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Rajasthan Politics: चुनाव करीब आते ही धड़ाधड़ बोर्ड-आयोग का गठन; चौंकाने वाली है पिछली सरकार की सूची

Rajasthan Politics: अधिकांश नियुक्तियां सरकार के कार्यकाल के आखिरी दो-तीन वर्षों में होती हैं, जब चुनाव नजदीक होते हैं तो समाजों को साधने की कवायद तेज हो जाती है।

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Ashok Gehlot

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (फोटो-एएनआई)

जयपुर। प्रदेश में बोर्ड और आयोग राजनीतिक लाभ व सामाजिक समीकरण साधने का आसान जरिया बन गए हैं। राज्य में करीब 40 से अधिक ऐसे बोर्ड, आयोग और अकादमियां हैं, जहां अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति को गंभीरता से लेने के बजाय हर सरकार इनको राजनीतिक नियुक्तियों का ठिकाना बनाती आ रही है।

अधिकांश नियुक्तियां सरकार के कार्यकाल के आखिरी दो-तीन वर्षों में होती हैं, जब चुनाव नजदीक होते हैं तो समाजों को साधने की कवायद तेज हो जाती है।

नियुक्तियों में कोर्ट भी जाहिर कर चुका चिंता

आयोगों में अध्यक्ष-सदस्यों के खाली पदों को लेकर पूर्व में हाईकोर्ट चिंता जता चुका है। कोर्ट ने कहा था कि बोर्ड-आयोग लंबे समय तक खाली न रखे जाएं और इनकी जानकारी नियमित रूप से सरकारी वेबसाइट पर अपडेट की जाए।

घोषणाएं हर समाज-जाति वर्ग को साधने की रणनीति का हिस्सा

ताजा उदाहरण पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार का है, जिसके कार्यकाल में अलग-अलग समय पर करीब 36 नए बोर्ड और आयोगों की घोषणाएं की गईं। यह घोषणाएं लगभग हर समाज-जाति वर्ग को साधने की रणनीति का हिस्सा थीं। चुनाव आचार संहिता से कुछ दिन पहले तक ऐसी घोषणाओं का सिलसिला जारी रहा, लेकिन अधिकांश में आज तक नियुक्तियां नहीं हुईं। यानी कागजों पर भले हर समाज के लिए आयोग बन गए, लेकिन समाजों को उनका व्यावहारिक लाभ नहीं मिला।

70 के करीब बनाए गए थे अध्यक्ष-उपाध्यक्ष

पूर्ववर्ती सरकार में ज्यादातर नियुक्तियां स्थायी प्रकृति के बोर्ड-आयोगों में हुईं। इनमें करीब 70 अध्यक्ष व उपाध्यक्ष बनाए गए। इनमें से 35 को मंत्री का दर्जा दिया गया। 4 को कैबिनेट और 31 को राज्यमंत्री का दर्जा देकर सुविधाएं दी गई थी। कई में नियुक्तियां तो विधानसभा चुनाव आचार संहिता लगने से ठीक पहले हुई, जिससे वे पदभार तक ग्रहण नहीं कर सके।

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में बने बोर्ड-आयोग पर अधिकांश में नियुक्तियां नहीं

  • महात्मा ज्योतिबा फुले बोर्ड: माली, कुशवाह, बागवान
  • रजक कल्याण बोर्ड: धोबी
  • गाड़िया लोहार कल्याण बोर्ड: गाड़िया लोहार
  • स्वर्ण रजत कला विकास बोर्ड: सुनार, सोनी
  • मेजर दलपत सिंह (हाइका स्मृति) कल्याण बोर्ड: रावणा-राजपूत, दरोगा, हजूरी, वजीर
  • तेली घाणी विकास बोर्ड: तेली समाज
  • अवन्ति बाई लोधी बोर्ड: लोधी, लोधा
  • श्रीकृष्ण बोर्ड: अहीर, यादव
  • लव-कुश बोर्ड: काछी, शाक्य कुशवाह
  • अहिल्याबाई होल्कर बोर्ड: गड़रिया, गायरी, घोसी, पूर्बिया
  • स्थापत्य कला बोर्ड: कुमावत
  • गुरु गोरखनाथ बोर्ड: जोगी, योगी, नाथ
  • बालीनाथ बोर्ड: बैरवा
  • सरदार पटेल कल्याण बोर्ड: पाटीदार, पटेल, आंजणा, डांगी, पटेल
  • मिरासी समुदाय कल्याण बोर्ड: मिरासी, मांगणियार, नागारची जाति वर्ग
  • श्रमण संस्कृति बोर्ड: जैन
  • धरणीधर कल्याण बोर्ड: धाकड़
  • संत दुर्बलनाथ बोर्ड: खटीक
  • अग्रसेन कल्याण बोर्ड: अग्रवाल
  • राजा बली कल्याण बोर्ड: सरगड़ा
  • पुजारी कल्याण बोर्ड: पुजारी, वैष्णव, गोस्वामी
  • वाल्मीकि कल्याण बोर्ड: वाल्मीकि
  • धाणका कल्याण बोर्ड: धाणका
  • चित्रगुप्त कायस्थ कल्याण बोर्ड: कायस्थ
  • जाटव कल्याण बोर्ड: जाटव
  • मेघवाल कल्याण बोर्ड: मेघ तथा मेघवाल
  • केवट कल्याण बोर्ड: मेहरा, कीर, कहार
  • आई माता कल्याण बोर्ड: जणवा, सीरवी
  • स्वामी श्री दयालनाथ बावरी कल्याण बोर्ड: बावरी

सुधार की दरकार

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजस्थान में बोर्ड और आयोगों को केवल चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अगर इनमें समयबद्ध नियुक्तियां हों और राजनीतिक तुष्टिकरण के बजाय वास्तविक कार्य के लिए सक्रिय किया जाए, तो समाजों को सीधा लाभ मिल सकता है।


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