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1910 में छीनी थी अंग्रेज की बंदूक, अब उसी के लिए मांगा गया लाइसेंस, वजह सुनकर रह जाएंगे हैरान!

Kondagaon News: आत्मरक्षा के लिए लाइसेंसी बंदूक लेना आम बात है, लेकिन दैवीय प्रकोप से बचाव के लिए बंदूक का लाइसेंस मांगने का यह देश का शायद पहला मामला है।

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अब नई पीढ़ी चाह रही लाइसेंस (फोटो सोर्स- पत्रिका)

अब नई पीढ़ी चाह रही लाइसेंस (फोटो सोर्स- पत्रिका)

CG News: आत्मरक्षा के लिए लाइसेंसी बंदूक लेना आम बात है, लेकिन दैवीय प्रकोप से बचाव के लिए बंदूक का लाइसेंस मांगने का यह देश का शायद पहला मामला है।

यह मामला बस्तर क्षेत्र के उस परिवार से जुड़ा है, जिसके पूर्वज ने 1910 के भूमकाल विद्रोह के दौरान बस्तर के जननायक गुण्डाधुर के साथ लड़ाई लड़ रहे एक आदिवासी सैनिक ने अंग्रेज अफसर को मारकर उसकी बंदूक छीन ली थी। तब से यह बंदूक वीरता और आस्था का प्रतीक बन गई थी, जिसकी पूजा वर्षों तक होती रही। अब उसी परंपरा को जीवित रखने और देव स्वरूप में पुन: स्थापित करने के लिए परिवार ने प्रशासन से लाइसेंसी बंदूक की अनुमति मांगी है। मामला कलेक्टर कार्यालय में विचाराधीन है।

अंग्रेजों से लड़ाई को कहा जाता है भूमकाल

जानकारी के अनुसार, यह दिलचस्प कहानी बस्तर के लोहांडीगुड़ा क्षेत्र के एरमूर गांव की है। ग्रामीण हड़मोंराम मरकाम और लखमू मरकाम ने बताया कि उनके परदादा मुण्डरा ने 1910 में अंग्रेजों के साथ हुए संघर्ष में बहादुरी दिखाते हुए एक ब्रिटिश सैनिक की बंदूक छीन ली थी। इस बंदूक को परिवार ने अपने देव डुमादेव को अर्पित किया और उसकी पूजा आरंभ की। लेकिन कुछ वर्षों बाद परिवार में लगातार अनहोनी घटनाएं होने लगीं, जिसके चलते बंदूक को गुमियापाल गांव के पास फेंक दिया गया।

डुमादेव को अर्पित करना चाहते हैं बंदूक

बीते एक दशक से फिर से परिवार में अशांति और अकाल मृत्यु की घटनाएं बढ़ने पर गांव के सिरहा ने सुझाव दिया कि परिवार को पुन: बंदूक लाकर डुमादेव को अर्पित करनी चाहिए। सिरहा के कथन के बाद परिवार ने प्रशासन से लाइसेंसी बंदूक के लिए आवेदन दिया है। इसे लेकर पंचायत में भी बैठक हुई।

पंचायत का कहना है कि मुण्डरा के वंशज देवगांव माकड़ी में निवासरत हैं। वे बंदूक खरीदकर उसे डुमादेव के नाम अर्पित करेंगे, ताकि परिवार में पुन: सुख-शांति लौट सके।