
साल दर साल दुनिया भर में स्ट्रोक के कारण लाखों लोग अपनी जान गवां देते हैं। भारत में भी इसके आंकड़ें लगातार बढ़ रहे है। स्ट्रोक की गंभीरता और इसके प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 29 अक्टुबर को विश्व स्ट्रोक दिवस मनाया जाता है। स्ट्रोक एक ऐसी स्थिति है, जिसे जितना जल्दी पहचाना जाता है, उतना ही इलाज में सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
सीनियर कंसल्टेंट, इंटरवेंशनल न्यूरोलॉजी डॉ. प्रशांत सिंह ने बताया कि स्ट्रोक के दौरान समय की कीमत बहुत अधिक होती है। यदि स्ट्रोक के लक्षण शुरू होने के पहले 3-4 घंटों के भीतर इलाज किया जाए, तो मरीज को न्यूनतम नुकसान होता है और उसका जीवन बचाने की संभावना अधिक होती है। शैल्बी हॉस्पिटल के डॉ. मनोज अग्रवाल ने बताया की ब्रेन के एक खास हिस्से तक ब्लड सप्लाई में समस्या होने पर स्ट्रोक का खतरा रहता है।
ब्रेन स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क में रक्त परिसंचरण में रुकावट होती है या जब मस्तिष्क में रक्त वाहिका फट जाती है या लीक हो जाती है। ऑक्सीजन और रक्त की कमी से मस्तिष्क में ऊतक और कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और कुछ ही समय में मर जाती हैं।
सीनियर कंसल्टेंट, न्यूरोलॉजी डॉ नितिन गुप्ता ने बताया कि हेमोरेजिक स्ट्रोक में मरीज में ब्लड प्रेशर कंट्रोल करना होता है और कुछ मरीजों में सर्जरी की जरूरत भी पड़ सकती है। वहीं इस्केमिक स्ट्रोक में मरीज को शुरूआती 4—5 घण्टे में थ्रोमबोलिसिस का विकल्प रहता है। उसके पश्चात कुछ चुनिन्दा मरीजों में मेकेनिकल थ्रोमबेक्टोमी के द्वारा थक्के को धमनी से निकाला जा सकता है, ताकि रक्त का प्रवाह फिर से चालू हो सके। दोनों ही इलाज के विकल्प जितने जल्दी किए जाएं, परिणाम उतने ही अच्छे प्राप्त होते हैं।
Published on:
29 Oct 2025 09:06 pm
बड़ी खबरें
View Allजयपुर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग

