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Rajasthan: मरने के 13 साल बाद न्यायाधीश को मिला न्याय, पहले पत्नी फिर बेटे ने लड़ा केस, राज्यपाल का आदेश हुआ रद्द

राजस्थान में एक न्यायाधीश की बर्खास्तगी के मामले में परिवार को 15 साल बाद न्याय मिला है। मुकदमे के दौरान ही 13 साल पहले न्यायाधीश की मौत हो गई। पहले पत्नी फिर उनकी मौत के बाद बेटे और बेटी ने लड़ाई लड़ी।

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जयपुर

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Kamal Mishra

Nov 04, 2025

MP High Court Takes Strict Action Against Shahdol Collector

शहडोल कलेक्टर पर एमपी हाईकोर्ट ने दिखाई सख्ती (फोटो-पत्रिका)

जयपुर। राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर की डबल बेंच जस्टिस मुन्नूरी लक्ष्मण व जस्टिस बिपिन गुप्ता ने बीकानेर के मूल निवासी सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश बी.डी. सारस्वत की बर्खास्तगी को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी को रद्द करने के साथ ही उनके परिवार को पूर्ण वेतन, सेवा निरंतरता और पेंशन लाभ देने का आदेश दिया है। जस्टिस सारस्वत की मुकदमे के दौरान ही साल 2012 में मौत गई थी।

मुकदमे को लेकर अदालत ने कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं हुआ और जांच अधिकारी को नियमों के अनुसार अतिरिक्त साक्ष्य स्वीकार करने का अधिकार था, क्योंकि दोनों पक्षों ने इसकी सहमति दी थी। साथ ही राज्यपाल से पुनः स्पष्टीकरण का अवसर देना संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है।

कोर्ट ने जांच रिपोर्ट को बताया गलत

अदालत ने माना कि जांच अधिकारी की रिपोर्ट और पूर्ण पीठ का निर्णय दोषपूर्ण और बाहरी साक्ष्यों पर आधारित था, जो विवेकपूर्ण नहीं कहा जा सकता। अनुच्छेद 311(2) के अनुसार जांच पूरी होने के बाद दंड उसी आधार पर लगाया जा सकता है और राज्यपाल स्तर पर दोबारा सुनवाई का प्रावधान बाध्यकारी नहीं है।

यह था पूरा मामला

सारस्वत प्रतापगढ़ में एनडीपीएस विशेष न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थे। अधिवक्ता अशोक कुमार वैष्णव ने आरोप लगाया कि सारस्वत ने अभियुक्त पारस को जमानत दे दी, जबकि पहले दो बार याचिका खारिज हो चुकी थी। आरोप था कि अधिवक्ता के बदलने पर बिना नई परिस्थिति व बिना आरोपपत्र दाखिल हुए जमानत दी गई, जो अनुचित उद्देश्य अथवा बाहरी प्रभाव का परिणाम थी।

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने जांच के लिए जस्टिस एन.पी. गुप्ता को नियुक्त किया। जांच में लोक अभियोजक द्वारकानाथ शर्मा और अधिवक्ता वैष्णव के बयान लिए गए। जांच अधिकारी ने गंभीर कदाचार मानते हुए आरोप सही पाया और पूर्ण पीठ ने रिपोर्ट स्वीकार कर राज्यपाल को बर्खास्तगी की अनुशंसा भेजी। इस आधार पर 8 अप्रैल 2010 को बर्खास्तगी आदेश जारी हुआ।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

डबल बेंच ने कहा कि पूर्ण पीठ संवैधानिक निकाय है, पर इस मामले में उसके निष्कर्ष साक्ष्यों से मेल नहीं खाते। कोई भी विवेकशील व्यक्ति इन साक्ष्यों से ऐसा निष्कर्ष नहीं निकाल सकता। इसलिए जांच अधिकारी की रिपोर्ट, पूर्ण पीठ का संकल्प और राज्यपाल का आदेश तीनों रद्द किए गए।

परिजनों को मिलेगा लाभ

सभी आदेश निरस्त करते हुए अदालत ने कहा कि सेवा समाप्ति अवैध होने पर सामान्य नियम पुनर्स्थापन और संपूर्ण बकाया वेतन का है। राज्य सरकार यह साबित नहीं कर सकी कि यह मामला अपवाद में है। इसलिए 8 अप्रैल 2010 से 28 फरवरी 2011 तक का पूरा वेतन और सेवा निरंतरता के साथ सभी लाभ परिजनों को दिए जाएं।

मुकदमे के दौरान निधन

मूल रूप से बीकानेर के रहने वाले सारस्वत का मामला लंबित रहने के दौरान 26 मई 2012 को निधन हो गया। वे श्रीगंगानगर में एडीजे संख्या दो में पीठासीन अधिकारी रहे चुके थे। उनकी मौत के बाद पत्नी ने कोर्ट में लड़ाई लड़ी। वहीं पत्नी की मौत के बाद बीकानेर निवासी पुत्र अमित सारस्वत और पुत्री मधु सारस्वत याचिका में पक्षकार बने और मामले को आगे बढ़ाया।