
केस 1-
देगराय ओरण क्षेत्र में हाइटेंशन लाइन से करंट लगने से दुर्लभ टोनी ईगल की मौत हो गई। वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर शव को सुरक्षित रूप से दफनाया। टोनी ईगल एक शक्तिशाली शिकारी पक्षी माना जाता है, जो खुले मैदानों और अर्ध-रेगिस्तानी इलाकों में पाया जाता है।
केस 2-
पोकरण क्षेत्र के माड़वा गांव के पास प्रवासी पक्षी कुरजां उड़ान भरते समय हाइटेंशन तारों से टकरा गया और गंभीर रूप से घायल हो गई। माड़वा सरपंच ने कुरजां को उपचार के लिए सुरक्षित रखा और पशु चिकित्सक से प्राथमिक इलाज करवाया।
थार के रेगिस्तान में ऊर्जा का विस्तार जहां समृद्धि लेकर आया है, वहीं ऊर्जा परियोजनाओं के कारण बिछी हाइटेंशन लाइनों ने पक्षियों के लिए मौत का जाल बिछा दिया है। सीमावर्ती जैसलमेर जिले में विद्युत तारों की चपेट में आने से दुर्लभ पक्षियों की मौतों का सिलसिला लगातार जारी है। हाल की घटनाओं ने फिर इस खतरे को उजागर किया है। गौरतलब है कि जैसलमेर. सर्द ऋतु की शुरुआत के साथ जैसलमेर, फलोदी और बाड़मेर क्षेत्र हजारों प्रवासी पक्षियों का अस्थायी घर बन जाते हैं। ये पक्षी जल स्रोतों के पास पड़ाव डालते हैं, लेकिन अब इन इलाकों में फैली बिजली लाइनों ने उनके बसेरे को असुरक्षित बना दिया है।
वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार केवल जैसलमेर जिले में ही लगभग 87,966 पक्षी बिजली की लाइनों से टकराकर या करंट लगने से मारे गए। बाड़मेर, जैसलमेर और बीकानेर से लेकर गुजरात के कच्छ तक फैली हाईटेंशन लाइनें मूक परिंदों की जान की दुश्मन बन चुकी हैं।
सम, सुदासरी, रामदेवरा, खेतोलाई, कनोई, रासला और देगराय जैसे क्षेत्र गोडावण और अन्य दुर्लभ पक्षियों के प्रमुख विचरण स्थल हैं। इनमें से केवल सम और सुदासरी ही डेजर्ट नेशनल पार्क में शामिल हैं। बाकी रेवेन्यू भूमि पर निजी कंपनियों ने अपने सौर व पवन प्रोजेक्ट लगाए हैं। राजस्थान में गोडावण की सर्वाधिक संख्या डीएनपी में पाई जाती है, इसलिए इसे गोडावण की शरणस्थली भी कहा जाता है।
थार की पारंपरिक ग्राम्य संस्कृति और प्रकृति का गहरा रिश्ता अब सिमटता जा रहा है। जहां कभी स्थानीय लोग प्रवासी पक्षियों का स्वागत करते थे, वहीं अब अरब देशों और मध्य एशिया से आने वाले पक्षियों के प्रवास का मार्ग और बसेरा..दोनों के बीच खतरा मंडराने लगा है।
पर्यावरण प्रेमियों के अनुसार प्रवासी पक्षियों के आगमन काल में विशेष निगरानी रखी जानी चाहिए। ओरण इलाकों में बिजली की लाइनों को या तो भूमिगत किया जाए या इंसुलेटेड केबल लगाई जाएं। साथ ही बर्ड सेफ पावरलाइन प्रोजेक्ट्स को तत्काल प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि यह रेगिस्तानी इलाका आने वाले वर्षों में भी पक्षियों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बना रह सके। वन्यजीव एवं पर्यावरणविद् सुमेरसिंह सांवता ने बताया कि पहले भी कई गोडावण सहित दुर्लभ पक्षी इन बिजली तारों की चपेट में आ चुके हैं। जब तक इन बिजली लाइनों को भूमिगत नहीं किया जाता, तब तक यह खतरा बरकरार रहेगा।
Published on:
02 Nov 2025 09:57 pm
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