- गैलरी में भर लेते लगेज, स्पार्किंग होने से हो सकता है हादसा
झालावाड़. जिले में पिछल एक दशक में रोडवेज की बसें आधी रह गई और जो बची है, उनमें से भी 30 प्रतिशत खटारा है, जो कभी यात्रियों को बीच रास्ते में अटकाकर खड़ी हो जाती है। रोडवेज की पुरानी बसों में सुरक्षा संबंधी कोई इंतजाम नहीं है। पुरानी बसों में कभी भी तार स्पार्किंग करने से आग की घटना हो सकती है। बुधवार को पत्रिका टीम ने बसों का जायजा लिया तो ज्यादातर बसों में फायर सिलेंडर मिला। हालांकि बारां डिपो की एक बस बिना फायर एक्सटिंगुइशर के ही मिली। जिले में 270 बसे परिवहन विभाग में पंजीकृत है। इनकी कभी भी फायर ऑडिट नहीं करवाई गई है। परिवहन विभाग के पास एक ही स्पीपर बस पंजीकृत है। जबकि झालावाड़ से एक दर्जन लग्जरी बसों का संचालन हो रहा है। जिसमें 5 बसे एसी है।बाकी नॉन एसी है, लेकिन सभी स्लीपर है। वहीं बात करें प्रदेशभर की तो राजस्थान परिवहन निगम के बस बेड़े में 3500 बसें रहने से निगम की हालत गड़बड़ाई हुई है। इन बसों में भी करीब 863 बसें कंडम श्रेणी की है। फिर भी यात्रियों की जान जोखिम में डाल इन्हे भी मार्ग पर चलाया जा रहा है, जबकि वर्ष 2016 तक निगम के बस बेड़े में 5700 बसें थीं। सरकार ने 500 नई बसें खरीद की है, हालांकि 800 बसें अनुबंध पर ली गई है। रोडवेज निगम में बसों की कमी से यात्रियों से लेकर कर्मचारियों को भी खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। निगम को प्रदेशभर के लिए करीब 3000 बसों की आवश्यकता है। सरकार ने 1300 गाडिय़ों का प्रबंध किया है। कुल मिलाकर बसों की कमी से रोडवेज को घाटा भी झेलना पड़ रहा है। और यात्रियों को भी परेशानी उठानी पड़ रही है। इतनी चलने पर होती है कंडम घोषित- निगम से मिली जानकारी के अनुसार मार्ग पर चलाने के लिए रोडवेज की बस आठ साल से पुरानी या 9 लाख किलोमीटर से ज्यादा नहीं चलना चाहिए। ऐसी स्थिति में बस को कंडम घोषित करने की सिफारिश की जाती है। बस संचालन से दुर्घटना का अंदेशा रहता है। वर्तमान में लंबी दूरी की ज्यादातर बसों में बैटरी, वायरिंग गियर की समस्या आ रही है। ये समस्या तेज गर्मी में और बढ़ जाती है। ऐसे में अक्सर चालक एवं परिचालकों को बीच राह आगार के वर्कशॅाप में बसों को जांच करानी पड़ती है। झालावाड़ में तो कई बार निजी वर्कशॉप कोतवाली के सामने बसों को सही करवाया जाता है। झालावाड़ निगम के पास करीब 8बसे पुरानी है, जिन्हे कंडम घोषित किया जाना है।
जिले में रोडवेज की 60 बसे, निजी बसे 270 है। जिनमें कई बसे ऐसी है जो इंदौर, उज्जैन, कोटा आदि बड़े शहरों से लाकर यहां चलाई जा रही है। जिनमें कई स्कूल बसें भी शामिल है। जिनमें कई बसे कंडम हालात में है जो अनफीट होने के बाद भी रोड पर दौड़ रही है। कई बसे पुरानी होने से उनमें सीटें फटी हुई है,जगह-जगह से वायरिंग निकली हुई है। पत्रिका टीम ने डिपो परिसर में खड़ी बसों को चेक किया तो बारां डिपो की बस में फायर सेफ्टी संबंधी कोई उपकरण नहीं मिले। वहीं एक अन्य बस में पीछे की सीट पर कचरा भरा हुआ मिला। बसों में इमरजेंसी गेट है, लेकिन लंबे समय से नहीं खुलने से वो जाम हो रहे हैं। हालांकि एक बस का गेट खोलकर देखा तो आसानी से खुल गया। जिले में संचालित कई स्लीपर कोच में पूरी गैलरी में सामान भर कर ले जाते हंै, ऐसे में कभी स्पार्किंग होने से हादसा हो सकता है।
जिले में लंबे समय से रोडवज बसों सहित निजी बसों में फायर सेफ्टी ऑडिट नहीं करवाई गई है। ऐसे में कई बसों में फायर सेफ्टी ऑडिट करवाई जाएं तो यात्रियों की सुरक्षा संबंधी कई खामियां सामने आएंगी। रोडवेज बसों के चालक व परिचालकों को भी कभी फायर संबंधी प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। जबकि वो 50 से अधिक सवारी लेकर चलता है। ऐसे में यात्रियों की सुरक्षा के लिए उन्हे भी फायर संबंधी प्रशिक्षण देना जरूरी है।
रोडवेज : फैक्ट फाइल
-निगम में कुल नाकारा बसें- 863
-निगम में कुल बसों की संख्या- 3500
-निगम में अनुबंधित बसों की संख्या- 872
- झालावाड़ में कुल बसे- 60
- नई बसों की जरूरत- 30
यात्री बोले सुरक्षा जरुरी-
1. मुझे बारां जाना है, इसलिए बस में बैठा हूं। इस बस में फायर सिलेंडर नहीं है, ऐसे में कभी आग लग जाएं तो फायर सिलेंडर तो होना चाहिए। सरकार को बस यात्रियों की सुरक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए।
रामकिशन यात्री,
02. राजस्थान के जैसलमेर में जो हादसा हुआ है, वह बहुत ही दुखद है। रोडवेज व निजी बसों सहित सभी बसों में फायर संबंधी सुरक्षा के उपकरण होना चाहिए। हम जिस बस में बैठे है, इसमें सुरक्षा संबंधी कोई संसाधन नहीं है।
बंटी, यात्री।
रोडवेज की बसों की फायर ऑडिट के लिए कभी हमारे पास रोडवेज प्रशासन की तरफ से कोई पत्र नहीं आया है। अगर प्रशिक्षण संबंधी या फायर ऑडिट करवाने के लिए पत्र आएगा तो करवा देंगे।
श्याम गुर्जर, फायर प्रभारी, झालावाड़।
सभी बसों में फायर एक्सटिंगुइशर लगे हुए है। झालावाड़ डिपो में कोई एसी बस नहीं है। स्लीपर बस मत्स्य डिपो की है। रोड पर चलाने से पहले सभी बसों को चेक किया जाता है, उसके बाद ही वर्कशॉप से निकाला जाता है।
पवन सैनी, चीफ मैनेजर,रोडवेज डिप,झालावाड़।
Published on:
16 Oct 2025 10:52 am
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