष्टि की तब हमें विश्वास हुआ।
चलन में सदियों से आकर शब्द किस प्रकार बदल जाते हैं इसके ठीक इसी प्रकार के अनेक उदाहरण वयोवृद्ध व्यक्तियों को आज भी याद होंगे, यद्यपि नई पीढ़ी को तो वे शब्द ही अजूबा लग सकते हैं। कम लोगों को यह मालूम होगा कि अंग्रेजी राज में रात को गश्त लगाने वाले संतरी (जो सेंटिनल शब्द का अपभ्रंश है) सुरक्षा के अन्तर्गत आने वाले स्थल के आगे घूमते रहते थे और कई बार यह नारा लगाते थे ‘हुकम सदर’। हमने बाल्यकाल में (स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजी राज में) जब यह फिकरा सुना तो इसका यही अर्थ समझा कि ‘सदर’ (मालिक) के हुकम से यह हो रहा है पर इसका यह अर्थ नहीं था। जब पुलिस के एक सर्वोच्च अधिकारी ने इसका रहस्य समझाया तब आश्चर्य होना ही था। वस्तुत: यह अंग्रेजी वाक्य है जो संतरी किसी भी अजनबी को गश्त के समय देखते ही यह पूछने हेतु बोलता था - ‘तुम कौन हो’? ‘कौन आ रहा है’? ‘हू कम्स देयर’? (ङ्खद्धश ष्शद्वद्गह्य ह्लद्धद्गह्म्द्ग?)। यह ‘हुकमसदेयर’ हुआ, फिर ’हुकम सदर’ हो गया। ऐसे अनेक फिकरे हैं जो अन्य भाषाओं से हमारी अपनी भाषाओं में आते-आते बदल गए हैं, जिनका अध्ययन ज्ञानवर्धक और मनोरंजक होगा।
Published on:
25 May 2024 05:42 pm